पहली लहर में हुई तैयारी पर अमल करते तो नहीं होती अफरातफरी, टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट पर सवाल
कोरोना की पहली लहर के बाद केंद्र और राज्यों के स्तर पर इस महामारी से लड़ने को लेकर जो तैयारी हुई थी उस पर कदम बढ़े होते तो आक्सीजन बेड आदि की कमी को लेकर शायद अफरातफरी नहीं होती।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर के बाबत जनता को तो बार-बार आगाह किया जाता रहा लेकिन सरकारें ही सुस्त पड़ गईं। मार्च, 2020 में कोरोना की पहली लहर के बाद केंद्र और राज्यों के स्तर पर इस महामारी से लड़ने को लेकर जो तैयारी हुई थी उस पर कदम बढ़े होते तो आक्सीजन, बेड आदि की कमी को लेकर शायद अफरातफरी नहीं होती। फिलहाल टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट तीनों सवालों में घिर गए हैं।
पहले ही किया गया था आगाह
मई 2020 में सरकार की तरफ से कोरोना पर होने वाली साप्ताहिक प्रेस वार्ता में बताया गया था कि इस महामारी के खिलाफ आक्सीजन और आइसीयू बेड बढ़ाना सबसे कारगर हथियार साबित होगा। अगस्त, 2020 में यह तय हुआ था कि 162 अस्पतालों में उनका खुद का आक्सीजन संयंत्र होगा। लेकिन पिछले छह-सात महीनों में सिर्फ 33 ही तैयार हो पाए हैं।
ऑक्सीजन संयंत्रों को क्यों नहीं दी गई मंजूरी
अब जबकि काल मुंह खोलकर खड़ा है तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से दावा किया जा रहा है कि 59 और संयंत्र अप्रैल अंत तक तथा 80 मई के अंत तक तैयार हो जाएंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसकी याद तो दिला रहा है, लेकिन इस बात पर चुप्पी है कि सभी संबंधित अस्पतालों में आक्सीजन संयंत्र के लिए एक साथ कांट्रैक्ट क्यों नहीं दिए गए। अब फिर से सौ नए अस्पतालों में आक्सीजन संयंत्र लगाने की मंजूरी मिली है। काश कि अब संबंधित एजेंसियां इसे गंभीरता से लें।
स्वास्थ्य ढांचे में नहीं किए गए सुधार
राज्यों की ओर से फिर से केंद्र से आक्सीजन और वेंटीलेटर्स की गुहार लगाई जा रही है जबकि पिछले दिनों में कोरोना के घटते मामले के वक्त राज्यों ने हाथ पर हाथ रखकर सोना मुनासिब समझा था। कोई राज्य यह बताने की स्थिति में नहीं है कि इस दौरान उनकी ओर से स्वास्थ्य ढांचे को सुधारने के लिए क्या किया गया।
ऑक्सीजन की जरूरत तो रोजाना की है
ध्यान रहे कि स्वास्थ्य जहां राज्य सूची का विषय है, वहीं आक्सीजन की जरूरत सिर्फ कोरोना में नहीं होती। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि पिछले वर्ष राज्यों को 34,228 वेंटीलेटर्स उपलब्ध कराए गए हैं। लगभग पांच हजार वेंटीलेटर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड को और दिए गए। ये पीएम केयर्स फंड से दिए गए थे।
केंद्र के भरोसे राज्य
राज्य यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि उनकी ओर से प्रदेश के अस्पतालों में कितने बेड बढ़ाए गए और कितने वेंटीलेटर्स लिए गए। पहली लहर के बाद केंद्र की ओर से दिल्ली समेत कुछ राज्यों में अतिरिक्त बेड का इंतजाम किया गया था जो पिछले दिनों खत्म कर दिया गया जबकि राज्य केंद्र के भरोसे बैठे हैं।
स्वास्थ्य को प्राथमिकता में लाना जरूरी
देश में फिलहाल प्रतिदिन कोरोना टेस्टिंग की क्षमता 15 लाख है जिसे बढ़ाने का जिम्मा आइसीएमआर और राज्यों का है, लेकिन पिछले छह महीने में न तो आइसीएमआर ने नई लैब जोड़ीं और न ही राज्यों की ओर से इसकी मांग उठी। जाहिर है कि कोरोना की पहली लहर के बाद स्वास्थ्य को प्राथमिकता में लाने की चर्चा छिड़ी जरूर थी, लेकिन किसी भी सरकार की सोच में यह प्राथमिक स्थान नहीं बना पाई।