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फसल बीमा से किसानों का मोह भंग, सरकार हुई चौकन्नी, योजनाओं को दुरुस्त करने में जुटा पीएमओ

चुनावी साल में सरकार कृषि क्षेत्र की सभी योजनाओं की खामियों को दूर करने में जुट गई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 13 Jun 2018 08:52 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jun 2018 08:52 PM (IST)
फसल बीमा से किसानों का मोह भंग, सरकार हुई चौकन्नी, योजनाओं को दुरुस्त करने में जुटा पीएमओ
फसल बीमा से किसानों का मोह भंग, सरकार हुई चौकन्नी, योजनाओं को दुरुस्त करने में जुटा पीएमओ

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। चुनावी साल में सरकार कृषि क्षेत्र की सभी योजनाओं की खामियों को दूर करने में जुट गई है। खेती को जोखिम से बचाने के लिए शुरु की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों का मोह भंग होने लगा है, जिससे सरकार चौकन्नी हो गई है। खेती की गेम चेंजर के रूप में पेश की गई फसल बीमा योजना की हालत पस्त है। साल दर साल इसकी कवरेज में कमी होने को लेकर सरकार की चिंताएं बढ़ गई है। योजना को दुरुस्त करने के लिए बुधवार को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक बैठक की गई, जिसमें कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह को भी बुलाया गया था।

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- प्रधानमंत्री कार्यालय में फसल बीमा की हुई समीक्षा बैठक

योजना को लेकर विपक्षी दलों और किसान संगठनों की ओर से कई तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। इसके मद्देनजर केंद्र की सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को चाक चौबंद करने में जुट गई है। फसल बीमा योजना के प्रचार प्रसार को बढ़ाने और कवरेज की रफ्तार को गति देने पर जोर दिया जा रहा है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बिहार जैसे राज्य ने तौबा कर लिया है। उसकी जगह राज्य सरकार ने अपनी बीमा योजना चालू की है। इस योजना में किसानों को किसी प्रीमियम का भुगतान नहीं करना पड़ेगा, जबकि फसल बीमा का लाभ उसे पूरा मिलेगा। फसल बीमा के प्रीमियम का पूरा बोझ राज्य सरकार उठाएगी।

खेती वाली कुल जमीन 19.84 करोड़ हेक्टेयर रकबा है, जिसमें से 50 फीसद रकबा को वर्ष 2018-19 तक फसल बीमा योजना में शामिल करने का लक्ष्य है, लेकिन पिछले दो सालों के बीमा के आंकड़े इसके विपरीत हैं। वर्ष 2016-17 में जहां 5.97 करोड़ हेक्टेयर जमीन की खेती का बीमा हुआ था, वह वर्ष 2017-18 में घटकर 4.76 करोड़ हेक्टेयर रह गया। यानी 20 फीसद की गिरावट दर्ज की गई। इससे तो फसल बीमा योजना की 50 फीसद खेती की कवरेज का लक्ष्य बहुत दूर हो जाएगा।

वर्ष 2018-19 के आम बजट में 13 हजार करोड़ रुपये का आवंटन फसल बीमा योजना के मद में किया गया है, जो पिछले वित्त वर्ष 2017-18 के नौ हजार करोड़ रुपये यानी 44 फीसद अधिक है। विपक्षी दलों के आरोपों की वजह भी है, जिसमें बीमा वाली पांच सरकारी कंपनियों के साथ 13 प्राइवेट कंपनियां शामिल हैं। बीमा कंपनियां जहां बीमा प्रीमियम वसूलने में सबसे आगे रहती हैं, वहीं किसानों के मुआवजे को लेकर हमेशा टांग अड़ाती रहती हैं।

प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई बैठक में जिन विषयों पर चर्चा हुई, उसमें बीमा करने वाली कंपनियों और बीमा का प्रीमियम काटने वाले संबंधित बैंकों की पहुंच किसानों तक नहीं होती है। ग्राम स्तर तक किसी बीमा एजेंट के न होने से इसका कवरेज कृषि ऋण लेने वाले किसानों तक सीमित हो गया है। गैर-ऋणी किसानों के बीच फसल बीमा बहुत आकर्षक नहीं हो पा रही है। इसकी गति बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।

आपदा से खेती के प्रभावित होने के बाद किसानों के भुगतान की प्रक्रिया बहुत सरल नहीं है। तकनीकी प्रक्रिया की जटिलता से मुश्किलें बढ़ गई हैं। प्राइवेट कंपनियों की पूरी कोशिश दावों के भुगतान में अड़ंगा लगाना हो गया है। आपदाओं में होने वाले नुकसान के आकलन के लिए जिस प्रौद्योगिकी के उपयोग की बात कही गई, उसमें भी कई तरह की चूक की बात सामने आई है, जिसमें सुधार की बात कही गई है। कृषि मंत्रालय इसे बिना किसी प्रीमियम के ही लागू करने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। इसके लागू होने पर आने वाले व्यय का भी अनुमान लगा रहा है।


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