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Corona Impact on Agriculture: मदद नहीं मिली तो बिगड़ सकती है किसानों की अर्थव्यवस्था

Corona Impact on Agriculture गुजरात पंजाब हरियाणा मध्य प्रदेश व यूपी समेत कई राज्य के किसानों को वैश्विक महामारी के बीच सरकारी खरीद बंद होने से भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 26 Mar 2020 01:52 PM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2020 01:55 PM (IST)
Corona Impact on Agriculture: मदद नहीं मिली तो बिगड़ सकती है किसानों की अर्थव्यवस्था
Corona Impact on Agriculture: मदद नहीं मिली तो बिगड़ सकती है किसानों की अर्थव्यवस्था

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए लागू देशव्यापी लाकडाउन किसानो की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ सकता है। सरे सीजन सारी मंडियां बंद हो चुकी हैं। ऐसे में किसान रबी सीजन वाली फसलों की उपज लेकर कहां जाएं। इसके लिए सरकारी मदद की तत्काल दरकार है। देश के विभिन्न हिस्सों में रबी सीजन की फसलें खलिहान से मंडियों में आने को तैयार है, जिनमें गेहूं, चना, सरसों और धनिया जैसी फसलें प्रमुख है। लेकिन मंडियों में लाकडउन की वजह से उसे किसानों की हालत पस्त है।

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खरीफ सीजन में भारी बारिश की वजह से सोयाबीन व मूंगफली समेत कई स्थानीय फसलें पहले चौपट हो गई थीं, जिसके चलते रबी सीजन की फसलों पर बहुत सारा दारोमदार है। किसान उसे बेचकर कर्ज चुकता करने की जल्दी में है। लेकिन उसे उल्टी मार सहनी पड़ सकती है। एक ओर तो मंडियां बंद है, दूसरी तरफ कीमतें घट रही है। भला ऐसे में किसानों को दोतरफा मार पड़ रही है।

Lockdown की वजह से 14 अप्रैल तक बंद रहेगी मंडियां

दरअसल, एक अप्रैल से मंडियों में सरकारी खरीद चालू हो जाती है, जिसका सभी किसानों को इंतजार रहता है। लेकिन कोरोना प्रभाव और लाकडाउन होने से देश के सभी राज्यों में मंडियां 14 अप्रैल तक तो बंद ही रहेंगी। इन स्थितियों में स्थानीय छोटे व्यापारियों ने नगदी की जरूरत वाले किसानों से औने-पौने भाव में खरीद करनी शुरु कर दी है। व्यापारी पैसे का भुगतान एडवांस में कर रहे हैं, जबकि उपज का उठाव मंडी खुलने पर किया जाएगा।

सरकारी एजेंसी के खरीदारी न करने का खामियाजा किसानों को

मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों के किसानों की कठिनाई सबसे ज्यादा है, जहां रबी सीजन वाली फसलें सबसे पहले तैयार हो जाती हैं। पिछले सप्ताह जब मंडी खुली हुई थी उस समय मध्य प्रदेश की मंडी में देसी गेहूं जो बाजार में 2500 से 2700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकता है, उसे इस 1600 से 1700 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचना पड़ रहा है। जबकि सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1925 रुपये प्रति क्विंटल है। चना 3900 से 4000 रुपये क्विंटल बिक रहा था, जबकि एमएसपी 4875 रुपये प्रति क्विंटल है। कमोबेश यही हाल सभी जिंसों का है। बाजार में सरकारी एजेंसी के न उतरने का खामियाजा किसानों को उठाना पड़ रहा है। पंजाब व हरियाणा में गेहूं की खरीद आमतौर पर बैसाखी (13 अप्रैल) के बाद ही तेजी पकड़ती है। जबकि उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीद अप्रैल के आखिरी सप्ताह अथवा मई में शुरु हो पाती है।

मंडियों में किसानों की भीड़ को नियंत्रित करना होगा

कृषि क्षेत्र की विकास दर को बनाए रखने के लिए सरकार को कुछ ठोस पहल करने की जरूरत है। मंडियों को कुछ निश्चित समय के लिए खोलने की जरूरत है, जहां निश्चित समय चिन्हित गांव व किसानों की उपज की खरीद की जाए। इससे मंडियों में किसानों की भीड़ से बचा जा सकता है। भारतीय कृषक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णवीर चौधरी ने इस बारे में कहा कि आवश्यक वस्तुओं की सूची में ढेर से गैर जरूरी चीजें शामिल हैं। खासतौर पर शहरी सेवाओं में कटौती की जा सकती है। इसकी जगह मंडियां और ग्रामीण वैल्यू चेन से जुड़ी सेवाओं को शामिल किया जाना चाहिए।


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