अहोम राजाओं की राजधानी बनने का गौरव पाने से लेकर बाढ़ की त्रसदी झेलता धेमाजी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को असम के धेमाजी पहुंचे। बीते एक महीने में यह तीसरा असम दौरा है। दौरे में वे जहां-जहां भी गए उन इलाकों का कोई न कोई ऐतिहासिक महत्व रहा है। इसी तरह धेमाजी का भी महत्व है।
जेएनएन, नई दिल्ली। गुवाहाटी से लगभग 400 किलोमीटर दूर स्थित धेमाजी पुरातन इतिहास, कला-संस्कृति के साथ बाढ़ त्रसदी का भी गवाह रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में बसे इस जिले के पिछले हिस्से में अरुणाचल बसा है। जहां से हिमालय की पहाड़ियां नजर आती हैं। हिमालय और ब्रह्मपुत्र नदी की वजह से यहां की धरती में कई तरह की वनस्पतियां हैं।
भारत-चीन लड़ाई से लेकर उल्फा के हमले झेल चुका है धेमाजी : अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा यह शहर ऐतिहासिक अहोम राजाओं से जुड़े स्थानों से लेकर वर्ष 1965 की भारत-चीन लड़ाई और वर्ष 2004 में उल्फा उग्रवादियों द्वारा किए गए बम हमले (जब धेमाजी स्कूल के बहुत से छात्र मारे गए थे) असम के इतिहास में इस जिले की उपस्थिति को दर्शाते हैं।
धेम खेमली से बना धेमाजी : धेमाजी का बाढ़ से पुराना नाता रहा है। मान्यता थी कि यहां की एक नदी थी जो बार-बार अपना पाट (किनारा) बदल लेती थी। इसकी वजह से किसी भी समय अप्रत्याशित रूप से बाढ़ आ जाती थी। गांववाले इसे बुरी आत्मा का साया मानते हुए कहते थे कि नदी के लिए यह धल धेमली यानी खेल का मैदान है। इसका ही अपभ्रंश है धेमाजी। समय बदला लेकिन बाढ़ जस की तस है।
तीन तरह के बीहू उत्सव होते हैं : त्योहारों में असम और अरुणाचल दोनों का प्रभाव दिखता है। बीहू तीन प्रकार से मनाया जाता है-बोहाग बीहू, कांगाली बीहू और भोगाली बीहू। बोहाग बीहू वैशाख महीने में मनाया जाने वाला त्योहार है। किसान खेतों में पहली बार हल डालते हैं। खेतों की फसल को कीड़े लग जाने पर ईश्वर को याद करते हुए कांगली बीहू मनाया जाता है। भोगाली बीहू में तिल, चावल, नारियल, गन्ना आदि फसलें तैयार होकर आ जाती हैं।
बुनाई का पारंपरिक कौशल : धेमाजी की मूल निवासी महिला बहुत अच्छी बुनाई करती है। यह पंरपरागत तरीके से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती चली आ रही है। माना जाता है कि यहां की महिलाओं में प्राकृतिक रंगों के संबंध में इनका ज्ञान बहुत खास होता है। पारंपरिक रूप से कपास की खेती कर रुई तैयार करना और उस धागे से कपड़े तैयार करना इनकी दिनचर्या में शामिल है। इन कपड़ों को मेंडि कहते हैं। जैकेट, तौलिया, मफलर, चादर और शॉल शामिल है। 170 से ज्यादा बुनकरों की सहकारी संस्थाएं हैं।
पुरूषों के कंधे पर गमछा विशेष पहचान : इनकी पारंपरिक पोशाक विशेष अवसरों पर देखने में आती है, लेकिन यहां पुरुषों के कंधे का गोमोसा या गमछा सबको एक साथ जोड़े रखता है। मूल निवासियों की संस्कृति में बहुत कुछ ऐसा है, जो एक दूसरे से अलग है, पर कुछ ऐसी बातें भी हैं जो उनमें समान हैं। उनमें भाषाई भिन्नता है तो खानपान की समानता है। पहनावे में समानता है, पर संस्कृति में अंतर है।
प्रमुख पांच जनजातियां रहती हैं यहां : प्राचीन काल में समूचा धेमाजी स्थानीय मूल निवासियों का निवास स्थान था। इनमें मिसिंग, सोनोवाल, कचारी, देओरी और लालूंग आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा, अहोम, राभा, ताई खाम्ति, कोंच, केवट, कोलिबोर्ता, कलिता आदि मूल निवासी भी यहां निवास करते हैं। दरअसल, अलग-अलग लोग अपनी अलग भाषा, विधि-विधान और परिधान के साथ खास विशिष्टता लिए हुए हैं। समग्र रूप में वे स्थानीयता को बहुआयामी बना देते हैं। जैसे, मिसिंग की भाषा और लिपि बोडो से अलग है।
अहोम राजाओं ने दो बार नियंत्रण में लिया था धेमाजी को : धेमाजी जिला प्रशासन द्वारा दी गईं जानकारी के अनुसार 1240 ईस्वी के आसपास प्रथम अहोम राजा चुकाफा ने धेमाजी जिले के हाबूंग नामक स्थान पर अपनी राजधानी बनाई, पर यहां बार-बार आने वाली बाढ़ की वजह से अपनी राजधानी बदल ली। उसके बाद यह चुटिया राजाओं के अधीन आ गया। 1523 ई. में एक बार फिर अहोम राजा चुहुंग-मूंग ने चुटिया राज्य पर हमला करके धेमाजी को नियंत्रण में लिया।