तपती रेत में इस महंगे फल की खेती कर चमकाई अपनी किस्मत
पिछले 13 साल से स्ट्राबेरी की खेती कर रहे सुरेंद्र ने बताया कि वह कैलिफोर्निया से स्ट्राबेरी का फ्रीको प्लांट (रूट) मंगवाते हैं।
हिसार (श्यामनंदन कुमार)। खेती को घाटे का सौदा बताकर उससे मुंह मोड़ने वाले धरती पुत्रों के लिए सबक हैं स्याहड़वा (हिसार, हरियाणा) के किसान सुरेंद्र। अपनी लगन और मेहनत से तपती रेत वाले क्षेत्र में वह पहाड़ों की फसल उगा दूसरे किसानों को राह दिखा रहे हैं और स्वयं के लिए बेहतर जीवन की गारंटी भी इससे पा ली है। रेगिस्तान से सटे क्षेत्र में स्ट्राबेरी उगा मुनाफा कमा रहे हैं। इतना ही नहीं स्ट्राबेरी व अन्य फलों से कई तरह के उत्पाद बना इसे संगठित उद्योग की शक्ल भी दे दी है। खेती से कारोबार की राह में वह 20 से 30 लोगों को नियमित रोजगार भी दे रहे हैं। सुरेंद्र कृषि को घाटे का सौदा बताने वालों को नकारते हुए कहते हैं कि खेती को छोड़कर दूसरा कोई धंधा नहीं है, जिसमें महज तीन महीने में आप लागत से दोगुना आमदनी कर पाते हैं और वह भी सम्मान के साथ। वह आज दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा हैं तो सरकार ने भी किसान रत्न से नवाज कर उनकी उपलब्धियों को सम्मान दिया है।
वह हरियाणा और दिल्ली ही नहीं, अन्य राज्यों में भी स्ट्राबेरी के उत्पाद मेलों के माध्यम से बेच रहे हैं। उनको देखते हुए कई किसान उनकी राह पर आगे चल पड़े हैं। पिछले 13 साल से स्ट्राबेरी की खेती कर रहे सुरेंद्र ने बताया कि वह कैलिफोर्निया से स्ट्राबेरी का फ्रीको प्लांट (रूट) मंगवाते हैं। उससे पॉली हाउस में पौध तैयार की जाती है। बस सुनिश्चित करना होता है कि यह पौध 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में न जाए। गर्मी के तुरंत बाद पौध मंगवा ली जाती है। अगर किसी कारण जून-जुलाई में आ जाए तो इसे हिमाचल प्रदेश में भाड़े पर पॉली हाउस लेकर वहां रखा जाता है। सुरेंद्र स्याहड़वा, तलवंडी और सेंगरान में करीब 20 एकड़ में इसकी खेती करते हैं। उनकी मानें तो प्रति एकड़ औसतन 12 से 15 लाख रुपये तक की स्ट्राबेरी बेच देते हैं। जबकि प्रति एकड़ लागत पांच से सात लाख रुपये है।
यह अपनाते हैं रणनीति : सुरेंद्र अप्रैल-मई में ही फ्रीको प्लांट का ऑर्डर देते हैं और सितंबर में उन्हें रोपित कर देते हैं ताकि ठंड से पहले उत्पादन हो सके। स्ट्राबेरी तैयार होने के बाद दिल्ली की आजादपुर मंडी में स्वयं जाकर बेचते हैं। फिलहाल कुछ किसानों का ग्रुप बन चुका है, ऐसे में भेजने की लागत कुछ कम हुई है। शुरुआत में दो किलोग्राम स्ट्राबेरी का बॉक्स 450 रुपये तक में बिक जाता है, लेकिन बाद में दाम 150 रुपये तक गिर जाता है। यहां किसान के साथ-साथ सफल व्यवसायी का गुण निकलकर आता है। फिलहाल वह खुद ही 18 तरीके के उत्पाद बना रहे हैं। अब स्ट्राबेरी का जैम, जेली, जूस, मिल्क कैंडी, स्ट्राबेरी शैंपू और साबुन समेत 18 तरह के उत्पाद बनाते हैं। इससे कच्चा माल औने-पौने भाव में बेचने की मजबूरी नहीं रही। सुरेंद्र ने जब यह देखा कि स्ट्राबेरी की खेती से तो वर्ष भर रोजगार नहीं मिल रहा तो उन्होंने अन्य फलों को भी इसमें शामिल कर लिया। अब वे जामुन, आम आदि से भी वे प्रोडक्ट तैयार करते हैं जिसे स्ट्राबेरी से तैयार करते थे।
-कभी पढ़ाते थे बच्चों को, अब 20 एकड़ में स्ट्राबेरी की खेती कर दर्जनों लोगों को दे रहे रोजगार
-उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक सब कुछ खुद ही संभालते हैं सुरेंद्र, 18 तरह के उत्पाद भी बनाते हैं
-कर्ज लेकर स्ट्राबेरी की खेती शुरू की तो परिवार में हुआ विरोध, आज हैं किसान रत्न
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