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अदालतों को सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस अधिकारों का अतिक्रमण न करे: पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने मंगलवार को कहा कि न्यायपालिका को सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस प्रशासन जांच के मामले में अपने अधिकारों की सीमा नहीं लांघे।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 01 Jul 2020 07:51 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 07:51 AM (IST)
अदालतों को सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस अधिकारों का अतिक्रमण न करे: पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर
अदालतों को सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस अधिकारों का अतिक्रमण न करे: पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर

 नई दिल्ली, प्रेट्र। पुलिस ज्यादतियों के आरोपों के बीच उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने मंगलवार को कहा कि न्यायपालिका को सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस प्रशासन जांच के मामले में अपने अधिकारों की सीमा नहीं लांघे और निष्पक्ष रूप से काम करे। उन्होंने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह के मामले दायर करने के लिए इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है। उन्होंने आगाह किया कि मजिस्ट्रेट की अदालत को आंख मूंद कर अभियोजन पर भरोसा नहीं करना चाहिए।

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सेवानिवृत्त न्यायाधीश लोकुर एक लीगल न्यूज पोर्टल द्वारा 'संदेशवाहक को निशाना बनाना : पत्रकारिता के अपराधीकरण का प्रभाव' विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जांच के समय और आरोपपत्र दाखिल करते वक्त कानूनों की गलत व्याख्या हो रही है। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका को अधिक चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।

आठ राज्यों के अभिभावकों ने दाखिल की याचिका

आठ राज्यों के अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर लाकडाउन के दौरान निजी स्कूलों की तीन महीने की (एक अप्रैल से जून तक की) फीस माफ करने और नियमित स्कूल शुरू होने तक फीस रेगुलेट किये जाने की मांग की है। यह भी मांग है कि फीस न देने के कारण बच्चों को स्कूल से न निकाला जाए क्योंकि कोरोना महामारी के चलते हुए राष्ट्रव्यापी लाकडाउन में रोजगार बंद होने से बहुत से अभिभावक फीस देने में असमर्थ हो गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह याचिका में प्रतिवादी बनाए गए आठो राज्यों राजस्थान, ओडिशा, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश को या फिर सभी राज्यों को इस बारे में आदेश दे।

वकीलों व क्लर्कों की सुप्रीम कोर्ट से गुहार

लॉकडाउन के कारण अदालती कामकाज बंद होने से वकीलों और उनके क्लर्कों के आगे गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल हुई हैं। एक याचिका में कोरोना महामारी के दौरान अदालतें बंद होने से वकीलों को गैर अदालती कामकाज और कानूनी सलाह का विज्ञापन देने की इजाजत दिए जाने और उसके लिए मौजूदा नियम-कानून में संशोधन की मांग की गई है।


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