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आडवाणी समेत सभी 12 पर चलेगा आपराधिक साजिश रचने का मुकदमा, आरोप तय

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने आज विवादित ढांचा विध्‍वंस मामले में आडवाणी समेत सभी 12 आरोपियों पर आपराधिक साजिश रचने का आरोप तय कर दिया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 30 May 2017 03:21 PM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 09:28 PM (IST)
आडवाणी समेत सभी 12 पर चलेगा आपराधिक साजिश रचने का मुकदमा, आरोप तय
आडवाणी समेत सभी 12 पर चलेगा आपराधिक साजिश रचने का मुकदमा, आरोप तय

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आज भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी समेत सभी 12 आरोपियों पर सेक्शन 120 बी के तहत आपराधिक साजिश रचने का आरोप तय कर दिया  गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने यह आरोप तय किए। 19 अप्रैल को इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया था। लखनऊ बैंच द्वारा आरोप तय किए जाने से पहले ही सभी आरोपियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने जमानत भी दे दी। कोर्ट ने यह जमानत 20 हजार के निजी मुचलके पर दी है। लिहाजा इलाहाबाद कोर्ट द्वारा आरोप तय किए जाने के बाद भी अब इनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी।

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इन्‍हें मिली जमानत

आज जिन 12 आरोपियों को कोर्ट ने जमानत दी है उनमें उत्‍तर प्रदेश के उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, विष्णु हरि डालमिया, राम विलास वेदांती, धर्मदास महंत, महंत नृत्यगोपाल दास, चंपत राय, सतीश प्रधान का नाम शामिल है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सभी आरोपियों को तरफ से उनपर लगे आरोपों को खारिज करने के लिए भी अपील दायर की गई है, जिसे खारिज कर दिया गया है। 

दो वर्ष तक लगातार होगी सुनवाई

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़े मामला सुनकर फैसला लेने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच को दो वर्ष का समय दिया है। इसके अलावा कोर्ट ने अपने आदेश में फिलहाल उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह जो कि वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल हैं, पर मामला न चलाने को कहा है। कोर्ट का कहना है कि संविधान के मुताबिक उनपर यह मामला उनके राज्यपाल के पद से हटने के बाद ही चलाया जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए मामले की रोजाना सुनवाई करनी जरूरी होगी। इस पूरी सुनवाई के दौरान इस मामले से संबंघित जज का ट्रांसफर भी नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा सीबीआई को सुनिश्चित करना होगा कि अभियोजन पक्ष का कम से कम एक गवाह रोजाना मौजूद हो ताकि कोर्ट की कार्यवाही न रुक सके।

मामले की जांच को बना था लिब्राहन आयोग

इस मामले में कोर्ट ने जिन 12 नेताओं पर मामला चलाने का लेकर आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया था वह नाम उस वक्त सभी की जुबान पर थे। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही इन सभी नेताओं पर मामला चलाने का निर्णय मामले के 25 वर्षों के बाद लिया, लेकिन इस मामले की जांच के लिए बनाए गए लिब्राहन आयोग ने उस वक्त करीब 68 लोगों को दोषी ठहराते हुए उनपर मामला चलाने की सिफारिश तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार से की थी, उनमें यह 12 नाम भी शामिल थे।

कई बार बढ़ा जांच आयोग का कार्यकाल

16 दिसंबर 1992 को इस आयोग का गठन हुआ था। आयोग को अपनी रिपोर्ट तीन महीने के भीतर पेश करनी थी, लेकिन इसका कार्यकाल लगातार 48 बार बढ़ाया गया। करीब 17 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद अंततः आयोग ने 30 जून 2009 को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। लिब्राहन आयोग की इस रिपोर्ट को 24 नवंबर 2009 को संसद में पेश किया गया था। इसमें बाबरी विध्वंस को सुनियोजित साजिश करार देते हुए आरएसएस और कुछ अन्य संगठनों की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी आयोग ने सवाल उठाए थे।

सबसे लंबा चलने वाला जांच आयोग

इस मामले की जांच के लिए बनाया गया एक सदस्यीय लिब्राहन आयोग देश में अब तक का सबसे लंबा चलने वाला जांच आयोग है। इस पर सरकार को करीब आठ करोड़ रुपये का खर्च वहन करना पड़ा था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यूपी की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। आयोग ने अगस्त 2005 में अपने आखिरी गवाह कल्याण सिंह से सुनवाई पूरी की थी। इस आयोग के समक्ष उनके अलावा पीवी नरसिम्हा राव, पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और मुलायम सिंह यादव के अलावा कई नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों ने पेश होकर अपने बयान दर्ज कराए थे।

बाबरी मस्जिद मामला कब क्या हुआ

1528: बाबर ने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था।

1853: हिंदुओं का आरोप कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

23 दिसंबर 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।

5 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया।

17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।

1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। दोबारा द्वारा पर लगे तालों को खोल दिया गया। नाराज समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी ने विहिप को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया।

1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

25 सितंबर 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे भी भड़के।

नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया। इसके बाद देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए।

16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी।

9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

जुलाई 2016: बाबरी मामले के सबसे उम्रदराज वादी हाशिम अंसारी का निधन।

21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।

19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।

20 मई 2017: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने सभी आरोपियों पर आपराधिक साजिश रचने का आरोप तय कर दिया।


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