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एक्‍सपर्ट की जुबानी जानें- क्‍यों अपनी राजनीतिक जमीन खोती जा रही है कांग्रेस, नेता तलाश रहे भविष्‍य

भाजपा जहां लगातार राज्‍यों को अपने कब्‍जे में ले रही है वहीं कांग्रेस लगातार अपनी जमीन खोती जा रही है। इसकी कई वजह हैं। हालांकि जानकार मानते हैं इसकी सबसे बड़ी वजह परिवार के प्रति आस्‍था रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 04 Dec 2020 01:50 PM (IST)Updated: Fri, 04 Dec 2020 10:50 PM (IST)
एक्‍सपर्ट की जुबानी जानें- क्‍यों अपनी राजनीतिक जमीन खोती जा रही है कांग्रेस, नेता तलाश रहे भविष्‍य
लगातार अपनी राजनीतिक जमीन खो रही है कांग्रेस

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा जिस तरह से ऐतिहासिक जीत की तरफ आगे बढ़ रही है वहीं कांग्रेस लगातार अपना वजूद खोती जा रही है। एक दशक के दौरान उसका ये हाल हुआ है। इसके पीछे कई वजह हैं। जिनमें से एक सबसे बड़ी वजह पार्टी का नेतृत्‍व है। जानकार मानते हैं कि पार्टी में नेतृत्‍व या परिवार के प्रति आस्‍था रखने वालों को आगे बढ़ाने की नीति ने पार्टी से उनकी राजनीतिक विरासत छीन ली है। इसके अलावा वह लगातार अपनी राजनीतिक जमीन भी खोती जा रही है। इस संस्‍कृति में जनाधार वाले नेता हाशिए पर जाते रहे।

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भारतीय राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का कहना है कि कांग्रेस के अंदर नेतृत्‍व के प्रति आस्‍था की नीति ने उसको सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में दूसरे नेता अपना वजूद तलाशने में जुटे हैं। कुछ नेता पार्टी के अंदर अपनी आवाज को उठा रहे हैं तो कुछ ने पार्टी में अपना भविष्‍य न देखते हुए भाजपा का दामन थाम लिया है। इसका जीता-जागता उदाहरण ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया हैं। मध्‍य प्रदेश में वो भविष्‍य के नेता हैं। वहीं, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की राजनीति अब ज्‍यादा समय की नहीं रह गई है। उनके मुताबिक, ऐसे कई नेता कतार में हैं। पार्टी लगातार अपने वरिष्‍ठ नेताओं को नजरअंदाज कर रही है। भविष्‍य के जो नेता हैं उनको लगातार अपने से दूर करती जा रही है। असम में हेमंत विश्‍व शर्मा को भी इसी तरह से भाजपा का हाथ थामना पड़ा था। वे असम में अगली पीढ़ी के नेता थे, जिन्‍हें कांग्रेस में तवज्‍जो नहीं मिली और वो पार्टी से बाहर हो गए।

प्रदीप सिंह मानते हैं कि कुछ राज्‍यों में कांग्रेस का संगठन अभी बचा हुआ है। इनमें पंजाब, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, उत्‍तराखंड, केरल, गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। यहां पर दो ही पार्टियां या दो ही गठबंधन हैं। जहां पर भी तीसरी पार्टी की मौजूदगी है वहां पर कांग्रेस अपनी जमीन खो चुकी है। गौरतलब है कि वर्ष 2004 और 2009 में बनने वाली केंद्र की कांग्रेस सरकार में सबसे बड़ा हिस्‍सा आंध्र प्रदेश का था, जहां से उसने 30 से अधिक सीटें अपनी झोली में डाली थीं। लेकिन आज 11 वर्ष बाद यहां पर पार्टी अपना वजूद तलाश रही है। हाल के यूपी विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी की कई सीटों पर जमानत ही जब्‍त हो गई। ये हाल तब है जब प्रियंका गांधी रोज सोशल मीडिया पर कैंपेन चला रही थीं। ऐसे ही महाराष्‍ट्र में भी कभी 15 वर्ष तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी आज चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है। बिहार के चुनाव में भी पार्टी को सफलता नहीं मिली है।

पहले पार्टी को लेकर आवाजें बाहर से उठती थीं वहीं अब ये आवाज पार्टी के अंदर से उठ रही है। बावजूद इसके ये आवाज उठाने वाले हर नेता का भविष्‍य ज्‍योतिरादित्‍य की तरह नहीं है। इसकी एक वजह ये भी है कि दूसरी पार्टियों में ऐसे नेताओं की कोई जगह नहीं है जिनका जनाधार ही कुछ नहीं रह गया है या फिर जिनकी राजनीति बेहद कम समय की बची है। ऐसे में भाजपा जैसी किसी भी पार्टी के लिए अच्‍छा यही है कि ऐसे नेता पार्टी के अंदर रहकर ही उस पर सवाल उठाते रहें। इसका एक सीधा-सा अर्थ ये भी है कि पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी है। हालांकि, पार्टी के अंदर कुछ ऐसे नेता जरूर हैं, जिनका अपना जनाधार होने की वजह से पार्टी को कुछ सीटें मिल जा रही हैं।

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