Stay Home Stay Empowered: दिखा कोरोना मुक्त दुनिया का रास्ता, दो शोध के परिणाम यही बता रहे हैं
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोध के मुताबिक कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण के 11 माह बाद भी एंटीबॉडी पाई गई है। शोधकर्ताओं का दावा है कि ये एंटीबॉडी जीवन भर कोरोना संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करेंगी। एंटीबॉडी की संख्या कभी शून्य नहीं होती है।
नई दिल्ली, जेएनएन। उम्मीद दिख रही है कि कोरोना हमेशा नहीं रहेगा। दो नए शोध के परिणाम तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोध के मुताबिक कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण के 11 माह बाद भी एंटीबॉडी पाई गई है। शोधकर्ताओं का दावा है कि ये एंटीबॉडी जीवन भर लोगों को कोरोना संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करेंगी। वहीं एक अन्य शोध में जब ब्रिटेन के लोगों की जांच की गई तो 60 फीसद से 70 फीसद लोगों के शरीर में एंटीबॉडी मिली हैं। यानी वैक्सीन से हर्ड इम्यूनिटी का लक्ष्य पाना संभव है।
ब्रिटेन के नेशनल स्टैटिक्स के आंकड़ों के मुताबिक वेल्स में 76.6 फीसद, इंग्लैंड में 75.9 फीसद, नार्दर्न आयरलैंड में 75 फीसद और स्कॉटलैंड में 68 फीसद लोगों में एंटीबॉडी मिली हैं।
एंटीबॉडी जीवन भर कर सकती हैं रक्षा
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोध के मुताबिक हल्के लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण के 11 माह बाद भी एंटीबॉडी पाई गई है। यह अध्ययन 77 कोरोना मरीजों के रक्त के नमूनों की जांच की जरिए किया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक कोरोना संक्रमण के कुछ महीने बाद एंटीबॉडी तेजी से गिरती हैं लेकिन इसके बाद 11 महीने बाद तक ये रक्त में मौजूद रह सकती हैं। पहली आए कई शोध में कहा गया था कि ये एंटीबॉडी कुछ महीनों में खत्म हो जाती हैं। इस पर नए शोध में कहा गया है कि पुराने शोध गलत जानकारी दे रहे थे। मेडिसिन और मॉलिक्यूलर माइक्रोबायोलॉजी के पैथोलॉजी और इम्यूनोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ एली एलेबेडी ने बताया कि एंटीबॉडी जल्द नष्ट हो जाती है, ये गलत जानकारी फैलाई गई है। बोन मैरो में मौजूद रोग प्रतिरोधी कोशिकाएं एंटीबॉडी का निर्माण करती रहती हैं, भले ही रक्त में इनकी संख्या कम हो जाए। एंटीबॉडी की संख्या कभी शून्य नहीं होती है। इस बात के मजबूत प्रमाण हैं कि कोशिकाएं जीवन भर लोगों को कोविड से सुरक्षा प्रदान करती हैं।
क्या है चुनौती
ब्रिटेन के शोधकर्ताओं के मुताबिक नेचर में प्रकाशित एक लेख में हर्ड इम्यूनिटी पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि कुछ कुछ लोग वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट है। वहीं नए वैरिएंट आ रहे हैं और बच्चों की वैक्सीन में देरी हो रही है।