Covid Vaccine: लैंसेट की रिसर्च में सुरक्षित पाई गई स्वदेशी कोवैक्सीन, प्रतिरक्षा बढ़ाने में है प्रभावी
ट्रायल की अंतरिम रिपोर्ट लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित की गई है।लैंसेट पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल के मुकाबले दूसरे चरण में कोवैक्सीन ज्यादा असरदार पाई गई। हालांकि इस चरण में महज 380 लोगों के समूह पर यह परीक्षण किया गया।
नई दिल्ली, एजेंसियां। कोरोना वायरस (कोविड-19) से मुकाबले के लिए भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन 'कोवैक्सीन' सुरक्षित पाई गई है। यह इम्यून रिस्पांस यानी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने में प्रभावी साबित हुई है। इस टीके के चलते कोई गंभीर दुष्प्रभाव भी सामने नहीं आया है। भारत बायोटेक की इस वैक्सीन के दूसरे चरण के ट्रायल के नतीजों में यह सब सामने आया है। ट्रायल की अंतरिम रिपोर्ट लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित की गई है।लैंसेट पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार, पहले चरण के क्लीनिकल ट्रायल के मुकाबले दूसरे चरण में कोवैक्सीन ज्यादा असरदार पाई गई। हालांकि, इस चरण में महज 380 लोगों के समूह पर यह परीक्षण किया गया। इसलिए यह वैक्सीन कितनी असरदार है, इसका पता लगाने के लिए तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे सामने आने चाहिए।
लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित किए गए दूसरे चरण के ट्रायल के अंतरिम नतीजे
भारत बायोटेक कंपनी ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के साथ मिलकर यह वैक्सीन तैयार की है। सरकार इस वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति भी दे चुकी है। कंपनी ने बीते हफ्ते बताया था कि उसकी वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में 81 फीसद कारगर पाई गई है। हालांकि, इस चरण की रिपोर्ट अभी प्रकाशित नहीं की गई है।
380 लोगों पर किया गया ट्रायल
कोवैक्सीन के दूसरे चरण के ट्रायल में गत सिंतबर में 12 से 18 वर्ष और 55 से 65 साल की उम्र के 380 लोगों को शामिल किया गया था। ट्रायल के दौरान प्रतिभागियों को वैक्सीन की पहली खुराक देने के 28 दिनों बाद दूसरी डोज दी गई थी। कंपनी ने बताया है कि तीसरे चरण के ट्रायल में 18 से 98 साल की उम्र के 25 हजार 800 लोगों को शामिल किया गया।
भारतीयों में बढ़ी कोवैक्सीन की मांग
भारत में कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान ने तेजी पकड़ ली। परीक्षण में सुरक्षित पाए जाने के बाद कोवैक्सीन की मांग बढ़ गई है। शुरुआती दौर में इस वैक्सीन को लेकर लोगों में थोड़ी दुविधा थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह वैक्सीन लगवाने का लोगों में सकारात्मक संदेश गया है। देश में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा निर्मित कोविशील्ड वैक्सीन भी लगाई जा रही है।
दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट के खिलाफ मॉडर्ना, फाइजर कम प्रभावी
न्यूयॉर्क, आइएएनएस : कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट के खिलाफ मॉडर्ना और फाइजर की वैक्सीन कम प्रभावी पाई गई हैं। इस अध्ययन के नतीजों को नेचर पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। इन दोनों अमेरिकी कंपनियों के टीकों को दुनिया के कई देशों में मंजूरी मिल चुकी है।