बच नहीं पाएंगे खूंखार किशोर, राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास
तीन साल तक अनथक संघर्ष के बाद दिल्ली दुष्कर्म कांड पीडि़ता के माता-पिता को आंशिक इंसाफ मिल गया है। जनदबाव के बाद राज्यसभा ने मंगलवार को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक-2015 को पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। अब इसे मंजूरी के
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। तीन साल तक अनथक संघर्ष के बाद दिल्ली दुष्कर्म कांड पीडि़ता के माता-पिता को आंशिक इंसाफ मिल गया है। जनदबाव के बाद राज्यसभा ने मंगलवार को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक-2015 को पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। अब इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। इसके बाद हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों को कठोर दंड देने का रास्ता साफ हो जाएगा।
नए कानून में 16 साल या इससे अधिक उम्र के नाबालिग पर वयस्कों की तरह केस चलाने का प्रावधान किया गया है। अब कोई जघन्य नाबालिग अपराधी तीन साल में छूट नहीं सकेगा। उसे न्यूनतम सात और अधिकतम 10 साल की सजा हो सकेगी। हालांकि, फांसी का प्रावधान नहीं किया गया है।
इस मुद्दे पर सदन में चर्चा का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि किसी किशोर द्वारा बलात्कार किए जाने जैसे अपराध को कभी भी बचकाना कृत्य नहीं कहा जा सकता। विधेयक के दुरुपयोग के बारे में सांसदों की चिंताओं को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि 16 पहले किशोर न्याय बोर्ड देखेगा कि मामले की परिस्थितियां क्या थीं।
विधेयक को प्रवर समिति के सिपुर्द न करने के खिलाफ सीताराम येचुरी के नेतृत्व में वामदलों, राकांपा और द्रमुक सदस्यों ने वाकआउट किया। दूसरी तरफ कांग्रेस और तृणमूल समेत अनेक दलों ने विधेयक का समर्थन किया और इसे पारित करने में और विलंब नहीं करने की वकालत की।
16 साल से अधिक उम्र के जघन्य अपराधियों को कड़ा दंड देने के लिए कानून में संशोधन की मांग 16 दिसंबर, 2012 के चर्चित सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद उठी थी। उस मामले में शामिल किशोर को तीन साल की सजा के बाद पिछले रविवार को रिहा कर दिया गया। नए कानून को पूर्व प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकेगा। इसके चलते दिल्ली दुष्कर्म कांड के बालिग हो चुके नाबालिग दोषी पर इसका कोई असर नहीं होगा।
नए कानून के मुख्य प्रावधान
--16 से 18 साल के किशोर आरोपी पर वयस्कों की तरह केस चलेगा।
--हालांकि, 16 साल के जघन्य अपराधियों को सीधे जेल नहीं भेजा जाएगा।
--किशोर न्याय बोर्ड और मनोवैज्ञानिक तय करेंगे कि किया गया अपराध बच्चे जैसा है या दिमागी तौर पर वयस्क होने जैसा।
--जेल भेजे जाने के बाद भी बच्चे को अपील का अधिकार होगा।
--यदि नाबालिग को जेल की सजा हुई तो भी उसे 21 वर्ष का होने तक बाल सुधार गृह में ही रखा जाएगा।
--21 साल का होने के बाद बाद केस पर नए सिरे से विचार होगा।
जानें, नाबालिग अपराधों पर क्या कहते हैं देश और दुनिया के कानून