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तालाबों की ओर लौटने का वक्त, यूपी के रामपुर जिले में बना है देश का पहला अमृत सरोवर

Amrit Sarovar Yojana तालाब इसलिए जरूरी हैं कि वे पारंपरिक जल स्नेत हैं पानी सहेजते हैं भूजल का स्तर बनाए रखते हैं धरती के बढ़ रहे तापमान को नियंत्रित करते हैं और लोगों को रोजगार भी देते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 18 May 2022 11:31 AM (IST)Updated: Wed, 18 May 2022 11:31 AM (IST)
तालाबों की ओर लौटने का वक्त, यूपी के रामपुर जिले में बना है देश का पहला अमृत सरोवर
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में बना है देश का पहला अमृत सरोवर। फाइल

पंकज चतुर्वेदी। भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में भले ही खेती-किसानी का योगदान महज 17 प्रतिशत हो, लेकिन आज भी यह रोजगार मुहैया करवाने का सबसे बड़ा माध्यम है। ग्रामीण भारत की 70 प्रतिशत आबादी की जीविका खेती-किसानी पर निर्भर है, पर दुखद पहलू यह भी है कि हमारी 52 प्रतिशत खेती वर्षा पर निर्भर है। महज 48 प्रतिशत खेतों को ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। इसमें भी भूजल पर निर्भरता बढ़ने से खेती की लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे में समाज को सरकार ने अपने सबसे सशक्त पारंपरिक जल-निधि तालाब की ओर लौटने का आह्वान किया है। आजादी के 75 साल के अवसर पर देश के हर जिले में 75 अमृत सरोवरों के निर्माण की योजना पर काम हो रहा है।

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जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव अब सभी के सामने है। मौसम की अनिश्चितता और चरम हो जाने की मार सबसे ज्यादा किसानों पर पड़ी है। भूजल के हालात पूरे देश में दिनों-दिन खतरनाक होते जा रहे हैं। उधर बड़े बांधों के कुप्रभावों के चलते पूरी दुनिया में इनका बहिष्कार हो रहा है। बड़ी सिंचाई परियोजनाएं एक तो महंगी होती हैं, दूसरा उनसे विस्थापन एवं कई तरह की पर्यावरणीय समस्याएं खड़ी होती हैं। ऐसे में खेती को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए भारतीय समाज को अपनी जड़ों की और लौटना होगा। यानी फिर से तालाबों पर निर्भरता बढ़ानी होगी।

आजादी के बाद 1950-51 में देश में लगभग 17 प्रतिशत खेत (कोई 36 लाख हेक्टेयर) तालाबों से सींचे जाते थे। आज के कुल सिंचित क्षेत्र में तालाब से सिंचाई का रकबा घटकर 17 लाख हेक्टेयर रह गया है। इनमें से भी दक्षिणी राज्यों ने ही अपनी परंपरा को सहेजकर रखा है। हिंदी पट्टी के इलाकों में अधिकांश तालाबों को या तो मिट्टी से भर कर उन पर निर्माण कर दिया गया है या फिर उनको घरेलू गंदे पानी के नाबदान में बदल दिया गया है। यह बानगी है कि किस तरह हमारे किसानों ने सिंचाई की परंपरा से विमुख होकर अपनी कृषि लागत को बढ़ाया और जमीन की बर्बादी को आमंत्रित किया।

आजादी के बाद इन पुश्तैनी तालाबों की देखरेख करना तो दूर, हमने उनकी दुर्दशा करनी शुरू कर दी। चाहे कालाहांडी हो या फिर बुंदेलखंड या फिर तेलंगाना, देश के जल-संकट वाले सभी इलाकों की कहानी एक ही है। इन सभी इलाकों में एक सदी पहले तक कई-कई सौ बेहतरीन तालाब होते थे। वे केवल लोगों की प्यास ही नहीं बुझाते थे, बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी थे। उनका पानी कुओं का जल स्तर बनाए रखने में सहायक होता था। जाहिर है तालाब केवल इसलिए जरूरी नहीं हैं कि वे पारंपरिक जल स्नेत हैं, बल्कि इसलिए भी हैं कि वे पानी सहेजते हैं, भूजल का स्तर बनाए रखते हैं, धरती के बढ़ रहे तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं और लोगों को रोजगार भी देते हैं। हर दो-तीन साल में तालाबों की सफाई से मिली गाद बेशकीमती खाद के रूप में किसानों की लागत घटाने एवं उत्पादकता बढ़ाने में मदद करती है।

देश के कुल 773 जिलों में यदि अमृत सरोवर योजना सफल हो गई तो देश को 57,975 तालाब मिलेंगे। यदि प्रत्येक तालाब औसतन एक हेक्टेयर और दस फुट गहराई का भी हुआ तो हर तालाब में करीब 30 हजार घन मीटर जल होगा। इस प्रकार अमृत सरोवर योजना सफल हुई तो हम पानी पर पूरी तरह स्थानीय स्तर पर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में औसतन 1,170 मिलीमीटर पानी सालाना आसमान से नियामत के रूप में बरसता है। देश में कोई छह लाख 40 हजार गांव हैं। यदि हर साल औसत से आधा भी पानी बरसे और हर गांव में महज 1.12 हेक्टेयर जमीन पर तालाब बने हों तो इस प्रकार देश की कोई 1.30 अरब आबादी के लिए पूरे साल पीने एवं अन्य प्रयोग के लिए 3.75 अरब लीटर पानी आसानी से जमा किया जा सकता है। एक हेक्टेयर जमीन पर महज 100 मिलीमीटर बरसात होने की दशा में 10 लाख लीटर पानी एकत्र किया जा सकता है। देश के अभी भी अधिकांश गांवों में पारंपरिक तालाब-जोहड़, बावली, झील जैसी संरचनाएं उपलब्ध हैं। जरूरत है तो बस उन्हें सहेजने की और उनमें जमा पानी को गंदगी से बचाने की। इससे किसानों को स्थानीय स्तर पर ही सिंचाई का पानी मिल जाएगा। चूंकि तालाब लबालब होंगे तो जमीन की पर्याप्त नमी के कारण सिंचाई-जल कम लगेगा। साथ ही खेती के लिए अनिवार्य प्राकृतिक लवण आदि भी मिलते रहेंगे।

यदि देश में खेती-किसानी को बचाना है, अपनी आबादी का पेट भरना है, विदेशी मुद्रा के व्यय से बचना है, शहरों की ओर पलायन रोकना है तो जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर उपलब्ध तालाबों की ओर लौटा जाए, खेतों की सिंचाई के लिए तालाबों के इस्तेमाल को बढ़ाया जाए और तालाबों को सहेजने के लिए सरकारी महकमों के बनिस्बत स्थानीय समाज को ही शामिल किया जाए।

[पर्यावरण मामलों के जानकार]


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