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फिर उठी कश्मीर में एक जगह टाउनशिप की मांग, जानिए- क्‍या है वजह

केंद्र सरकार ने कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए वादी के सभी 10 जिलों में अलग-अलग कश्मीरी पंडित कॉलोनियां तैयार करने का फैसला किया है।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 11:37 PM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 11:37 PM (IST)
फिर उठी कश्मीर में एक जगह टाउनशिप की मांग, जानिए- क्‍या है वजह
फिर उठी कश्मीर में एक जगह टाउनशिप की मांग, जानिए- क्‍या है वजह

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। कट्टरपंथी आतंकियों के कारण अपने घरों से बेघर हुए विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने एक बार फिर वादी में अपनी वापसी के लिए एक ही जगह सभी सुविधाओं से लैस कॉलोनी अथवा टाउनशिप बनाने पर जोर दिया है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के नाम पर हल जिले में अलग-अलग कॉलोनी बनाए जाने का विरोध करते हुए कहा कि पूरे समुदाय में सुरक्षा और विश्वास की बहाली के लिए उनका एक ही जगह पर रहना बेहतर है। उन्होंने घाटी में अपने सभी धर्मस्थलों के जीर्णोद्धार व उनकी परिसंपत्तियों पर अतिक्रमण को हटाने पर भी जोर देते हुए मंदिर एवं धर्मस्थल संरक्षण अधिनियम लागू किए जाने की मांग भी की।

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दरअसल, केंद्र सरकार ने कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए वादी के सभी 10 जिलों में अलग-अलग कश्मीरी पंडित कॉलोनियां तैयार करने का फैसला किया है। इनके अलावा ट्रांजिट आवासीय सुविधा भी बनाई गई। सरकार का मकसद है कि प्रत्येक जिले से संबंधित विस्थापित कश्मीरी पंडितों को घाटी लौटने पर उनके जिले में ही पुनर्वासित किया जाए। वहीं, कश्मीरी पंडित घाटी में एक ही जगह कॉलोनी में रहने की मांग कर रहे हैं। हाल ही में जम्मू के जगटी में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के दौरे के दौरान भी कश्मीरी पंडितों ने यह मांग उठाई।

पनुन कश्मीर के संयोजक डॉ. अजय चुरुंगु ने कहा कि कश्मीरी विस्थापितों की वादी वापसी और पुनर्वास के लिए अभी कोई व्यावहारिक योजना नहीं बनी है। हमारी मूल मांग सभी जानते हैं। आप अलग-अलग कॉलोनियों में कश्मीरी पंडितों को बसाएंगे, तो वह कश्मीर में कभी भी राजनैतिक, सामाजिक रूप से सशक्त नहीं हो पाएंगे। इसके अलावा वह हमेशा खुद को असुरक्षित महसूस करेंगे।

हिंदू वेल्फेयर सोसाइटी के चुन्नी लाल कौल ने कहा, 'मैंने कश्मीर से पलायन नहीं किया है। मैं दक्षिण कश्मीर का रहने वाला हूं और बीते 30 साल से यहां श्रीनगर में रह रहा हूं। आज कश्मीर में आपको हमारे गिने-चुने मंदिर ही नजर आएंगे। शमशान घाट समाप्त हो चुके हैं। कभी किसी नाले के पास तो कभी किसी गांव में मंदिर की जमीन के पास दाह संस्कार करते हैं। सिर्फ श्रीनगर शहर में ही एक शमशान घाट बचा हुआ नजर आता है। अगर अलग-अलग जिले में कॉलोनियां बनाने से वापसी संभव होती, तो फिर मैं यहां श्रीनगर में क्यों रहता। जो चंद परिवार वादी के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं, वह भी उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब यहां कश्मीरी पंडितों के लिए कोई अलग शहर बसाया जाएगा।

ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के पूर्व उपाध्यक्ष संजय सप्रू ने कहा कि कश्मीरी पंडित समुदाय वादी में एक ही जगह पर अपने लिए पुनर्वास चाहता है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने कश्मीरी पंडितों को अलग-अलग जगहों पर कॉलोनियों में बसाने की योजना तैयार की है, उन्हें कश्मीर के जमीनी हालात की समझ नहीं है।

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा कि अगर अलग-अलग जिलों में कॉलोनियां तैयार करने से, सरकारी रोजगार के आधार पर कश्मीरी पंडितों की वादी में वापसी संभव होती, तो आज जम्मू या दिल्ली में विस्थापित कॉलोनियां विरान हो चुकी होती। कश्मीरी पंडितों को वादी में राजनीतिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाना जरूरी है। कश्मीरी पंडितों में सुरक्षा की भावना पैदा होनी चाहिए, वो तभी होगी जब उन्हें यहां कोई आंख घूरती न हो।


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