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अोडिशा में 11 दिनों तक शासन करता है कंस, पिछले सात दशक से जारी है ये अनूठी परंपरा

एक गांव ऐसा है जहां हर साल 11 दिनों तक कंस महाराज जनता पर हुकूमत करते हैं। जनता ही नहीं मंत्री, संतरी, डीएम और पुलिस कप्तान तक उनके आदेश का पालन करते हैं।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 09:08 AM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 05:23 PM (IST)
अोडिशा में 11 दिनों तक शासन करता है कंस, पिछले सात दशक से जारी है ये अनूठी परंपरा
अोडिशा में 11 दिनों तक शासन करता है कंस, पिछले सात दशक से जारी है ये अनूठी परंपरा

राउरकेला, मुकेश सिन्हा। ओडिशा का एक गांव ऐसा है जहां हर साल 11 दिनों तक कंस महाराज जनता पर हुकूमत करते हैं। जनता ही नहीं मंत्री, संतरी, डीएम और पुलिस कप्तान तक  उनके आदेश का पालन करते हैं। कंस महाराज सड़कों पर घूम कर व्यवस्था का जायजा लेते हैं। बढिय़ा काम के लिए अफसरों को पुरस्कृत व दंडित भी करते हैं।

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एक मर्तबा आधुनिक ओडिशा के  निर्माता पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बीजू पटनायक को भी कंस महाराज सजा सुना चुके हैं। यदि आप यह नजारा देखना चाहते हैं तो इस साल 11-21 जनवरी को ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से  320 किलोमीटर दूर बरगढ़ जिला जरूर चले आइए। वर्ष 1948 से यहां पर धनु यात्रा आयोजित होती चली आ रही है। यह यात्रा विश्वस्तर पर पहचान बना चुकी है।

आयोजकों के अनुसार,  बरगढ़ जिले को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में सबसे बड़े रंगमंच (ओपेन) की मान्यता मिली  हुई है, क्योंकि धनुयात्रा के दौरान पूरा शहर ही रंगमंच में तब्दील हो जाता है। बरगढ़ के दूसरे आश्चर्य महाभारत काल के शासक कंस महाराज हैं। जिनका नाश खुद भगवान श्रीकृष्ण ने किया था। उसी कंस महाराज को धनु यात्रा के दौरान लोग बरगढ़ में हीरो मानते हैं। कंस महाराज को एक बेहतरीन शासक, प्रजा की देखभाल करने वाला राजा और दंडविधान को सुचारू रूप से लागू करने वाला शासक माना जाता है। उनके शासन में उनकी प्रजा खुशहाल रहती है।

हर कोई मानता है कंस का आदेश
धनु यात्रा के दौरान केवल कंस महाराज की ही चलती है। यहां मंत्री, संतरी, डीएम, एसपी  यानी सभी कंस महाराज के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। एक बार ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे स्व. बीजू पटनायक को भी कंस महाराज सजा सुना चुके हैं। यात्रा के दौरान कंस महाराज शहर में घूम-घूम कर विकास कार्यों का जायजा लेते हैं। गलती देखकर फटकार लगाना और अच्छे काम देखकर पुरस्कार देना उनके शासन का एक अहम कार्य है। बरगढ़ की जनता भी कंस महाराज को  भरपूर सम्मान देती है। उनके हर आदेश का पूरी तरह पालन करती है। कोशिश होती है कि किसी तरह से उनके आदेश की नाफरमानी नहीं हो।

बदल जाते हैं गांव और नदी के नाम
धनु यात्रा के दौरान बरगढ़ शहर मथुरा में तब्दील हो जाता है। जबकि शहर से सटा अंबापाली गोपापुर बन जाता है। इन दोनों के बीच बहने वाली जीरा नदी युमना नदी में तब्दील हो जाती है। इस दौरान यहां इन्हीं नामों से बरगढ़ शहर, अंबापाली गांव और जीरा नदी को  पुकारा जाता है। हाथी पर सवार होकर कंस महाराज शहर घूम-घूम कर अपने शासन का एहसास  दिलाते हैं।

दरबार में प्रजा सुनाती हैं समस्याएं
इस दौरान कंस महाराजा का दरबार भी आयोजित होता है। जनता अपनी समस्याएं लेकर पहुंचती है। बिजली, पानी, सड़क व स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं जनता महाराज के समक्ष रखती  है। महाराज कंस फरमान जारी कर संबंधित अधिकारी को दरबार में हाजिर होने के लिए कहते  हैं। अधिकारियों को महाराजा कंस की फटकार भी सुननी पड़ती है।

सात दशक पुरानी है यह धनुयात्रा
धनुयात्रा करीब सात दशक पुरानी है। देश आजाद होने के एक साल बाद वर्ष 1948 में इस  उत्सव की शुरुआत हुई। तब से यह जारी है। देश-विदेश से लोग धनु यात्रा को देखने के लिए बरगढ़ आते हैं। आयोजन में जिला प्रशासन की भूमिका अहम होती है। आयोजन समिति के साथ  मिलकर सारी व्यवस्था सुचारु की जाती है, ताकि किसी तरह की परेशानी नहीं हो।

कंस के वध से समापन
धनु यात्रा के दौरान भले ही कंस महाराज को हीरो की तरह प्रजा मानती है, लेकिन उनका  अंत भगवान श्रीकृष्ण के हाथों होता है। महाभारत के कंस वध वाले अध्याय का यहां विधिवत मंचन किया जाता है। कंस वध के साथ ही धनु यात्रा संपन्न होती है। 


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