अदभुत होता है देव दीपावली में काशी के गंगा घाटों का नजारा, इस बार भी होगी बेहद खास
देव दीपावली का यह भव्य स्वरूप धीरे-धीरे विकसित हुआ। लेकिन 1986 को तत्कालीन काशी नरेश डा. विभूति नारायण सिंह की पहल से यह संभव हो सका।
सौरभ चक्रवर्ती, वाराणसी। उत्सव धर्मी काशी में हर दिन त्योहार और पर्वों की परंपराएं जीवंत होती रहती हैं। देश में एक ओर दीपावली की खुशियां अगले साल के लिए इंतजार की कतार में बाट जोहने लगती हैं तो दूसरी ओर काशी में देव दीपावली की तैयारियां रोशनी के अनुपम पलों को गंग धार में खोजने को व्याकुल हो उठती हैं। यह काशी की देव दीपावली है जिसका काशी ही नहीं पर्यटक भी खूब बेसब्री से इंतजार करते हैं। चौरासी घाटों पर रोशनी का चंद्रहार पूरे खिले हुए चांद की रोशनी को चुनौती देता नजर आता है। रोशनी से नहाए गंगा घाट मां गंगा की लहरों में अनुपम छवियों को न्यौता इस तरह देते हैं मानो चांदनी को चुनौती दे रहे हों। इस अनुपम पल को कैमरे में कैद करने को उतावले सैलानियों संग गंगा की धार भी नौका और बजड़ों से ट्रैफिक जाम में बदल जाती है।
दरअसल देव दीपावली का यह भव्य स्वरूप धीरे-धीरे विकसित हुआ। केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष आचार्य वागीश दत्त मिश्र के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पूर्व में भी काशी की परंपरा रही है मगर 1986 को तत्कालीन काशी नरेश डा. विभूति नारायण सिंह की पहल से यह संभव हुआ। उन्होंने पंचगंगा घाट पर इस दिन शाम को गंगा आरती की और तभी से यह परंपरा पुन: शुरू हो गई। अब तो बालीवुड के सितारे भी देव दीपावली के आयोजन में शामिल होने आने लगे हैं। इस बार अनिल कपूर और उनकी बेटी सोनम कपूर के भी आयोजन में शामिल होने की संभावना है।
हजारा ‘दीपस्तंभ’ में हजार से ज्यादा दीप
पंचगंगा घाट यानी जहां कभी गंगा के अलावा यमुना, सरस्वती, धूतपापा और किरणा नदियों का संगम तट रहा। यह ऋषि अग्निबिंदु की तपोभूमि रही। यहां देव, माधव के रूप में प्रकट हुए थे और सम्पूर्ण क्षेत्र बिंदुमाधव के रूप में विख्यात है। इसी पवित्र स्थल पर 17वीं सदी के उत्तरार्ध में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित पत्थरों से बना बेहद खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ इस परंपरा का द्योतक है। ‘हजारा दीपस्तंभ’ में हजार से ज्यादा दीप देव दीपावली की शाम जगमगा उठते हैं। घाटों पर दीप जलाये जाते हैं। घाट पर श्रीमठ से सटा एक दीप स्तंभ भी जलाया जाता है। इसे ‘दियटी’ कहा जाता है।
उत्सव-महोत्सव और अब जनोत्सव
सप्तपुरी काशी में पूनम की रात देवताओं संग दीपावली मनाने की अनिर्वचनीय बेला आ गयी। जब सांझ थक कर ढलने लगेगा, उस क्षण धनुषाकार घाटों पर पुरनूर दीपों की चमकीली आभा बांहे फैला देंगी। सुरसरी के पथरीले तट पर असंख्य दीपों की अनंत कतार गंगधार के समानान्तर बहेगी। दीप गंगा के मोहपाश में लाखों लोग घाट किनारे खिंचे चले आएंगे। अस्सी से आदिकेशव घाट तक के करीब 10 किलोमीटर तक फैले घाट पर मधुर जनकलवर गूंजेगा और हर मन आस्था पूरित अविस्मरणीय पल को पूजेगा। पंचनद तीर्थ में पुष्पित-पल्लवित देव-दीपावली का उत्सवी अंकुर महोत्सव और अब जनोत्सव का रूप धर चुका है। काशी के इस नये लक्खा मेले की शुरुआत बांस पर टंगे टिमटिमाते आकाशदीप से होती है। जो कि गंगा किनारे माह भर जलते हुए कार्तिक पूर्णिमा की शाम कोटि-कोटि दीपों में अपनी चमक बिखेरते हुए अवतरित होती है। विगत 18 से 20 साल के अंदर यह लोकोत्सव का रूप ले लिया है।
पर्यटकों का उत्साह चरम पर
देवदीपावली देखने के लिए बनारस आने वाले पर्यटकों का उत्साह दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सभी बड़े होटलों के लगभग सभी रूम 22-23 नवंबर की डेट में बुक हो चुके हैं। यही हाल गंगा किनारे के बजड़ों व नावों का भी है। अब दो से ढाई लाख देने पर भी बजड़े उपलब्ध नहीं हो रहें। नाव की बुकिंग 70 हजार से डेढ़ लाख रुपये में हो रही है। देवदीपावली पर काशी आने वाले पर्यटकों को बनारसी व्यंजन, परिधान व गीत-संगीत का आनंद देने की भी व्यवस्था की गई है। बनारस होटल एसोसिएशन की ओर से सभी होटल व लॉज को खास तौर इस दिशा में व्यवस्था करने को कहा गया है। कुंभ मेला व प्रवासी भारतीय सम्मेलन को देखते हुए इस बार की देवदीपावली महत्वपूर्ण है। बेहतर इंतजाम होगा तो आने वाले दिनों में बनारस की और साख बढ़ेगी।
जलाएंगे दीये, करेंगे नौकायन
देवदीपावली को लेकर इन दिनों घाटों की साफ-सफाई के साथ ही कार्यक्रम की सफलता के लिए रूपरेखा तैयार की जा रही है। आयोजन समितियों की ओर से घाटों को सजाने का कार्य चल रहा है। इस अवसर पर हर साल यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। वे अब ग्रुप में यहां आने लगे हैं। इसके लिए वे महीनों पहले कमरे और बजड़े की बुकिंग करा ले रहे हैं, ताकि यहां आने पर कोई परेशानी न हो। पर्यटक घाटों पर दीये जलायेंगे, नौकायन करेंगे और यहां की संस्कृति की खासियत को जानेंगे। देवदीपावली का क्रेज देश के साथ विदेशों में भी है।
आसपास से भी मंगाई जाती हैं नाव
देव दीपावली पर 84 गंगा घाटों की छटा देखते ही बनती है। देव दीपावली के लिए बजड़े और नाव मिलना मुश्किल हो रहा है। पर्यटन एजेंसियों ने तो छह महीना पहले से ही बजड़े बुक कर रखे हैं और अब इनके दाम आसमान छू रहे हैं। मंझोली और छोटी नौकाओं की भी बुकिंग हो चुकी है। इस अवसर को टूर एंड ट्रेवल एजेंसियां भी अपने फायदे के लिए भुनाने में जुट गई हैं। गंगा घाटों पर दो से ढाई हजार से ज्यादा नाव और बजड़े हैं। इनके कम पडऩे पर चुनार, मीरजापुर, कैथी, सराय मोहना की भी नावें भी रोशन के इस पारंपरिक पर्व के लिए बुक हो रही हैं। इस बार बड़े बजड़े की बुकिंग 2.50 लाख में तो मझोले 1.50 लाख से लेकर 80 हजार तक में की जा रही है। बड़ी नाव 20 से 25 हजार तो मझोली 15 हजार और छोटी नाव पांच से 10 हजार रुपये में बुक की गई हैं।
बोले होटल कारोबारी
जनपद के करीब एक हजार होटल, लाज, धर्मशाला आदि की बुकिंग देवदीपावली के लिए हो चुकी है। गंगा घाट व शहरी क्षेत्र के होटल तो ग्राहकों ने पहले ही रिजर्व करा रखे हैं। कुछ पर्यटक हर साल यहां आते हैं तो कुछ नए भी हैं। कुंभ व प्रवासी भारतीय सम्मेलन के लिए अभी से बुकिंग चल रही है।
- गोकुल शर्मा, महामंत्री, बनारस होटल एसोसिएशन।
बोले नौका संचालक
देवदीपावली पर देश व विदेश के पर्यटक आते हैं। नाव-बजड़े की सवारी कर घाट व दीपोत्सव की रौनक देखते हैं। हर साल पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे नाव-बजड़ों की संख्या भी बढ़ानी पड़ रही है। बनारस के अलावा आसपास के क्षेत्रों से नाव-बजड़ा मंगाई जाती है। छोटी नाव छोड़ सभी बुक हो चुके हैं।
- सुभाष चंद्र साहनी, महामंत्री, उप्र मल्लाह एसोसिएशन।