CUET UG 2022: यूजीसी की हालिया घोषणा सीयूईटी आजकल विवादों के घेरे में, मजबूत बने आधारभूत ढांचा
CUET UG 2022 बीते दिनों सीयूईटी परीक्षा में गड़बड़ी के कारण कई जगहों पर अधिकांश छात्र रहे परेशान। सीयूईटी से संबंधित आधारभूत ढांचा पूरी तरह से विकसित किए बिना इसका आयोजन व्यवस्थित तरीके से कर पाना बहुत ही मुश्किल होगा।
डा. गुंजन राजपूत। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की हालिया घोषणा सीयूईटी (कामन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट) आजकल विवादों के घेरे में है। सीयूईटी एक सामान्य प्रवेश परीक्षा है जिसके द्वारा सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश लिया जा सकेगा। यह नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत सुझाए गए अनेक प्रविधानों में से उच्च शिक्षा से संबंधित एक प्रविधान है जिसको सबसे पहले इतने बड़े पैमाने पर लागू किया गया है। पहला प्रविधान होने के कारण इसका आकलन शिक्षा निति की सफलता और विफलता से जोड़ा जा रहा है। परंतु आकलन से ज्यादा इसके परिणामों से सीख लेनी चाहिए।
बीते दिनों यह परीक्षा 13 अलग अलग भाषाओं में पांच चरणों में कराई गई। इसका उद्देश्य यूजीसी के शब्दों में छात्रों को अनेक प्रवेश परीक्षाओं में बैठने से बचाने के लिए है। इसी कारण से यूजीसी ने सभी राज्य विश्वविद्यालयों, निजी विश्वविद्यालयों और डीम्ड विश्वविद्यालयों समेत सभी अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों को सीयूईटी के अंकों को प्रवेश हेतु अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसी के साथ यह ‘एक देश एक परीक्षा’ का उद्देश्य भी पूर्ण करता प्रतीत होता है।
सीयूईटी उम्मीदवारों की योग्यता का परीक्षण सीबीटी के आधार पर करने का प्रस्ताव करता है। प्रवेश परीक्षा में उच्च कौशल के प्रशिक्षण की बात है, लेकिन कौशल का सवाल ही नहीं उठता, जब कंप्यूटर तक पहुंच, वह भी इंटरनेट कनेक्शन के साथ ग्रामीण भारत में एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, ग्रामीण छात्र कोचिंग संस्थानों या संसाधनों को वहन करने में असमर्थ होने के कारण पिछड़े रह जाएंगे। छोटे शहरों में जहां इंटरनेट की समस्या की मार थी, वहीं दूसरी ओर छात्रों द्वारा एक कंप्यूटराइज्ड पेपर को समझ पाना बड़ी समस्या बन गया था। इस बात का अंदाजा शायद पहले लगाना आवश्यक था कि 12वीं कक्षा पास करने वाला छात्र जो 18 वर्ष की आयु का होगा, एक साथ ज्यादा उलझनों को समझ नहीं पाएगा। लगभग सभी विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि छात्रों को परीक्षण के तौर-तरीकों और प्रारूप को समझने और परिचित होने के लिए समय दिया जाना चाहिए था। महामारी से ग्रसित बीते दो वर्ष, बोर्ड परीक्षा का दो हिस्सों में विभाजन का बड़ा रूपांतरण, पिछले दो वर्षो में आनलाइन पढ़ाई जैसे बड़े बदलावों के बाद छात्रों के लिए सीयूईटी एक जबरदस्त परिवर्तन साबित हुआ है।
इतना ही नहीं, परीक्षा को चरणों में कराया गया है। चरणों में परीक्षा होने से विश्वविद्यालयों के सत्र की शुरुआत पर इसका सीधा प्रभाव पड़ रहा है। पांच चरणों के परिणामों की घोषणा होने के बाद सरकारी विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया आरंभ होगी। सरकारी विश्वविद्यालय हमेशा से ही हर वर्ग के लिए अनेक कारणों से पहली पसंद रहे हैं। छात्र प्राइवेट संस्थानों का रुख सरकारी दाखिले की प्रक्रिया के बाद ही करते हैं। इससे प्राइवेट संस्थानों का सत्र यकीनन पीछे रहेगा। इससे छात्रों को अपना पहला वर्ष विश्वविद्यालय में कम मिलेगा जिसका सीधा असर बुनियादी सिद्धांतों की शिक्षा पर पड़ेगा। नई शिक्षा नीति का सबसे ज्यादा जोर बुनियादी सिद्धांतों की शिक्षा पर है।
साथ ही नई शिक्षा निति के अनुसार छात्र लचीली शिक्षा पद्धति का हिस्सा होंगे जिसके तहत वह किसी भी साल में अपनी डिग्री छोड़ कार्यक्षेत्र में जा सकते हैं। लेकिन क्या एक आठ-नौ महीने के सत्र में सारी जानकारी देकर छात्रों को कार्यक्षेत्र के लिए तैयार करना संभव हो पाएगा? शायद यह बहुत मुश्किल है। तो क्या इस देरी के परिणामों का आकलन पहले नहीं किया गया था। यहां तक कि परीक्षा केंद्रों पर गड़बड़ी का अंदेशा भी जताया गया। तकनीकी खराबी, विषयों के चुनाव करने हेतु अनेक विकल्प से होने वाली उलझन एवं धांधली जैसी तमाम समस्याओं ने सीयूईटी के बहाने नई शिक्षा नीति को सवालों के घेरे में ला दिया है।
यहां हमें इससे केवल एक परीक्षा को पहली बार लागू करने में आने वाली दिक्कतों से जोड़ने से ज्यादा सोचना चाहिए। परीक्षण का उद्देश्य यह जानना है कि छात्र ने क्या सीखा है। लेकिन भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों में सीमित सीट्स होने से सीयूईटी का उद्देश्य बन जाता है कि छात्र कुछ संस्थानों में सीट के लिए कैसे योग्य हो सकते हैं? बहुत मुमकिन है कि भारत जल्द ही पहले से ही विशाल कोचिंग उद्योग का विस्तार देखे, क्योंकि जेईई और नीट की तुलना में यहां इच्छुक उम्मीदवारों की संख्या करोड़ों में है।
यह देखते हुए कि कोचिंग के साथ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सामथ्र्य से संबंधित असमानता है, सीयूईटी बहुत उदारता से और अधिक असमानता को बढ़ावा देगा। स्कूलों और कोचिंग कक्षाओं के बीच सहयोग की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलेगा। भारत का खंडित उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र, संज्ञानात्मक कौशल विकास पर कम जोर, सीमित पहुंच, रिक्त शिक्षण पद, बहु-विषयक दृष्टिकोण की कमी, अप्रभावी विनियमन, शिक्षा का निम्न स्तर आदि ये सभी दोष नई शिक्षा नीति में सूचीबद्ध थे। परंतु नीति के प्रविधान को लागू करते समय इस बारे में गंभीरता नहीं दिखाई गई।
ऐसे में हमें यह समझना चाहिए कि आखिर नीतियां विफल क्यों होती हैं? नीतियों को बनाते समय लागू करते हुए व्यवस्था जनित चुनौतियों से लेकर व्यावहारिक चुनौतियों का शोध आधारित अध्ययन करके लागू करने की योजना भी तैयार करनी चाहिए। अधिकांश नीतियां अपनी लचर लागू योजना की वजह से विफल होती हैं। सीयूईटी के फायदे और नुकसान हो सकते हैं, लेकिन भारत को तत्काल बेहतर सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे की जरूरत है।
[डिप्टी रजिस्ट्रार- अकेडमिक्स, ऋषिहुड विश्वविद्यालय]