रेलवे को दीमक की तरह चाट रहा है भ्रष्टाचार
पिछले पांच सालों में रेलवे में भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले सामने आ चुके हैं।
संजय सिंह, नई दिल्ली। प्रगति (प्रोएक्टिव गवर्नेस एंड टाइमली इंप्लीमेंटेशन) की समीक्षा बैठक के दौरान रेलवे में भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रधानमंत्री ने यूं ही नहीं उठाया है। पीएमओ को पिछले काफी समय से रेलवे में भ्रष्टाचार की शिकायतें मिल रही थीं, जिनमें जोन और मंडल स्तर के कई रेलवे अफसरों पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप गए हैं।
इनमें व्यक्तिगत शानोशौकत पर सरकारी धन का दुरुपयोग करने, रिश्र्वत लेकर ट्रांसफर-पोस्टिंग करने तथा खरीदारियों में चहेते वेंडरों का पक्ष लेने के आरोप प्रमुख हैं। रेलवे में भ्रष्टाचार नई बात नहीं है। स्वयं रेलमंत्री सुरेश प्रभु इसे संसद में स्वीकार कर चुके हैं। वर्ष 2015 में उन्होंने संसद में कहा था, 'रेलवे में विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार है। इसे दूर करने के लिए हमने सिस्टम में पूर्ण पारदर्शिता को लागू किया है। अब सभी टेंडर वेबसाइट पर डाले जाते हैं। स्टोर्स की खरीदारी भी ई-टेंडरिंग तथा रिवर्स ऑक्शन से होती है। तत्काल रिजर्वेशन के नियम बदले गए हैं। रेक का आवंटन भी अब आनलाइन होने लगा है। अनियमितता पाए जाने पर उपयुक्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है। लेकिन भ्रष्टाचार के पूर्ण खात्मे के लिए हमें सिस्टम को पूरी तरह बदलना होगा।'
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हाल के वर्षो में खानपान के ठेकों में भ्रष्टाचार के कारण गुणवत्ता में गिरावट व अधिक मूल्य वसूली के कई मामले प्रकाश में आने के बाद रेलमंत्री सुरेश प्रभु को नई खानपान नीति लाने के लिए विवश होना पड़ा है। पिछले पांच सालों में रेलवे में भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले सामने आ चुके हैं। इनमें सबसे बड़ा केस 2012 में संप्रग सरकार के वक्त उजागर हुआ था। तब बोर्ड में मनचाही पोस्ट पाने के लिए तत्कालीन रेलमंत्री पवन बंसल के भांजे को रिश्र्वत देने के आरोप में मध्य रेलवे के महाप्रबंधक महेश प्रसाद को बर्खास्त किया गया था। मामला तूल पकड़ने पर बाद में स्वयं बंसल को भी इस्तीफा देना पड़ा था।
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इसके बाद अक्टूबर 2014 में रेलवे बोर्ड में निदेशक (वाणिज्यिक यातायात) रवि मोहन शर्मा को एक टूर आपरेटर से हवाला के जरिए पांच लाख रुपये की रिश्र्वत लेने के आरोप में सीबीआइ ने पकड़ा गया था। उनके मुंबई स्थित घर की नालियों से लाखों की नकदी बरामद की गई थी।
एक साल बाद अक्टूबर, 2015 में रेलवे में रेल नीर घोटाला सामने आया। इसमें उत्तर रेलवे के दो वरिष्ठ अफसरों-मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक (खानपान) एमएस चालिया तथा संदीप साइलस को गिरफ्तार किया गया था। इन दोनो पर स्टेशनों पर रेल नीर के स्थान पर दूसरे ब्रांडों के पानी की बिक्री की अनुमति देने तथा रेलवे को 19.5 करोड़ का चूना लगाने का आरोप था। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की राय से परे जाकर सीबीआइ को इन अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी है।
ये तो चंद बड़े मामले हैं। रेलवे में हर साल भ्रष्टाचार के दो-ढाई सौ मामले सामने आना सामान्य बात है। ये वो मामले होते हैं जिनमें सतर्कता विभाग द्वारा कार्रवाई की जाती है। इनमें अत्यधिक संगीन 15-16 मामले सीबीआइ को भेजने पड़ते हैं।