डिप्रेशन के दौरान दीपिका पादुकोण रोईं, घबराईं और उदास हुई पर टूटी नहीं, दिए सफलता के टिप्स
दीपिका पादुकोण जब डिप्रेशन के दौर से गुजर रही थीं तो रोईं घबराईं और उदास रहीं पर टूटी नहीं। उन्होंने उसे गंभीरता से लिया और इलाज करवाया।
नई दिल्ली [यशा माथुर]। दीपिका पादुकोण आज बेशक एक सफल अभिनेत्री हैं लेकिन उन्होंने एक दौर ऐसा भी देखा है जब हर दिन एक चुनौती की तरह था और हर सेकंड एक संघर्ष। जब वे डिप्रेशन से गुजर रही थीं तो रोईं, घबराईं और उदास रहीं पर टूटी नहीं। सही इलाज और सकारात्मक रुख से इस अभिशाप से बाहर निकलीं और हरा दिया डिप्रेशन को। अब बिना किसी शर्म, हिचक या अफसोस के वे लोगों को अपने अनुभव बता रही हैं, उन्हें जागरूक कर रही हैं और मेंटल हेल्थ को समझने और गंभीरता से लेने की गुजारिश कर रही हैं। इस बारे में क्या हैं उनके विचार और प्रयास, आइए जानते हैं उनसे बातचीत पर आधारित इस लेख में...
दीपिका की डिप्रेशन की स्थिति को उनकी मां उज्ज्वला पादुकोण ने पहचाना और काउंसलर से उनकी बात करवाई। मां के समझाने पर वे इलाज करवाने और दवाइयां खाने को राजी हुईं। आज वे इस निराशाप्रद स्थिति से उबर चुकी हैं और समाज को इस संभावित रोग के प्रति जागरूक करने के लिए तथा मानसिक रूप से स्वस्थ करने के लिए अपने अनुभव बताते हुए आगे बढ़ रही हैं।
अकेले बिल्कुल नहीं रहती थी
जब दीपिका डिप्रेशन के दौर से गुजर रही थीं तो बिना वजह रोने लग जातीं, किसी सोच में पड़ जातीं, लेकिन उन्होंने इसका असर अपनी प्रोफेशनल लाइफ पर नहीं पडऩे दिया। जब हमने उनसे यह जानना चाहा कि कैसे मैनेज किया उन्होंने यह मुश्किल समय? तो उनका जवाब था, 'बहुत ही मुश्किल था डिप्रेशन के समय काम करते रहना। जब डिप्रेशन होता है तो आप बिस्तर से उठना पसंद नहीं करते।
घर से बाहर नहीं जाना चाहते, लोगों से मिलना नहीं चाहते हैं, प्रेरणा खत्म हो जाती है। जब मैं इससे जूझ रही थी तो मुझे बिस्तर से खुद को बाहर लाने में काफी संघर्ष करना पड़ता। मेरी मम्मी या मैनेजर मेरे साथ हरदम रहतीं ताकि जब मैं ऐसा महसूस करूं या रोने लग जाऊं तो कम से कम कोई मेरे साथ ऐसा हो जो मेरी स्थिति को जान ले। मैं अकेले बिल्कुल नहीं रहती थी। मैं सबके साथ रहती। कम से कम एक व्यक्ति मेरे साथ जरूर रहता।'
बात करना जरूरी है
अगर आपके भीतर कुछ टूट रहा है, आपको अपने भीतर एक खालीपन महसूस हो रहा है, छोटी-छोटी बात पर आप गुस्सा कर रही हैं और आपको जीवन में सब कुछ नीरस लग रहा है तो आप अपनी मानसिक स्थिति को गंभीरता से लें और इसे यूं ही न टालें। किसी अपने से अपने मन की बात साझा करें। दीपिका पादुकोण भी इसी बात पर जोर देते हुए कहती हैं, 'किसी से बात करना बहुत जरूरी है, चाहे वह दोस्त हो या सहयोगी या फिर प्रोफेशनल, किसी से भी बात करें लेकिन करें जरूर।
अगर आप डिप्रेशन महसूस कर रहे हैं तो काउंसलर की मदद लें। हो सकता है कि आपको ऐसा लगे कि काम पर कुछ अच्छा नहीं हुआ इसलिए मैं ऐसा महसूस कर रही हूं या किसी ने कुछ कह दिया तो मैं ऐसा कर रही हूं। फिर भी गंभीरता से सोचें, साइकेट्रिस्ट से नहीं तो काउंसलर से ही बात करें। वह तय करेंगे कि आगे आपको क्या करना है।'
... और अस्तित्व में आया 'द लिव, लव एंड लाफ फाउंडेशन'
बहुत छोटी उम्र में दीपिका ने डिप्रेशन जैसी गंभीर स्थिति का सामना किया। जब वे इससे बाहर आईं तो उन्होंने देश में डिप्रेशन के मरीजों को सहायता प्रदान करने और इस मानसिक बीमारी के बारे में जागरूक करने के लिए एक फाउंडेशन बनाया जिसे नाम दिया 'द लिव, लव एंड लाफ फाउंडेशन'। उनका यह फाउंडेशन अवसाद से लडऩे के लिए तेजी से आगे आ रहा है। हाल ही में उन्होंने एक लेक्चर सीरीज लॉन्च की है, जिसमें यूएसए से आए पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त लेखक, वैज्ञानिक एवं पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सिद्धार्थ मुखर्जी ने पहला लेक्चर दिया।
दीपिका के इस फाउंडेशन की कमान उनकी बहन एवं पेशेवर गोल्फर अनीशा पादुकोण संभालती हैं। अपने इस फाउंडेशन की गतिविधियां बताते हुए दीपिका कहती हैं, 'हम डॉक्टर्स को प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम करते हैं। हम जनरल प्रैक्टिशनर्स के लिए सेशन करवाते हैं क्योंकि हम मानते हैं कि वे ही बचाव की पहली सीढ़ी हैं। स्ट्रेस,एंजायटी और डिप्रेशन के दौरान लोगों को फिजिकल लक्षण दिखाई देते हैं और वे इसके लिए जनरल प्रैक्टिशनर के पास जाते हैं। जो उनका इलाज करते हैं लेकिन इन लक्षणों को मानसिक बीमारी से जोड़ कर नहीं देखते हैं। जब वे हमारे साथ दो से तीन सप्ताह का कोर्स करते हैं तो हम उन्हें फिजिकल और मेंटल हेल्थ के बीच संबंध बताते हैं।'
स्कूलों में बात हो मानसिक स्वास्थ्य पर
दीपिका पादुकोण मानती हैं कि स्कूलों में ही बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे जीवन में आई इस मुश्किल को पहचान सकें और बहादुरी से इसका सामना कर सके। वे अपने फाउंडेशन के तहत स्कूली शिक्षा में फिजिकल एजुकेशन के साथ मेंटल हेल्थ को जोडऩे पर जोर देती हैं और कहती हैं, 'हम स्कूलों में कार्यक्रम करते हैं जहां हम बच्चों ओर अध्यापकों को शिक्षित करते हैं। क्योंकि मेंटल हेल्थ उनके पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाता।
हम स्कूल में जाकर बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य की जरूरत बताते हैं। उन्हें बताते हैं कि मानसिक बीमारियां होती क्या हैं? बच्चे स्कूल में कई घंटे बिताते हैं इसलिए हम अध्यापकों को भी इस संबंध में प्रशिक्षित करते हैं ताकि वे बच्चे के लक्षण देखकर पहचान जाएं कि वह मानसिक अवसाद से जूझ रहा है। इसके साथ ही हम अभिभावकों को भी मानसिक स्वास्थ्य के बारे जागरूक करने के लिए काम करना शुरू कर रहे हैं। हम ग्रामीण इलाकों में भी काम कर रहे हैं। आशा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इस उद्देश्य को आगे बढ़ा रहे हैं।' लोगों ने मुझे स्वीकार किया, जज नहीं किया एक तरफ आप मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं और दूसरी तरफ समाज का व्यवहार भी अच्छा न हो तो तनाव और निराशा और ज्यादा बढ़ सकती है। हमारे समाज में यही हो रहा है।
14 फीसदी लोगों में मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों के प्रति डर की भावना
दीपिका के फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से यह बात साबित भी हुई है। इसके अनुसार 14 प्रतिशत सामान्य लोगों में मानसिक बीमारी से पीडि़त लोगों के प्रति डर की भावना है। 28 प्रतिशत में घृणा की भावना देखी गई वहीं 42 प्रतिशत लोगों ने कभी-कभी या हमेशा गुस्से की भावना को प्रदर्शित किया। दीपिका समाज के व्यवहार के संदर्भ में खुद को भाग्यशाली मानते हुए कहती हैं, 'खुद के अनुभव से मैं कह सकती हूं कि लोगों ने मुझे बहुत अच्छी तरह से स्वीकार किया।
किसी ने मुझे जज नहीं किया। समझा नहीं। मुझे दोस्तों, रिश्तेदारों का काफी सपोर्ट मिला। हां, कुछ नकारात्मक लोगों ने जरूर कहा कि ऐसा करने के लिए मुझे फार्मास्यूटिकल कंपनी से पैसे मिल रहे हैं, कुछ ने सोचा कि मेरी फिल्म रिलीज हो रही है इसलिए मैं ऐसा कह रही हूं लेकिन ऐसे लोग काफी कम थे। ज्यादातर लोगों ने बहुत सपोर्ट किया और प्रोत्साहित किया।'
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
अभिशाप कम हुआ लेकिन अभी बहुत आगे जाना है मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। कहे कबीर गुरु पाइये, मन ही के परतीत। संत कबीर भी मन के जीतने पर जीत की बात कहते हैं। दीपिका ने मन को हारा था लेकिन इसे जीत कर जिंदगी में जीत की कहानी गढ़ी। उन्होंने बताया कि उनके लिए इस स्टिग्मा से बाहर निकलना आसान नहीं था। लेकिन संघर्ष करके वे बाहर निकलीं। उस समय कोई मेंटल हेल्थ पर बात भी नहीं करता था। वे कहती हैं कि चार साल पहले मुझे नहीं लगता था कि हम डिप्रेशन और एंजायटी की बात भी करते थे। हम परिवार और दोस्तों से बात नहीं करते थे कि भावनात्मक रूप से हम क्या महसूस कर रहे हैं।
अगर हमें बुखार होता है तो हम डॉक्टर के पास जाते हैं लेकिन जब भावनाओं की बात आती है तो हम उसे इतना महत्वपूर्ण नहीं समझते। इस समय हम सही स्थिति में हैं। लोग इन चीजों को पहचानने लग गए हैं। जब मैं अपने अनुभव बताती हूं तो युवा उससे खुद को जोड़ लेते हैं। उनके माता-पिता भी उन्हें समझने लगे हैं। मैं समझती हूं कि अब स्टिग्मा कम हुआ है लोगों ने बात करनी शुरू कर दी है लेकिन ज्यादा जागरूकता पैदा करने के लिए हमें अभी बहुत लंबा जाना है और इसके लिए बातचीत जारी रखनी होगी।
फिट इंडिया मूवमेंट में मेंटल हेल्थ पर फोकस हो
फिट इंडिया मूवमेंट में मेंटल हेल्थ पर भी पर्याप्त फोकस होना चाहिए। फिटनेस के लिए फिजिकल हेल्थ के साथ मेंटल हेल्थ का होना भी बहुत जरूरी है। 'मन की बात में हमारे प्रधानमंत्री ने मेंटल हेल्थ के बारे में भी बोला है। इस बात में कोई शक नहीं कि इस पर फोकस और बढऩा चाहिए लेकिन अभी शुरुआत हुई है और जब बात आगे बढ़ेगी तो हमारा फाउंडेशन या और भी लोग जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम कर रहे हैं, सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहेंगे। हमारा फोकस हमेशा भारत में मेंटल हेल्थ पर रहेगा। अपनी लेक्चर सीरीज में हम विभिन्न क्षेत्रों के उन लोगों को बुलाएंगे जो मेंटल हेल्थ को लेकर पैशनेट होंगे। वे अपने अनुभवों को साझा करेंगे और बातचीत अगले पड़ाव तक लेकर जाएंगे। (दीपिका पादुकोण, बॉलीवुड अभिनेत्री)
हमने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं
हम दुनिया के कई जगहों से लोगों को हर साल बुलाएंगे और दीपिका के साथ लेक्चर सीरीज को आगे बढ़ाएंगे। हमने 2015 में 'द लिव लव लाफ फाउंडेशन शुरू किया है और अब 2019 हो रहा है इन सालों में हमने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। हम चाहते हैं कि शहरी, ग्रामीण, सरकार, राजनीतिक इंफ्लुएंसर, सोशल इंफ्लुएंसर आपस में मिलकर मेंटल हेल्थ एक आंदोलन चलाएं। हमने यात्रा की शुरुआत कर दी हैं।
(एना चांडी, चेयरपर्सन, द लिव लव लाफ फाउंडेशन)