बाबा रामदेव- महामारी के इस कठिन दौर में सात्विक व अहिंसक जीवन पद्धति से ले रहे ऊर्जा
Coronavirus बाबा बताते हैं कि शारीरिक ऊर्जा बनाए रखने के लिए बीच-बीच में मैं फलाहार के साथ तरल पेय का सेवन करता हूं। दोपहर का भोजन दो से तीन बजे के बीच हो जाता है।
अनूप कुमार, हरिद्वार। Coronavirus: योग गुरु बाबा रामदेव सात्विक व अहिंसक जीवन पद्धति का अनुकरण कर रहे हैं। वे कहते हैं कि महामारी के इस कठिन समय से पार पाने के लिए हमारे पास घर (आश्रम) में रुकने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं है। लेकिन, इस अवधि में हम स्वस्थ, सात्विक व अहिंसक जीवन पद्धति अपनाकर चुनौतियों से निपटने के लिए ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
मैं स्वयं भी यही कर रहा हूं। सुबह चार बजे उठकर प्राकृतिक नियमों का पालन करने के बाद स्नान, ध्यान, योग, यज्ञ व हवन में करीब तीन घंटे का समय देता हूं। यह मेरी हमेशा की दिनचर्या है। रात दस बजे सोकर सुबह चार उठ जाना स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मस्तिष्क की निशानी है। बाबा बताते हैं कि सुबह उठने पर वह गुनगुने पानी में आमला, ऐलोवेरा या फिर गिलोय व तुलसी का सेवन करते हैं। इससे शरीर को आंतरिक ऊर्जा मिलती है। पाचन तंत्र मजबूत होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। कभी-कभी लहसुन या फिर शहद के साथ प्याज का रस भी ले लेते हैं। यह वात रोगों में लाभदायी और खून को पतला करता है। जरूरी होने पर वह गर्म पानी में नींबू-अदरक भी लेते हैं। यह सामान्य स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। चायकॉफी तो वह बिल्कुल नहीं लेते।
स्वाध्याय साधना को समय : बाबा का कहना है कि समय के सदुपयोग में वह स्वाध्याय साधना को ज्यादा वक्त देते हैं। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के साथ ही अन्य विषयों के ग्रंथ व शास्त्रों का अध्ययन करते हैं। वे कहते हैं, इससे न केवल हमारी धार्मिक एवं आध्यात्मिक समझ, बल्कि धार्मिक व आध्यात्मिक विश्वास और श्रद्धा भी विकसित-परिष्कृत होती है। योगाभ्यास भी इसका हिस्सा है। इसमें ध्यान और प्राणायाम बेहद जरूरी है। प्राणायाम से हमारी प्राण शक्ति बढ़ती है तो ध्यान से आत्म-शक्ति। यही इम्युनिटी है, जिसके मजबूत रहने पर हम हर प्रकार की बीमारियों से लड़ सकते हैं।
हर जिम्मेदारी का निर्वहन : बाबा रामदेव बताते हैं कि सुबह आठ बजे के आसपास नाश्ते में वह हर दिन अलग-अलग जूस, अंकुरित अन्न, दलिया आदि का सेवन करते हैं। कई मौकों पर दही-मट्ठा भी इसका हिस्सा होता है, लेकिन तब बाकी चीजें नहीं होती हैं तो। जरूरी होने पर वह नाश्ते में दूध व दही का भी इस्तेमाल कर लेते हैं। इस सबसे फारिग होने पर पतंजलि सहित अन्य जिम्मेदारियों का निर्वहन, सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म पर लोगों की जिज्ञासा शांत करना भी उनकी दिनचर्या में शामिल है। बीच-बीच में स्वाध्याय साधना भी चलती रहती है। इससे मन-विचार व कर्म को परिष्कृत करने और ज्ञान को बढ़ाने के साथ ही आध्यात्मिक विचार व श्रद्धा को मजबूती मिलती है। कुछ देर वह अपने लोगों और साथ में काम करने वालों के साथ अहम मुद्दों पर विमर्श, आने वाले समय व दिनों की रणनीति पर चर्चा करते हैं। इसके बाद इन विषम परिस्थितियों में पतंजलि योगपीठ और उसके विभिन्न प्रकल्पों में काम कर रहे कर्मियों का मनोबल बनाए रखने के लिए विभिन्न स्तरों पर संवाद करते हैं।
एकांत-ध्यान और सात्विक आहार : बाबा बताते हैं कि शारीरिक ऊर्जा बनाए रखने के लिए बीच-बीच में मैं फलाहार के साथ तरल पेय का सेवन करता हूं। दोपहर का भोजन दो से तीन बजे के बीच हो जाता है। इसमें अन्न, खासकर गेहूं- चावल की मात्रा सूक्ष्म और बिना तेल-मसाले की दाल, हरी सब्जी व सलाद की मात्रा ज्यादा होती है। संध्या काल में एकांत-ध्यान और विशेष कार्य न होने पर कुछ देर विश्राम के बाद वह जिम्मेदारियों से संबंधित कार्यों में समय देता हूं। रात का अल्पाहार सात से आठ बजे के बीच हो जाता है और इसके तीन घंटे बाद सोने चला जाता हूं। लेकिन, सोने से पहले खुले में टहलना कभी नहीं भूलता।’