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इलेक्ट्रॉनिक टैटू के इस्तेमाल से सांस, दिल की धड़कन व आवाज की जांच मुमकिन

ब्लड प्रेशर और शरीर के तापमान के साथ स्वास्थ्य के अन्य मानकों की निगरानी के लिए अब त्वचा सरीखे इलेक्ट्रॉनिक टैटू का इस्तेमाल किया जाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 11:32 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 11:35 AM (IST)
इलेक्ट्रॉनिक टैटू के इस्तेमाल से सांस, दिल की धड़कन व आवाज की जांच मुमकिन
इलेक्ट्रॉनिक टैटू के इस्तेमाल से सांस, दिल की धड़कन व आवाज की जांच मुमकिन

नई दिल्ली [जेएनएन]। ब्लड प्रेशर और शरीर के तापमान के साथ स्वास्थ्य के अन्य मानकों की निगरानी के लिए अब त्वचा सरीखे इलेक्ट्रॉनिक टैटू का इस्तेमाल किया जाएगा। चीन की सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ग्रैफीन से यह टैटू बनाया है। इसे मनुष्य की त्वचा के साथ पत्तों और रेशम पर भी स्थानान्तरित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार टैटू बनाने के लिए ग्रैफीन सबसे अच्छा विकल्प है। पतला होने के साथ यह लचीला और विद्युत का अच्छा चालक भी है। इससे बनाया गया इलेक्ट्रॉनिक टैटू अत्यधिक संवेदनशील और लंबे समय तक स्थिर रहता है। इसे आसानी से पहना जा सकता है और यह उच्च तापमान का भी सामना कर सकता है।

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इलेक्ट्रॉनिक टैटू के इस्तेमाल से सांस, दिल की धड़कन और आवाज की भी जांच की जा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय में इलेक्ट्रॉनिक टैटू स्वास्थ्य क्षेत्र में अत्यंत ही लाभकारी सिद्ध होगा।

बीमारियों को समझने में मदद करेंगी नई कोशिकाएं

वैज्ञानिकों ने नई कोशिकाओं की खोज की है, जिनसे फेफड़े की बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी। ये फेफड़ों को प्रभावित करने वाली जेनेटिक गड़बड़ी को ठीक करने और श्वसन संबंधी अन्य बीमारियों का पता लगाने में भी सहायक हो सकती हैं। अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि सीएफटीआर जीन के क्रियाकलाप इन्हीं कोशिकाओं में केंद्रित हैं। इस जीन की गड़बड़ी से सिस्टिक फाइब्रोसिस नामक बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में श्वास नली में कफ जम जाता है। इससे फेफड़ों के साथ लिवर, किडनी और आंत को भी नुकसान होता है।

दुनियाभर में 70 हजार लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। अभी तक इस बीमारी का इलाज नहीं ढूंढ़ा जा सका है। नई कोशिकाओं की पहचान के बाद इस बीमारी का इलाज मिलने की संभावना बढ़ गई है। मछली और मेढ़क में पाई जाने वाली आइनोेसाइट्स कोशिकाओं से मिलती- जुलती होने के कारण शोधकर्ताओं ने इनका नाम ‘पलमोनरी आइनोसाइट्स’ रखा है।  


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