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प्रकृति से छेड़छाड़ के दुष्परिणाम, बेमौसम बरसात की मार; मौसम के तेवर अभी बने हुए तल्ख

इस बार कड़ाके की सर्दी से देशवासियों को दो-चार होना होगा। यह भी कि मानसून की देरी से वापसी की स्थिति में हवा में नमी लंबे समय तक बनी रहती है। यह स्थिति भी अधिक समय तक भारी बारिश का कारण बनती है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 20 Oct 2021 11:58 AM (IST)Updated: Wed, 20 Oct 2021 11:58 AM (IST)
प्रकृति से छेड़छाड़ के दुष्परिणाम, बेमौसम बरसात की मार; मौसम के तेवर अभी बने हुए तल्ख
उत्तराखंड और केरल में भीषण बारिश के पीछे भी इन कारणों को नकारा नहीं जा सकता।

ज्ञानेंद्र रावत। केरल में आई मूसलाधार बारिश ने प्रदेश में भीषण तबाही मचाई है। इसी बारिश ने बीचे सितंबर में महाराष्ट्र, गुजरात, उप्र, बिहार और असम आदि राज्यों में भी कहर बरपाया था। मुंबई में लगातार तीसरे साल 3,000 मिलीमीटर के पार बारिश का आंकड़ा पहुंच गया। कोरोना की मार से अभी केरल उबरा भी नहीं था कि भीषण बारिश के चलते आई बाढ़ ने इसकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।

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वहीं भूस्खलन ने अचानक आई इस तबाही को बढ़ाने में और अहम भूमिका निभाई है। केरल के कोट्टायम और इड्डुक्की आदि जिलों के पहाड़ी इलाकों में वर्ष 2018 की विनाशकारी बाढ़ जैसे हालात बने हैं। नदियां खतरे के निशान को पार कर गई हैं। हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। हालांकि संकट की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने हाईअलर्ट जारी कर दिया है। राज्य सरकार के अनुसार तो अभी तक 36 लोगों की ही मौत हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि वहां मरने वालों की तादाद इससे कहीं अधिक हो सकती है। वहीं लापता लोगों की संख्या अभी तक स्पष्ट नहीं है। कोट्टायम के कोट्टिकल इलाके में मरने वालों की तादाद सबसे ज्यादा है।

असल में केरल और उत्तराखंड में अचानक आई इस बाढ़ को वैज्ञानिक बादल फटने की घटना से जोड़कर देख रहे हैं। कोचीन स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भी इस बात की पुष्टि करता है कि इसके पीछे छोटे बादलों का फटना अहम वजह है। केरल के पश्चिमी घाट का ऊंचाई वाला पहाड़ी इलाका भूस्खलन की दृष्टि से अति संवेदनशील है। कोट्टायम और इड्डुक्की जिले के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में केवल दो घंटे के भीतर ही पांच सेमी से अधिक बारिश हुई है। मौसम विभाग की भी मानें तो एक छोटी सी अवधि में पांच से 10 सेमी की बारिश छोटे बादलों के फटना से ही होती है। भारी बारिश के चलते कोट्टायम, इड्डुक्की, त्रिशूर आदि जिलों में रेड अलर्ट और तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, कोङिाकोड और वायनाड में आरेंज अलर्ट जारी किया गया है।

केरल में मंगलवार को इडुक्की बांध के गेट भारी बारिश से जलस्तर बढ़ने पर खोल दिए गए। प्रेट्र

कुछ ऐसा ही नजारा बीते सितंबर के महीने में देखने को मिला था। अक्सर सितंबर के आखिर में मानसून का प्रभाव कम हो जाया करता है और बारिश भी खत्म हो जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और देश में सितंबर के आखिर तक बारिश का सिलसिला जारी रहा। इससे सर्वत्र हाहाकार मच गया। इस साल सितंबरे में हुई भारी बारिश की बात करें तो इसका प्रमुख कारण मानसून का देरी से विदा होना, निम्न दबाव प्रणाली का जल्दी बनना और जलवायु परिवर्तन के चलते हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में लगातार होने वाली हलचलें हैं। इसका एक और कारण चक्रवाती तूफान ‘गुलाब’ भी है। इन सबके चलते ही देश में लंबे समय तक भारी बारिश हुई है। इसका सर्दियों के मौसम पर भी दुष्प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। उत्तराखंड और केरल में भीषण बारिश के पीछे भी इन कारणों को नकारा नहीं जा सकता।

[पर्यावरण विशेषज्ञ]


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