नहीं सुलझ रहा बिजली कंपनियों का मामला, वित्त मंत्रालय और RBI के बीच विवाद का भी असर
इलाहाबाद कोर्ट के फैसले से देश में 30 हजार मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजनाओं के भविष्य से जुड़ा मामला अभी तक सुलझ नहीं पाया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पहले आरबीआइ के फंसे कर्जे (एनपीए) संबंधी नये नियम और बाद में इस पर इलाहाबाद कोर्ट के फैसले से देश में 30 हजार मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजनाओं के भविष्य से जुड़ा मामला अभी तक सुलझ नहीं पाया है। माना जा रहा है कि हाल के दिनों में वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैक के बीच विवाद के बढ़ जाने की वजह से इनको सुलझाने की कोशिशों को भी झटका लगा है। सरकार की तरफ से कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति भी अभी तक इन फंसी बिजली कंपनियों के भविष्य को सुरक्षित करने की गारंटी नहीं दे पा रही है।
यह पूरा विवाद एक तरफ कानूनी मामलो में उलझा हुआ है तो दूसरी तरफ आरबीआइ अभी तक बेहद सख्त रवैया अपनाये हुए है। वित्त मंत्रालय और आरबीआइ के बीच विवाद के पीछे एक बड़ी वजह इन बिजली कंपनियों पर लागू एनपीए नियम भी है। फरवरी, 2018 में आरबीआइ की तरफ से घोषित नए एनपीए नियम की वजह से बैंकों का कर्ज एक निश्चित समय सीमा पर नहीं चुकाने वाली बिजली कंपनियों को भी दिवालिया घोषित किया जाना है।
इसके खिलाफ बिजली कंपनियों ने इलाहाबाद कोर्ट में केस दायर किया था लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है और 14 नवंबर को इस पर अगली सुनवाई है। इस बीच यह कोशिश भी चल रही है कि सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई से पहले कुछ बिजली कंपनियों पर बकाया कर्ज के मामले को सुलझा लिया जाए। सरकार की मंशा है कि आरबीआइ की तरफ से एनपीए संबंधी मौजूदा दिशानिर्देश में बदलाव कर इन बिजली कंपनियों को राहत दी जाए लेकिन अभी तक केंद्रीय बैंक का रुख बिल्कुल नकारात्मक है।
बिजली मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक फंसी बिजली परियोजनाओं को सुलझाने के लिए परिवर्तन नाम से एक योजना बनाई गई थी। इसमें कुछ परियोजनाओं को उनकी प्रमोटर कंपनियों की मदद से उबारने का प्रस्ताव था। लेकिन आरबीआइ इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। आरबीआइ नहीं चाहता कि एक सेक्टर की कंपनियों के लिए उसके नियमों में बदलाव हो। आरबीआइ के रुख को देख कर बैंक भी कोई फैसला नहीं कर पा रहे।
इनमें से कुछ परियोजनाओं को खरीदने के बहुत ही अच्छे प्रस्ताव सामने आये हैं फिर भी बैंक उन्हें स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। जबकि कुछ मामलों में बैंकों के बीच ही आपसी रजामंदी नहीं है। कोर्ट में मामले का होना एक बड़ी वजह है कि बैंक प्रबंधन अपने स्तर पर दो टूक फैसला नहीं कर पा रहा है। रतन इंडिया अमरावती प्लांट, छत्तीसगढ़ इनर्जी लिमिटेड और प्रयागराज कुछ ऐसे प्लांट हैं जिनके खरीददार सामने आये हैं लेकिन बैंकों के स्तर पर उनके इन प्रस्तावों पर तत्परता से फैसला नहीं हो पाया है।