भाजपा के दबाव में कांग्रेस सीएम सिद्धरमैया ने की ये घोषणा, किसानों के चेहरे खिले
येद्दयुरप्पा ने लगभग डेढ़ हजार करोड़ रुपये का ऋण तब माफ किया था जब राज्य सरकार का बजट महज 17 हजार करोड़ रुपये था।
नई दिल्ली, आशुतोष झा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ने अगर इतिहास रचा है, तो यह मानकर चला जा सकता है कि आने वाले चुनावों के लिए ऋण माफी का मुद्दा भी तय कर दिया है। गुजरात में सत्ता में वापसी के लिए मशक्कत में जुटी कांग्रेस ने जहां कृषि ऋण माफी की घोषणा कर दी है वहीं कर्नाटक का नतीजा चाहे अनचाहे इस मुद्दे से प्रभावित होगा। भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येद्दयुरप्पा के दबाव में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने इसकी घोषणा कर दी है।
केंद्र सरकार ऋण माफी को खुद किसानों के लिए न तो बहुत कारगर मानती है और न ही इसकी पक्षधर है। तर्क यह है कि छोटी-छोटी ऋण माफी भविष्य में किसानों के लिए अड़चन पैदा करती है। ऐसे में माफी की बजाय आमदनी बढ़ाने पर जोर देना सही है। पर केंद्र का यह तर्क क्षेत्रीय राजनीति को रास नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश में इसका प्रभाव दिख चुका है।
योगी सरकार ने पहली कैबिनेट बैठक में 36 हजार करोड़ की ऋण माफी का फैसला भी ले लिया। किसानों के आंदोलन से मजबूर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने भी लगभग 30 हजार करोड़ का ऋण माफी का निर्णय लिया है। गुजरात में तो शायद भाजपा इसे मंजूर नहीं करेगी, लेकिन कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाने का फैसला कर लिया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी ने घोषणा कर दी है कि अगर पार्टी सत्ता में आई लगभग 24 हजार करोड़ रुपये की कृषि ऋण माफी कर दी जाएगी।
बहरहाल, यह सबसे ज्यादा रोचक कर्नाटक में होगा। गौरतलब है कि कर्नाटक में पिछले तीन चार दशकों का सबसे बड़ा सूखा पड़ा है और आत्महत्या की सूचनाएं आ रही हैं। येद्दयुरप्पा पिछले कुछ महीनों से लगातार किसानों के बीच जाकर ऋण माफी का वादा कर रहे हैं। उन्होंने सरकार गठन के 24 घंटे के अंदर सरकारी निर्णय की घोषणा कर दी है। उन्होंने पांच लाख किसानों के साथ बेंगलूरू में प्रदर्शन की धमकी भी दी थी।
बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में वहां बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं हुई हैं। अगले साल की शुरुआत में ही वहां चुनाव है और सिद्धरमैया दबाव में हैं। शायद यही कारण है कि शनिवार को उन्होंने मैसूर में ऋण माफी पर निर्णय की घोषणा कर दी। यानी उत्तर प्रदेश और गुजरात से परे कर्नाटक ऐसा राज्य होगा जहां दोनों प्रतिद्वंद्वी एक ही मुद्दे के साथ मैदान में होंगे और किसान यह तय करेंगे कि उन्हें भरोसा किस पर है।
गौरतलब है कि कर्नाटक में भाजपा के शासनकाल में ही दो बार ऋण माफी की गई थी। पहली बार 2007-08 में जब येद्दयुरप्पा मुख्यमंत्री थे और दूसरी बार 2011 में जगदीश शेट्टार के काल में। जाहिर तौर पर सिद्धरमैया ने अगर ऋण माफी को लागू भी कर दिया तो येद्दयुरप्पा इसे भाजपा की जीत करार देंगे। यह समझाने की भी कोशिश करेगी कि रिकार्ड उनका अच्छा रहा है।
येद्दयुरप्पा ने लगभग डेढ़ हजार करोड़ रुपये का ऋण तब माफ किया था जब राज्य सरकार का बजट महज 17 हजार करोड़ रुपये था। जाहिर है सिद्धरमैया को यह समझाना पड़ेगा कि उन्होंने ऋण माफी का फैसला भाजपा के दबाव में नहीं लिया है। जो भी हो यह तय माना जा सकता है कि दूसरे राज्य इन मुद्दों से अछूते नहीं रह पाएंगे।
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