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ई-रिक्शा चालक संवार रहा बच्चों का भविष्य, निशुल्क शिक्षा देकर समाज में फैला रहा साक्षरता का उजियारा

सिलीगुड़ी में गरीब परिवारों के बच्चों को 19 वर्षों से निशुल्क शिक्षा मुहैया करा रहे हैं ई-रिक्शा चलाने वाले लेक बहादुर। अबतक कई बच्चों का भविष्य संवार चुके हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 25 Sep 2019 09:05 PM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 08:22 AM (IST)
ई-रिक्शा चालक संवार रहा बच्चों का भविष्य, निशुल्क शिक्षा देकर समाज में फैला रहा साक्षरता का उजियारा
ई-रिक्शा चालक संवार रहा बच्चों का भविष्य, निशुल्क शिक्षा देकर समाज में फैला रहा साक्षरता का उजियारा

सिलीगुड़ी, अशोक झा। असली शिक्षा तो वही है जो किरदार में झलकती है। शिक्षकों का तो कार्य ही छात्रों को शिक्षित करना है, परंतु जब कोई आम व्यक्ति ऐसा काम करे तो निश्चित ही उसका किरदार विशिष्ट बन उठता है। सिलीगुड़ी, बंगाल निवासी शिव कटवाल उर्फ लेक बहादुर कुछ इसी तरह का किरदार जी रहे हैं। वह चलाते तो हैं टोटो (ई-रिक्शा), लेकिन पिछले 19 सालों से शिक्षा से वंचित बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा प्रदान कर समाज में साक्षरता का उजियारा भी फैला रहे हैं।

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लेक बहादुर बच्चों के बीच मास्टर सर के नाम से मशहूर हैं। वह कहते हैं कि मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं। चंपासारी में वर्ष 1985 में जन्मे शिव कटवाल ने बताया कि सिलीगुड़ी के मिलनमोड़ कराईबाड़ी में डॉक्टर आइबी थापा स्कूल से उन्होंने 9वीं तक की पढ़ाई पूरी की। पारिवारिक स्थिति खराब होने के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

भटकते बच्चों को देख शिक्षा देने का संकल्प किया

नौकरी के लिए बेंगलुरु गए। शिक्षा ज्यादा नहीं होने के कारण वहां एक होटल में सब्जी-तरकारी काटने और बर्तन धोने का काम मिला। भाषाई जटिलता और शिक्षा कम होने के कारण प्रतिदिन प्रताड़ित होना पड़ता। वह कहते हैं, वहां से दो माह में ही लौट आया। कुछ बेहतर काम करने की सोच ही रहा था कि पास के चाय बागान गुलमुहर गुलमा के निकट चार पांच बच्चों को भटकते देखा। मन में आया कि हो न हो मेरी तरह यह भी बड़े होकर दर-ब-दर की ठोकरें खाएंगे। उन्हें अच्छी शिक्षा देने का संकल्प किया।

और चलने लगी खुशियों की पाठशाला...

शिव ने बताया, कराईबाड़ी मिलनमोड़, सिलीगुडी के एक क्लब घर में वर्ष 2000 में सात बच्चों को लेकर शिक्षा का दान देने का काम शुरू किया। बच्चे मन लगाकर पढ़ने लगे तो हमें भी उन्हें पढ़ाने में आनंद आने लगा। कुछ दिनों बाद इस पाठशाला का नाम खुशी शिक्षा केंद्र रख दिया। बच्चों की लगन देखकर क्षेत्र के लोगों को हमारी कार्यक्षमता पर विश्र्वास होने लगा। इस तरह कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा मुहैया हो गई। खुशियों की पाठशाला चलने लगी।

बच्चों की शिक्षा के लिए शुरू किया रिक्शा चलाना

शिव को सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं से इस काम में कोई भी मदद नहीं मिली और न ही उन्होंने इसके लिए प्रयास किया। वह कहते हैं, खुशी शिक्षा केंद्र को चलाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। इसलिए मैंने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। उससे जो आमदनी होती, बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने लगा। फिलहाल इस पाठशाला में आठवीं तक के 37 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यहां के बच्चों को मार्शल आर्ट, जूडो, कराटे की शिक्षा देने के लिए शिक्षक रामचंद्र क्षेत्री को नियुक्त किया गया है। कई बच्चों को जूडो में मेडल भी मिले हैं।

खेलकूद के साथ आचरण का भी पाठ 

लेक बहादुर चाहते हैं कि इस तरह के शिक्षा केंद्र शहर के हर मुहल्ले में खुलें ताकि जरूरतमंद बच्चे शिक्षा से वंचित न रह जाएं। शिव का प्रयास रहता है कि वे खुशी शिक्षा केंद्र में अध्ययनरत बच्चों का सर्वागीण विकास कर सकें। लिहाजा, बच्चों को खेलकूद के साथ ही व्यक्तित्व और आचरण का पाठ भी पढ़ाया जाता है। उसके बाद किताबी शिक्षा में उन्हें निपुण किया जाता है। बच्चों को प्रत्येक वर्ष वृद्धाश्रम, अनाथालय भी ले जाते हैं ताकि वे समाज का दुख समझ सकें।

मिलने लगा समाज का सहयोग

खुशियों की पाठशाला को अब समाज के लोगों का भी सहयोग मिलने लगा है। नवराज शर्मा, सरिता क्षेत्री, उद्धव शर्मा, मिलन रुचाल, मनोज साह, दीपक नीयोपानी और रामचंद्र विकास पौडयाल जैसे कुछ लोग साथ जुड़ गए हैं। बच्चों की यूनीफार्म, कापी-किताब और अन्य वस्तुओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सभी मिलजुल कर प्रयास करते हैं।


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