इनसे मिलिए, यह हैं ‘व्हीट मैन ऑफ इंडिया’, इनके काम की चमक चौतरफा है फैली
भारत में नवीन गेहूं क्रांति लाने का श्रेय भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह को।
पवन शर्मा, करनाल। आइए मिलते हैं ‘व्हीट मैन ऑफ इंडिया’डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह से। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आइआइडब्ल्यूबीआर)के निदेशक डॉ. सिंह की इस उपाधि के चर्चे भले ही न हुए हों, लेकिन उनके काम की चमक चौतरफा फैली है। देश में नवीन गेहूं क्रांति की इबारत रच रहे डॉ. ज्ञानेंद्र ने न सिर्फ गेहूं और जौ की 48 उन्नत किस्में विकसित कीं, बल्कि 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की भारत सरकार की मुहिम में भी वह भरपूर भागीदारी कर रहे हैं। अनवरत अनुसंधान का ही चमत्कारिक प्रभाव है कि जो उन्नत गेहूं (व्हीट) प्रजातियां डॉ. सिंह ने विकसित कीं, आज पूरे भारत के कुल गेहूं रकबे की 60 प्रतिशत पैदावार पर इन प्रजातियों का कब्जा है।
डॉ. ज्ञानेंद्र को व्हीट मैन ऑफ इंडिया के नए नाम से नवाजने वाले सुविख्यात पर्यावरणविद् ‘पद्म भूषण’डॉ. अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि पर्यावरण, गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य संरक्षण के प्रति योगदान के चलते ही डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह इस उपाधि के वास्तविक हकदार हैं। बीते तीन दशक के सफर में कई प्रजातियां ईजाद करने से लेकर किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने की उन्होंने जीतोड़ कोशिश की। हम विदेशी वैज्ञानिकों को सिर-आंखों पर बैठाते रहे हैं, जबकि डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह को मुझ जैसे लोगों और देश के किसानों द्वारा दी जाने वाली यह इज्जत ही उनका सबसे बड़ा सम्मान है।
दैनिक जागरण से चर्चा में डॉ. सिंह ने खुद को मूलत: पौध प्रजनक व शोधकर्ता करार दिया। बताया कि उनकी सबसे क्रांतिकारी खोज एचडी-2967, 3086 और डीबीडब्ल्यू-187 प्रजातियां हैं। इनमें डीबीडब्ल्यू-187 सबसे नई प्रजाति है, जिसे ‘करण वंदना’ भी कहते हैं। हरियाणा सहित पूरे उत्तर-पूर्वी भारत के गंगा तटीय क्षेत्र के किसान इसका जमकर प्रयोग कर रहे हैं। डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह कहते हैं, गेहूं ब्लास्ट रोग से लड़ने में बेहद कारगर यह किस्म इन क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों व जलवायु में खेती के लिए पूर्ण उपयुक्त है। अन्य किस्में जहां बमुश्किल 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं, वहीं इससे 68 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है। बुआई के बाद फसल की बालियां 77 दिन में निकल आती हैं और कुल 120 दिन में फसल तैयार हो जाती है। डॉ. सिंह गेहूं के दिशा-निर्देशन में ही विकसित अन्य प्रजातियां भी खूब प्रचलित हैं। इनमें डीबीडब्ल्यू-222 प्रति हेक्टेयर 64 क्विटंल और डीबीडब्ल्यू-173 प्रति हेक्टेयर 58 क्विंटल पैदावार देती है। वे बताते हैं कि बेहतर पैदावार के बूते इस वर्ष गेहूं उत्पादन का 102 मिलियन टन का लक्ष्य प्राप्त करने की तैयारी है। 2030 से 2050 तक 140 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन लक्ष्य हासिल करना है।
डॉ. सिंह सफलता का एक और अध्याय रचने जा रहे हैं। वे इस साल की आखिरी तिमाही तक डीबीडब्ल्यू-303 नामक नई प्रजाति लेकर आएंगे, जिसकी पैदावार क्षमता पिछली प्रजातियों से अधिक होगी। करण नरेंद्र नामक डीबीडब्ल्यू-222 प्रजाति पहले ही नए आयाम स्थापित कर रही है। उन्होंने बताया कि इस साल गेहूं उत्पादन में भी नया रिकॉर्ड बनेगा। उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त : डॉ. सिंह मूलत: वाराणसी से हैं। उन्होंने कृषि विज्ञान की शिक्षा कृषि विज्ञान संस्थान और काशी हिंदू विवि से ली। 1996 से 2001 तक करनाल में वैज्ञानिक के पद पर रहे। उन्हें अनुसंधान में उत्कृष्ट सेवा के लिए डॉ. बीपी पाल अवार्ड, रफी अहमद किदवई, डॉ. वीएस माथुर अवार्ड, बीजीआरआई जीन स्टूवर्डशिप अवार्ड, नानाजी देशमुख आउटस्टैंडिंग अवार्ड, डॉ. अमरीक सिंह चीमा अवार्ड से नवाजा जा चुका है। वह नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, इंडियन सोसायटी ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग व सोसायटी फॉर एडवांसमेंट ऑफ व्हीट एंड बार्ले रिसर्च के फैलो हैं। सोसायटी ऑफ एडवांसमेंट ऑफ व्हीट रिसर्च के वह अध्यक्ष हैं और पौध प्रजनन पर उनके 188 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं।