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दस फीसदी तक गिर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन है इसकी बड़ी वजह

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अगर पेरिस समझौता सही ढंग से लागू नहीं होता है तो लगभग सभी देश चाहे वे अमीर हों या गरीब उष्ण हों या शीत सभी आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 21 Aug 2019 10:20 AM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2019 12:21 PM (IST)
दस फीसदी तक गिर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन है इसकी बड़ी वजह
दस फीसदी तक गिर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन है इसकी बड़ी वजह

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व के सामने बड़ा संकट बनकर खड़ा है। वन, जीव, ग्लेशियर ही नहीं देशों की अर्थव्यवस्था पर भी यह गहरा असर डाल रहा है। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक समस्या से निपटने के लिए समय रहते यदि कारगर कदम नहीं उठाए गए तो साल 2100 तक भारत अपनी अर्थव्यवस्था का 10 फीसद खो देगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अगर पेरिस समझौता सही ढंग से लागू नहीं होता है तो लगभग सभी देश चाहे वे अमीर हों या गरीब, उष्ण हों या शीत सभी आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे।

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ठंडे देशों को भी होगा नुकासन
कुछ लोगों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से गरीब और अधिक तापमान वाले देशों की तुलना में ठंडे व धनी देश इससे अप्रभावित रहेंगे। लेकिन नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि औसतन, अमीर, ठंडे देश भी उतनी ही आमदनी खो देंगे जितनी कि गरीब और गर्म देश।

अमेरिका को भी बड़ा नुकसान
पेरिस समझौते से बाहर हो चुके अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) साल 2100 तक 10.5 फीसद कम हो जाएगा, जो कि पर्याप्त रूप से नुकसानदायक हो सकता है। वहीं कनाडा जो दावा करता है कि वह तापमान में वृद्धि से आर्थिक रूप से लाभान्वित होगा, वह भी साल 2100 तक अपनी मौजूदा आय का 13 फीसद से अधिक खो देगा।

इन देशों को भी खतरा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जापान और न्यूजीलैंड भी अपनी अर्थव्यवस्था का 10 फीसद खो देंगे। वहीं स्विट्जरलैंड, रूस और ब्रिटेन अपनी कुल जीडीपी का क्रमश: 12 फीसद, 9 फीसद और 4 फीसद खो देंगे। शोध से पता चलता है कि अगर कुछ भी नहीं किया गया तो वैश्विक नुकसान 7 फीस होगा।

क्या है जलवायु परिवर्तन?
औद्योगिक क्रांति के बाद धरती का औसत तापमान साल दर साल बढ़ रहा है। आइपीसीसी की रिपोर्ट ने इससे पहली बार आगाह किया था। अब इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। गर्मियां लंबी होती जा रही हैं और सर्दियां छोटी। पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और प्रवृत्ति बढ़ चुकी है। ऐसा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से हो रहा है।

क्या है पेरिस समझौता?
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस में 191 देशों के बीच हुए इस समझौते का मकसद हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम कर दुनियाभर में बढ़ रहे तापमान को रोकना है। इस समझौते में प्रावधान है वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और कोशिश करना कि वो 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़े। भारत ने भी इस समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है। दुनिया भर के कॉर्बन उत्सर्जन का लगभग सात फ़ीसद भारत उत्सर्जित करता है।

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