बड़ी कार्रवाई: डाबर के निदेशक प्रदीप बर्मन व एम्मार एमजीएफ के पूर्व एमडी श्रवण गुप्ता की संपत्ति जब्त
जांच एजेंसी ने इएमएमएआर एमजीएफ के अतिरिक्त मैनेजिंग डायरेक्टर श्रवण गुप्ता की 10. 28 करेाड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है।
नई दिल्ली, आइएएनएस/प्रेट्र। ईडी ने विदेश में काला धन रखने वालों को लेकर बड़ी कार्रवार्इ की है। देश के प्रमुख औद्योगिक समूह डाबर के निदेशक प्रदीप बर्मन की 20.8 करोड़ की संपत्ति को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने फेमा कानून के तहत जब्त कर लिया है। इसी के साथ ईडी ने एम्मार एमजीएफ के पूर्व प्रबंध निदेशक (एमडी) श्रवण गुप्ता की भी 10.28 करोड़ रुपये की कृषि भूमि जब्त की है। यह कार्रवाई दिल्ली के बिजवासन क्षेत्र में की गई है।
एचएसबीसी की जिनेवा शाखा में खाता
ये मामले 628 भारतीयों की उस सूची से जुड़े हैं, जिनका एचएसबीसी की जिनेवा शाखा में खाता है। यह सूची भारत को 2007 में फ्रांस की सरकार से मिली थी। ईडी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बर्मन की संपत्ति को इसलिए जब्त किया गया है, क्योंकि उन्होंने 32.12 लाख डॉलर (23 करोड़ से अधिक) ज्यूरिख स्थित एचएसबीसी की शाखा में जमा करने के बाद इसकी जानकारी आयकर विभाग को नहीं दी थी।
फेमा का उल्लंघन
ईडी के अनुसार एचएसबीसी में जमा धनराशि फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) का उल्लंघन है। श्रवण गुप्ता के खिलाफ की गई कार्रवाई पर ईडी ने कहा कि उन्होंने स्विटजरलैंड में एचएसबीसी बैंक में 15,40,650 अमेरिकी डॉलर (11 करोड़ से अधिक) जमा कर रखे थे। गुप्ता ने 2006-07 की अवधि के दौरान भारत में दायर आयकर रिटर्न में यह राशि भी नहीं दिखाई थी, जो फेमा कानूनों का उल्लंघन है। हालांकि, उन्होंने 2011-12 में यह राशि घोषित की थी और उचित कर चुकाया था। आयकर विभाग ने इस मामले में उनके खिलाफ आरोपपत्र भी दायर किया था।
अप्रैल 2016 में खत्म हुआ था एम्मार और एमजीएफ का संयुक्त उद्यम
2005 में एम्मार प्रॉपर्टीज ने भारतीय रियल एस्टेट बाजार में भारत के एमजीएफ समूह के साथ भागीदारी में प्रवेश किया था और संयुक्त उद्यम एम्मार एमजीएफ के माध्यम से 8,500 करोड़ रुपये का निवेश किया। हालांकि अप्रैल 2016 में इस संयुक्त उद्यम को खत्म करने का फैसला लिया गया और दो महीने बाद संयुक्त उद्यम के तत्कालीन कार्यकारी उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक गुप्ता ने पद से इस्तीफा दे दिया।
काले धन पर खुलासा करते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि एचएसबीसी बैंक की सूची में शामिल भारतीयों के खातों में 4,479 करोड़ जमा है और ऐसे 79 खाताधारकों के खिलाफ आयकर विभाग ने कार्रवाई शुरू कर दी है।
अमेरिकी थिंक टैंक ग्लोबल फाइनैंशल इंटीग्रिटी (जीएफआई) के एक अध्ययन के मुताबिक, 2005-2014 के बीच भारत में लगभग 770 अरब डॉलर काला धन आया। रिपोर्ट के मुताबिक, इसी अवधि में 165 अरब डॉलर काला धन देश से बाहर गया।
काला धन रखने कैसे स्विस बैंक में पहुंचता है
आमतौर पर काला धन हवाला और हवाला एजेंट्स के जरिए स्विस बैंकों में पहुंचता है। पिछले कुछ सालों में भारत में कानून कड़े हुए हैं। ईडी ने कालाधन को लेकर भारी मात्रा में संपत्ति जब्त की है।
स्विस बैंकों में क्यों लोगों के पसंदीदा हैं?
ये बैंक ग्राहकों और उनकी जमा राशि को लेकर जबरदस्त गोपनीयता बरतते हैं. हालांकि दुनिया के अन्य टैक्स हैवन देशों के बैंकों में भी ऐसा ही है।
स्विस बैंक का मतलब क्या है
यानि वो बैंक जो स्विट्जरलैंड से जुड़े हों। स्विट्जरलैंड में 400 से ज्यादा बैंक हैं, जो वहां के कानून के अनुसार चलते हैं। इसमें यूबीएस और क्रेडिस सुइस ग्रुप सबसे बड़े हैं।
स्विस बैंक किस कानून से बंधे होते हैं
स्विस बैंकिंग एक्ट (1934) के तहत, ये बैंक अपने अकाउंट होल्डर की जानकारी उनकी इजाजत के बिना सार्वजनिक नहीं कर सकते। यहीं नहीं, अगर अकाउंट होल्डर अपने देश में वित्तीय अनियमितता में लिप्त है, लेकिन स्विट्जरलैंड में उस पर इस तरह का कोई मामला नहीं चल रहा। बैंकिंग एक्ट के अनुच्छेद 47 के मुताबिक, स्विटजरलैंड में बैंक का हर कर्मचारी, अधिकारी और बैंकिंग से जुड़ी संस्थाओं से लेकर बैंक निगरानी आयोग के सदस्य भी गोपनीयता बरतने के लिए बाध्य हैं इसीलिए काला धन जमा कराने वालों के लिए ये बैंक बहुत मुफीद स्थल हैं।