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गुलाब की जगह बैंगन, ट्यूलिप की जगह भिंडी सहित अन्य सब्जियों की बहार

श्रीनगर निवासी फारूक शाह अपने घर के आंगन में सब्जियां उगाने के लिए जमीन तैयार करते हुए। जागरण

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 02 May 2020 09:09 AM (IST)Updated: Sat, 02 May 2020 02:53 PM (IST)
गुलाब की जगह बैंगन, ट्यूलिप की जगह भिंडी सहित अन्य सब्जियों की बहार
गुलाब की जगह बैंगन, ट्यूलिप की जगह भिंडी सहित अन्य सब्जियों की बहार

जेएनएन, नई दिल्ली। थोड़ी सी मेहनत-थोड़ा सा जुगाड़ और तरो-ताजा सब्जी का उपहार। कश्मीर से लेकर मैदानी भागों तक किचन गार्डनिंग का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है। कोरोना से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन ने अधिकतर घरों के बाग, आंगनों और छतों की सूरत ही बदल दी है। जहां पहले गुलाब, डेफोडिल और ट्यूलिप जैसे रंग-बिरंगे फूल खिले होते थे, अब लौकी, टमाटर, बैंगन, भिंडी सहित अन्य सब्जियों के छोटे-छोटे पौधों की बहार है। कहीं अंकुरण शुरू हुआ है तो कहीं सब्जी आनी शुरू हो गई है।

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एक तीर से कई निशाने साधे जा रहे हैं, किचन गार्डनिंग की देख-रेख में जहां अच्छा खासा व्यायाम हो रहा है तो वहीं मन भी बहल रहा है। इस तरह समय का सदुपयोग हो रहा है और घर बैठे ताजा सब्जियां मिलने से सब्जी की उपलब्धता से जुड़ी चिंता मिट रही है।कश्मीर में तो यहां मानो लोगों ने अपने बाग-आंगनों को छोटे खेत की शक्ल दे दी है। हर घर में सब्जी उगाई जा रही है। ट्यूलिप की खेती करने वाले किसान भी सब्जी उगा रहे हैं। आम लोग रिश्तेदारों या आसपड़ोस से बीज का जुगाड़ कर और यूट्यूब पर बागवानी सीख घर-आंगन में सब्जियां उगा रहे हैं।

कश्मीर में जिससे भी पूछो यही कहता है- यह (सब्जी उगाना) रिवायत थी, जिसे भूल गए थे, अब जमीन से जुड़कर इसकी अहमियत पता चली..। शेर-ए-कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा से सटे विचारनाग निवासी शिक्षाविद फारूक शाह ने अपने घर के आंगन को खेत में बदलना शुरू किया है। उन्होंने कहा- लॉकडाउन का पता नहीं कि कब तक खिंचे। सब्जियां तो रोज की जरूरत हैं, इसलिए गुजारे लायक सब्जी अगर घर में तैयार हो जाए तो बेहतर है।

आज से 30-35 साल पहले तक कश्मीर में सिर्फ गांवों में ही नहीं शहरों में लोग अपने घर आंगन में जो जगह बचती थी, उस पर सब्जियां उगाते थे। समय के साथ केवल फूल ही नजर आने लगे। अब तो हमारे मुहल्ले में अमीर हो या गरीब, हर कोई दिनभर आंगन में लगा रहता है सब्जियां उगाने। लालबाजार के आसिफ ने कहा- हमने अपने लॉन की खोदाई कर लौकी, खीरा, भिंडी के बीज लगाए हैं। 20-25 दिन में फसल देने वाले बीज हैं। एक अन्य शहरी प्रो. असलम ने कहा कि यह समय बिताने, खुद को दुरुस्त रखने का भी एक तरीका है।

आज सब्जी लगाएंगे तो 15-20 दिन में या महीने में फसल आएगी। आप जब सब्जियां लगा रहे होते हैं, खेत में काम कर रहे होते हैं तो खुद को प्रकृति के करीब महसूस करते हैं। आपको किसान की मेहनत का अनुभव होता है। कृषि विभाग में कार्यरत जावेद ककरु ने कहा कि विभाग ने भी लोगों को प्रेरित करने का अभियान चला रखा है। घरों में सब्जियां उगाने से दूसरों पर हमारी निर्भरता किसी हद तक कम होगी। अब चलते हैं मप्र।

विदिशा के विकास पचौरी ने अपने घर की छत पर ही पॉली हाउस बना लिया है। कहते हैं, खाली बाल्टियों और कुछ टिन की ट्रे जमा कर इसमें मिट्टी भरकर मैथी, पालक, लौकी, टमाटर, भटे के बीज डाल दिए हैं। रोज इन सब्जियों में सुबह के समय पानी देते हैं। यही नजारा अन्य घरों का है। लोगों ने छतों पर क्यारियां बनाकर सब्जी के बीज बोए हैं। आंगन और बरामदे में भी सब्जी उगा रहे हैं। (श्रीनगर से नवीन नवाज और विदिशा से अजय जैन की रिपोर्ट।)

बाग, आंगन और छतों पर सब्जियां उगा रहे हैं लोग, आस-पड़ोस से बीज का जुगाड़ कर यूट्यूब से सीख रहे सब्जी उगाना बेहद सुकूनदायक अनुभव है। इस तरह गार्डनिंग करने से आपके दिमाग से कई नकारात्मक भाव दूर होते हैं साथ ही शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है।

-प्रो. असलम, स्थानीय निवासी, श्रीनगर

मैं छत पर सब्जियां उगा रहा हूं। हर सुबह इनमें पानी देता हूं। ताजी सब्जियां तो घर बैठे मिलेंगी ही, इस काम में मन को सुकून मिलता है।

-विकास पचौरी, स्थानीय निवासी, विदिशा


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