India China Tension: चीन से निपटने के लिए लद्दाख पहुंचा 'भीष्म', जानिए क्या है इसकी खासियत
India China Tension भीष्म को दुनिया के सबसे अचूक टैंक में एक माना जाता है। चीन ने एलएसी के पार अपने मुख्य बेस पर बख्तरबंद गाड़ियों के साथ टी-95 टैंक तैनात किए हैं।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। चीन को सबक सिखाने के लिए भारतीय सेना ने पूरा बंदोबस्त कर लिया है। शक्तिशाली टी-90 टैंक (इसे भीष्म भी कहते हैं) हवाई जहाज के जरिए लद्दाख पहुंच गया है। टी-90 टैंक की तैनाती कर भारत ने एक तरह से चीन को कड़ा संदेश दे दिया है कि अगर कुछ हरकत की, तो करारा जवाब मिलेगा। टी-72 टैंकों का एक बेड़ा पहले से लद्दाख में तैनात है। हवा में दुश्मन के जहाजों को मार गिराने में समर्थ अत्याधुनिक एंटी एयरक्राफ्ट गन और सैनिकों का एक विशेष दस्ता भी पहुंच चुका है। लद्दाख और कश्मीर में बुधवार को भी युद्धक विमानों ने उड़ान भरकर ऑपरेशनल तैयारियों को धार दी।
सैन्य सूत्रों ने बताया कि चंडीगढ़, श्रीनगर समेत देश के विभिन्न हिस्सों से वायुसेना सी-17 ग्लोब मास्टर और रूस निर्मित आइएल-76 जहाजों के जरिए टैंक, एंटी एयर क्राफ्टगन समेत कई भारी हथियारों के अलावा सैनिकों के विशेष दस्तों को लेह पहुंचा रही है। लद्दाख में बीते एक सप्ताह के दौरान टी-90 टैंक भी पहुंचाए गए हैं। इन्हें चुशूल और गलवन सेक्टर में तैनात कर दिया गया है।
सैन्य सूत्रों ने बताया कि इस समय सेना की तीन आर्म्ड रेजिमेंट लद्दाख में हैं। एक आर्म्ड रेजिमेंट का दस्ता पहले से मौजूद था। तीन आर्म्ड रेजिमेंट की तैनाती से हालात का अनुमान लगाया जा सकता है। दरअसल, लद्दाख का अधिकांश इलाका पहाड़ी और दुर्गम है। चुशूल और दमचोक जैसे कुछ समतल इलाके भी हैं, जिनमें टैंक बहुत कारगर होंगे।
दुनिया के सबसे अचूक टैंक में शुमार है भीष्म
भीष्म को दुनिया के सबसे अचूक टैंक में एक माना जाता है। चीन ने एलएसी के पार अपने मुख्य बेस पर बख्तरबंद गाड़ियों के साथ टी-95 टैंक तैनात किए हैं, जो किसी तरह से भीष्म से बेहतर नहीं हैं। टी-90 टैंक शुरू में रूस से ही बनकर आए थे। बाद में इनका उन्नत रूप तैयार किया गया।
यह है भीष्म की खासियत
-एक मिनट में आठ गोले दागने में समर्थ यह टैंक जैविक व रासायनिक हथियारों से निपट सकता है।
-इसका आर्म्ड प्रोटेक्शन दुनिया में बेहतरीन माना जाता है, जो मिसाइल हमला रोक सकता है।
-एक हजार हार्स पावर इंजन की क्षमता वाला यह टैंक दिन और रात में लड़ सकता है।
-छह किमी की दूरी तक मिसाइल भी लांच कर सकता है।
-दुनिया के सबसे हल्के टैंकों में शुमार, वजन सिर्फ 48 टन।
-यह 72 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ सकता है।
-दमचोक और चुशूल की रेतीली व समतल जमीन पर तेज दौड़ने में सक्षम
18 हजार फुट की ऊंचाई पर भी टैंक संचालित कर चुकी सेना
लद्दाख में समुद्रतल से करीब 12 हजार से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर ही टैंक इस्तेमाल किए जाने की संभावना है, लेकिन भारतीय सेना पिछले कुछ वर्षो में युद्धाभ्यास के दौरान 18 हजार फुट की ऊंचाई पर भी टैंक सफलतापूर्वक संचालित कर चुकी हैं। लद्दाख में टैंक रेजिमेंट (जिसे आर्म्ड रेजिमेंट भी कहते हैं) की बढ़ती ताकत और मौजूदगी चीन के हौसले पस्त करने वाली है।
1962 के बाद पहली बार हवाई जहाज से पहुंचाए गए टैंक
वर्ष 1962 के बाद पहला अवसर है जब लद्दाख में टैंक व अन्य भारी साजो सामान को हवाई जहाज के जरिए पहुंचाया गया है। वायुसेना ने 1962 के युद्ध के दौरान 30 लांसर के छह एएमएक्स हल्के टैंक पहुंचाए थे। उन्हें भी चुशूल में ही तैनात किया गया था। इसके बाद 1990 के दशक में आइएल-76 विमान के जरिए टी-72 टैंक और बीएमपी-1/2 मैकेनाइज्ड इनफेंटरी कंबैट व्हिकल पहुंचाए गए थे।