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राज्यों की ओर से जांच की सहमति वापस लिए जाने से CBI में बेचैनी, कानून बदलने की जरूरत बता रहे अधिकारी

एक-एक करके राज्यों की ओर से सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट) के वापस लेने से सीबीआइ में बेचैनी बढ़ गई है। सीबीआइ के अधिकारियों का कहना है कि इससे केंद्रीय जांच एजेंसी (Central Bureau of Investigation CBI) का कामकाज बुरी तरह प्रभावित होगा...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 08:04 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 03:28 AM (IST)
राज्यों की ओर से जांच की सहमति वापस लिए जाने से CBI में बेचैनी, कानून बदलने की जरूरत बता रहे अधिकारी
अधिकारी डीपीएसई एक्ट में तत्काल संशोधन की जरूरत बता रहे हैं।

नीलू रंजन, नई दिल्ली। एक-एक करके राज्यों की ओर से सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट) के वापस लेने से सीबीआइ में बेचैनी बढ़ गई है। सीबीआइ के अधिकारियों का कहना है कि इससे केंद्रीय जांच एजेंसी का कामकाज बुरी तरह प्रभावित होगा और साथ ही अपराधियों को सजा दिलाने में उसकी मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी। सीबीआइ की साख कायम रखने के लिए अधिकारी दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिस्मेंट (डीपीएसई) एक्ट में तत्काल संशोधन की जरूरत बता रहे हैं।

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एक एक करके सहमति वापस ले रहे राज्‍य

बीते दिनों महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआइ को दी गई सामान्य सहमति वापस ले लिया था। छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और राजस्थान पहले ही इसे वापस ले चुके हैं और केरल ने भी वापस लेने का संकेत दिया है। इस मसले की संवेदनशीलता को देखते हुए सीबीआइ का कोई भी अधिकारी आधिकारिक रूप से कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में उनकी चिंता साफ झलकती है।

जल्‍द उठाने होंगे कदम

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मौजूदा समय में अपराध किसी राज्य और देश की सीमा तक सीमित नहीं रह गया है। इसके तार दूर-दूर तक फैले होते हैं। किसी दूसरे देश में जांच के लिए सीबीआइ को इंटरपोल या फिर कूटनीतिक चैनल से लेटर रोगेटरी के माध्यम से सबूत जुटाने पड़ते हैं। अधिकारी ने कहा कि यदि जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो सीबीआइ को जांच के लिए देश के भीतर भी इसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा।

अब तो अदालतों का ही भरोसा

सीबीआइ के लिए राहत की बात केवल इतनी है यदि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट आदेश दे दें तो फिर सामान्य सहमति की जरूरत नहीं पड़ेगी। सीबीआइ की अभियोजन इकाई (प्रोसीक्यूशन विंग) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार समस्या सीबीआइ के गठन के लिए बनाए गए डीएसपीई एक्ट में है। इस एक्ट के तहत सीबीआइ को एक केंद्रीय पुलिस बल रूप में मान्यता है और कानून व्यवस्था राज्य का विषय होने के कारण राज्यों में जांच का उसका अधिकार सीमित हो जाता है।

जांच के लिए राज्‍य सरकारों की सहमति जरूरी

इसके लिए डीएसपीई एक्ट में सेक्शन पांच और छह का प्रावधान किया गया है जिसके तहत राज्यों के अनुरोध और केंद्र सरकार की सहमति से सीबीआइ राज्य से जुड़े मामले की जांच का अधिकार मिल जाता है। अपराधिक तंत्र के कई राज्यों में फैले होने के कारण सामान्य सहमति के माध्यम से सीबीआइ की जांच को सहज बनाने की कोशिश की गई थी जो अब खत्म हो रहा है।

डीएसपीई एक्ट में संशोधन की जरूरत

अभियोजन इकाई के एक अधिकारी के अुनसार, भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसी के रूप में सीबीआइ की अहमियत को बनाए रखने के लिए 74 साल पुराने डीएसपीई एक्ट में संशोधन की जरूरत है। ताकि सीबीआइ भ्रष्टाचार के मामलों में वह स्वतंत्र रूप से काम कर सके। अधिकारी के अनुसार यह मुश्किल भी नहीं है। आतंकवाद के खिलाफ जांच के लिए साल 2008 में गठित एनआइए को पूरे देश में जांच की आजादी है।

बाकी एजेंसियों की तरह मिले अधिकार

यही नहीं राज्य की सहमति के बिना भी केंद्र सीधे एनआइए जांच का आदेश दे सकती है। इसी तरह मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत ईडी की जांच में कोई प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि एनआइए और ईडी की जांच में कानून-व्यवस्था के राज्य का विषय होने की बाधा नहीं है तो फिर सीबीआइ की जांच के लिए इसकी जरूरत क्यों रहनी चाहिए। अधिकारी ने कहा कि डीएसपीई एक्ट में संशोधन कर इसे आसानी से दूर किया जा सकता है। 


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