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भारतीय समाज में नारी की बहुमुखी भूमिका होते हुए भी पुरुष प्रधान समाज नारी के स्वास्थ्य के प्रति पर्याप्त संवेदनशील नहीं

महिलाएं बेटी पत्नी और मां के रूप में हर तरह से करती हैं अपने फर्ज का निर्वहन और कोविड-19 के में इन पर पड़ा है जिम्मेदारी का अतिरिक्त दबाव। इसलिए घर के हर सदस्य को चाहिए कि वह न सिर्फ इनका सम्मान करे इनकी बल्कि सेहत का भी रखे ख्याल...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 04:12 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 04:12 PM (IST)
भारतीय समाज में नारी की बहुमुखी भूमिका होते हुए भी पुरुष प्रधान समाज नारी के स्वास्थ्य के प्रति पर्याप्त संवेदनशील नहीं
नारी स्वास्थ्य का मतलब परिवार, शहर और देश का स्वास्थ्य है।

मयंक चतुर्वेदी। भारतीय संस्कृति में नारी का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि धरती और विशेष रूप से भारत को माता के रूप में पूजा जाता है, लेकिन यह देखा जाता है कि भारतीय समाज में नारी की बहुमुखी भूमिका होते हुए भी पुरुष प्रधान समाज नारी के स्वास्थ्य के प्रति पर्याप्त संवेदनशील नहीं दिखता। ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक भारतीय नारी को अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि नारी स्वास्थ्य का मतलब परिवार, शहर और देश का स्वास्थ्य है।

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न होने पाए खून की कमी: चाहे वह किशोरी हो, गर्भवती महिला या बच्चे को स्तनपान कराने वाली माता। ज्यादातर महिलाएं आयरन की कमी के चलते खून की कमी का शिकार होती हैं। महिलाओं के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को साधारणत: रक्तहीनता कहा जाता है। इससे शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन युक्त खून पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता, जो कि शरीर की हर कोशिका को जीवित रखने के लिए जरूरी होता है। रक्तहीनता के कारण शरीर में थकान, सांस फूलना और अन्य गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे स्थिति में आयरन यानी लौह युक्त पौष्टिक भोजन पर ध्यान देना जरूरी है।

भारतीय परंपरा में कई व्रत में गुड़ और चने के प्रसाद के रूप में सेवन के पीछे शायद यही वैज्ञानिक तर्क है। इस प्रसाद से प्राकृतिक रूप में मिल रहा आयरन व प्रोटीन किसी भी दवाई से बेहतर है और इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं है। लोहे की कड़ाही में पकी हरी सब्जियों का सेवन भी रक्तवृद्धि में सहायक होता है। छोटी बच्चियों और बढ़ती उम्र की किशोरियों को हड्डियों के विकास के लिए कैल्शियम युक्त व मासिक रक्तस्राव से जनित खून की कमी की र्पूित के लिए लिए आयरन युक्त पौष्टिक भोजन अनिवार्य रूप से मिलना ही चाहिए। कारण, इनमें रक्त की कमी न सिर्फ कई बीमारियों को जन्म देती है, बल्कि शारीरिक विकास में बाधा बनती है।

हर सदस्य की है जिम्मेदारी: गर्भवती महिलाओं का विशेषतौर पर ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि गर्भवती महिला के साथ शिशु का जीवन भी जुड़ा होता है। सारे मिनरल्स और विटामिंस से परिपूर्ण पौष्टिक आहार गर्भवती महिला और उसके होने वाले बच्चे के लिए अत्यंत जरूरी है साथ ही गर्भधारण के दौरान होने वाली शारीरिक और मानसिक पीड़ा से निपटने के लिए उनका शारीरिक और मानसिक साथ देना परिवार के हर सदस्य की जिम्मेदारी है। गर्भवती माता की स्वस्थ मानसिक स्थिति न केवल नौ महीने सुखद गर्भधारण के लिए जरूरी है, बल्कि शिशु की सेहत के लिए भी जरूरी है। मां का तनाव शिशु के शारीरिक तथा मानसिक विकास को प्रभावित करता है। महाभारत में र्विणत अभिमन्यु की गाथा को अगर वैज्ञानिक चिंतन से जोड़कर देखा जाए तो यह सार निकलता है कि स्वस्थ व बुद्धिमान बच्चे के जन्म के लिए माता का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है। इसके लिए पारिवारिक जिम्मेदारी अनिवार्य है।

इन्हें चाहिए आपका प्यार: प्रौढ़ व वृद्ध महिलाओं में उम्र के साथ हार्मोंस में बदलाव स्वाभाविक है। इसके कारण कैल्शियम कम होने से ऑस्टियोपोरोसिस हो जाती है यानी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इससे सामान्य स्थिति में भी पैर या हाथ मुड़ जाने से हड्डियों के टूटने का खतरा रहता है। ऐसे में आपकी जिम्मेदारी बनती है कि समय पर कैल्शियम युक्त भोजन तथा कैल्शियम सप्लीमेंट, हार्मोन से जुड़ी दवाइयां, समय-समय पर चिकित्सक की सलाह और शारीरिक व मानसिक रूप से सहयोग जरूर देते रहें। इन्हें प्राणायाम, व्यायाम आदि में व्यस्त रखें, जिससे एकाकीपन का अहसास न हो।

कई बुजुर्ग महिलाएं जिनका भरा-पूरा परिवार होता है। फिर भी उनके भोजन और आवश्यकताओं का विभाजन कर दिया जाता है। इससे भी उनकी मानसिक व शारीरिक स्थिति बिगड़ती है। परिणामस्वरूप वे गंभीर समस्याओं से ग्रसित हो सकती हैं। जिन महिलाओं का बच्चों द्वारा ध्यान रखा जाता है, उनका जीवन सुखद होता है। ऐसे माता-पिता का स्वस्थ रहना परिवार में खुशहाली लाता है। इसके साथ आपको भी यह याद रखना है कि एक महिला, बेटी, पत्नी और फिर घर की बुजुर्ग महिला के रूप में अपना पूरा जीवन परिवार को समर्पित करती है और हम सबको उसी पड़ाव पर पहुंचना है।

तोड़नी होगी परंपरा: जिस तेजी से कामकाजी महिलाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है, उससे महिलाओं को ज्यादा परंपरावादी बनने की जरूरत नहीं है। वे अपनी सेहत का ख्याल रखें और इस धारणा से उबरें कि पहले घर के सभी सदस्य भोजन कर लें फिर जो बचेगा खा लूंगी। यदि गृहणी स्वस्थ नहीं तो परिवार स्वस्थ नहीं रह सकता।

असल कोरोना योद्धा हैं महिलाएं

आज के दौर में कामकाजी महिलाएं जब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं तो उनका सहयोग करना भाई, पिता और पति का कर्तव्य है। आज की महिलाएं तो वैसे भी दोहरी भूमिका निभा रही हैं। अक्सर कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल से लेकर घर तक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जबकि महिलाओं का ख्याल रखना परिवार की नैतिक जिम्मेदारी है। फल-सब्जियों से भरा पौष्टिक खाना और उनके हर तनाव में एक साथी के रूप में सहयोग हमारा फर्ज है। महिलाओं को भी चाहिए कि समय-समय पर अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए पौष्टिक आहार लेना और परिवार एवं कार्यक्षेत्र में संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

कोरोना काल में जब अधिसंख्य लोग घर में रह रहे हैं तो महिलाओं के लिए मानसिक व शारीरिक दबाव का और सामना करना पड़ रहा है। ऐसी कामकाजी महिलाएं जो पेशे से पळ्लिस, चिकित्सक, नर्स, सफाई कर्मचारी या अति आवश्यक संस्थाओं में काम कर रही हैं। इन परिस्थितियों में उन पर काम का अतिरिक्त दबाव है। महामारी के दौर में भी कार्यक्षेत्र व परिवार में उन्हें अनावश्यक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ता है। मौजूदा हालात में चाहे गृहिणी हो या कामकाजी महिला,उनके संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना न केवल परिवार व समाज की जिम्मेदारी है, बल्कि सरकार की भी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए और पूरा सम्मान मिलना चाहिए। वास्तव में घर संभालने से लेकर विभिन्न जिम्मेदारियां निभा रहीं असल कोरोना योद्धा तो महिलाएं ही हैं।


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