एक नजर में जानें RTI के जरिए सुप्रीम कोर्ट से क्या कुछ ले सकेंगे जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने खुद को आरटीआई के दायरे में रखकर एक नजीर पेश की है। हालांकि कोर्ट के फैसले में यह भी स्पष्ट है कि जानकारी देते और लेते समय एहतियात भी बेहद जरूरी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट भी आरटीआई के दायरे में आ गया है। कोर्ट का यह फैसला अपने आप में एक नजीर है। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि क्योंकि वह एक पब्लिक ऑथरिटी है लिहाजा वह भी इसके दायरे में है। पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।यह फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस जे खन्ना, जस्टिस गुप्ता, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस रम्मना शामिल थे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से आरटीआई के तहत जानकारी जानकारी लेना आसान हो जाएगा। यह फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 में दिए गए फैसले को ही बरकरार रखा है।
कैसे उठा मामला
आपको बता दें कि वर्ष 2007 में सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति का ब्यौरा जानने के लिए आरटीआई डाली थी, जिसको खारिज कर दिया गया था। इसके बाद अग्रवाल ने चीफ इंफॉर्मेशन कमीश्नर के पास अपील दायर की थी। सीआईसी ने कहा कि क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी इसके दायरे में आता है इसलिए मांगी गई जानकारी सुप्रीम कोर्ट को देनी होगी। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के जनरल सेक्रेटरी और सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने वर्ष 2010 में अग्रवाल के पक्ष में फैसला सुनाया था। जिसके बाद इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। आपको बता दें कि इस मामले में मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना ने एक फैसला लिखा जबकि एनवी रमण और डीवाई चन्द्रचूड़ ने अलग निर्णय लिखे।
क्या पड़ेगा असर
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का काफी व्यापक असर होगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की भी जवाबदेही जनता के प्रति तय हो जाएगी। लेकिन यहां पर ये बात भी ध्यान रखने वाली है कि न तो सभी तरह की जानकारी सुप्रीम कोर्ट से ली जा सकेंगी और न ही हर जानकारी को मुहैया करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट बाधित ही होगा।
एक नजर इधर भी
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि कॉलेजियम के फैसले या न्यायधीशों की नियुक्ति से जुड़ी जानकारी के तौर पर वह सिर्फ जज के नाम की जानकारी देगा। कोर्ट महज ये बताएगा कि कॉलेजियम के तहत इस अमुक जज के नाम की सिफारिश की गई है। आरटीआई के तहत इसके कारणों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाएगी।
- कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि जानकारी लेने के लिए डाली गई आरटीआई का इस्तेमाल निगरानी रखने के हथियार के रूप में नहीं हो सकता है। कोर्ट ने इस विषय पर कहा कि पारदर्शिता की बात करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखना होगा।
- कोर्ट का कहना था कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के ऑफिस की जानकारी देने के बारे में निर्णय लेने और देने के बारे में पारदर्शिता में संतुलन बनाए रखना होगा। पारदर्शिता और न्यायिक स्वतंत्रता को साथ-साथ चलना होगा।
- कोर्ट का कहना था कि सूचना देते समय सीपीआईओ को निजता के प्रावधान का पूरा ध्यान रखना होगा। पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को खराब नहीं किया जा सकता है।
- कोर्ट के फैसले के बाद अब जज की संपत्ति की सूचना के अलावा जजों की नियुक्ति, जजों की प्रोन्नति और उनके ट्रांसफर पर कॉलेजियम में लिए गए फैसलों के अलावा देश के मुख्य न्यायाधीश के बीच हुए पत्र व्यवहार और साथ ही सरकार और देश के मुख्य न्यायाधीश के बीच हुए पत्र व्यवहार की जानकारी दी जा सकेगी।
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