चीन सीमा पर बढ़ती चुनौतियों को लेकर असम रायफल्स का नियंत्रण सेना के पास रहना निहायत जरूरी
रक्षा मंत्रालय का मत है कि इन हालातों में असम रायफल्स का नियंत्रण और नेतृत्व पूरी तरह सेना के पास ही रहे यह निहायत जरूरी है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। चीन की सीमा पर लगातार बढ़ती चुनौतियों के बीच अर्द्धसैनिक बल असम रायफल्स का प्रशासनिक नियंत्रण गृह मंत्रालय के अधीन करने के प्रयासों से रक्षा मंत्रालय असहमत हैं। सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय का मानना है कि जब चीन सीमा सुरक्षा में तैनात अपने अग्रिम बलों को सेना के नियंत्रण में लाकर मोर्चे पर तैनात कर रहा है। वैसे समय में असम रायफल्स को गृह मंत्रालय के सिविल प्रशासन के अधीन लाने की कोशिश चिंताजनक है।
सेना से 'बाहर' करने पर असहमत रक्षा मंत्रालय
रक्षा महकमे के सूत्रों के अनुसार यह गंभीर चिंतन की बात है कि चीन एक ओर हमारी सीमा पर तैनात अपने अर्द्धसैनिक बलों को सामान्य प्रशासन से निकाल सेना के अधीन कर रहा, हमारी नौकरशाही इसका उलट करने की कोशिश कर रही है। चीन के अलावा म्यांमार ने भी भारत से लगी अपनी सीमा पर तैनात बार्डर सुरक्षा बल को सीधे अपनी सेना के नियंत्रण में रखा है।
गृह मंत्रालय के अधीन लाने के प्रयासों को चिंता का सवाल मान रहा रक्षा महकमा
असम रायफल्स के प्रशासनिक नियंत्रण के प्रयासों पर रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि पुलिस नौकरशाही के उच्च पदों पर तैनाती की संख्या बढ़ाने के मकसद से ऐसी कोशिश की जा रही है। दरअसल इसके गृह मंत्रालय के अधीन आते ही सेना के वरिष्ठ अफसरों की जगह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की असम रायफल्स के उच्च पदों पर तैनाती होने लगेगी।
असम रायफल्स को सैन्य नियंत्रण से बाहर करने की कोशिश
असम रायफल्स देश का एकलौता अर्द्धसैनिक बल है जिसका प्रशासनिक भारतीय सेना के अधीन है और बीते कई सालों से नौकरशाही समय-समय पर इसे सैन्य नियंत्रण से बाहर करने की कोशिश करती रही है। मौजूदा प्रयास के तहत असम रायफल्स को गृह मंत्रालय के अधीन लाकर इसका विलय आइटीबीपी में करने का प्रस्ताव किया जा रहा है।
तब राजनीतिक नेतृत्व ने नौकरशाही की राय ठुकरा दी थी
सूत्रों के अनुसार इसे पहले भी कम से कम सात बार असम रायफल्स को सैन्य प्रशासन से बाहर लाने की कोशिश हुई। अभी से पहले आखिरी प्रयास 2009 में यूपीए सरकार के समय हुआ। तब कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति में मसौदा नोट रख भी दिया गया, लेकिन सेना और रक्षा महकमे के वरिष्ठ लोगों की राय को देखते हुए तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने नौकरशाही की राय ठुकरा दी। सीसीएस ने पूर्वोत्तर में उग्रवादी-आतंकवादी हिंसा से निपटने और संवेदनशील सीमा पर असम रायफल्स की खास भूमिका को देखते हुए इसे सेना के मार्गदर्शन और नेतृत्व में ही काम करते रहने की जरूरत पर मुहर लगा दी।
असम राफल्स ने शुरू से ही सेना के नियंत्रण में काम किया
शुरू से सेना के नियंत्रण में काम कर रहे असम रायफल्स की चीन और म्यांमार सीमा पर तैनाती दूसरे बलों की तुलना में एक रणनीतिक बढ़त देती है। गौरतलब है कि असम राफल्स के बटालियनों ने चीन के साथ 1962 के युद्ध के साथ पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 की जंग में भी हिस्सा लिया था। 1990 से 1998 के बीच इसकी कुछ बटालियन ने गंभीर आतंकवाद के दौर में जम्मू-कश्मीर में भी तैनात रहीं। साथ ही 1988-1990 के बीच श्रीलंका में तैनात भारतीय शांति सेना में भी इसके जवान शामिल थे।
भारत-म्यांमार सीमा आतंरिक सुरक्षा के लिए चुनौती
भारत-म्यांमार सीमा देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बनी हुई। मिजोरम को छोड़ पूर्वोत्तर में सक्रिय सभी उग्रवादी-आतंकवादी गुट म्यांमार व बांग्लादेश से अपनी गतिविधियों का संचालन करते हैं। चीन के हथियारों के तस्करों से भी उन्हें मदद मिलती है।
असम रायफल्स का नियंत्रण सेना के पास रहना निहायत जरूरी
रक्षा मंत्रालय का मत है कि इन हालातों में असम रायफल्स का नियंत्रण और नेतृत्व पूरी तरह सेना के पास ही रहे यह निहायत जरूरी है।