अमेरिका को टारगेट करके अपनी नौसेना को मजबूत कर रहा है चीन, जानें - US, रूस और चीन की नौसेना क्षमता
अमेरिका को टारगेट करके चीन पनडुब्बी का विकास कर रहा है। गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में पनडुब्बियों की काफी अहम भूमिका होती है। आइए जानते हैं कि जल सेना के मामले में अमेरिका और रूस की क्या स्थिति है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। अमेरिका और चीन के मध्य बढ़ते तनाव के बीच बीजिंग अपनी सैन्य क्षमताओं में तेजी से इजाफा कर रहा है। अमेरिका को चुनौती देने के लिए वह लगातार लड़ाकू विमान से लेकर विशालकाय पनडुब्बियों के निर्माण में जुटा है। हाल में चीन अपनी एक नई पनडुब्बी बनाने में लगा है। यह पनडुब्बी काफी विशालकाय है। हालांकि, इस पनडुब्बी के बारे में विस्तृत जानकारी अभी नहीं है, लेकिन यह कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेरिका को टारगेट करके चीन पनडुब्बी का विकास कर रहा है। गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में पनडुब्बियों की काफी अहम भूमिका होती है। आइए जानते हैं कि जल सेना के मामले में अमेरिका और रूस की क्या स्थिति है। चीन की नई पनडुब्बी की काट में अमेरिका के पास कौन सी सक्षम पनडुब्बी मौजूद है। क्या है उसकी खासियत।
अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी से चीन को भय
- रक्षा वैज्ञानिकों की माने तो चीन के पास एक मजबूत और सक्षम नौ सेना है। चीनी नौसेना अत्याधुनिक हथियारों से लैस भी है। इसके बल पर वह अमेरिका को भी चुनौती देता है। इस बात का अमेरिका को भी भान है। लेकिन परमाणु शक्ति से चलने वाली गाइडेड मिसाइल सबमरीन यूएसएस ओहियो दुनिया की सर्वश्रेष्ठ हथियारों में से एक है। शीत युद्ध के दौरान इसका डंका बजता था।
- अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी अपने आकार और प्रहार में मामले में दुनिया में जानी जाती है। यह पनडुब्बी दुश्मन के इलाके में प्रवेश कर सैनिकों और मिसाइलों से हमला करने में सक्षम है। इसके अलावा अमेरिकी नौसेना बेड़े में एंटी शिप मिसाइलों यूएसएस मिशिगन, यूएसएस फ्लोरिडा और यूएसएस जॉर्जिया शामिल हैं। अमेरिका की यह सभी पनडुब्बी घातक एंटी मिसाइलों से लैस है।
- इन पनडुब्बियों में ऐसी तकनीक का प्रयोग किया गया है, जो दुश्मन के प्रहार से अपने को बचाने की स्थिति में है। ओहियो को ताकत देने के लिए इसमें एक परमाणु रिएक्टर को लगाया गया है। इसके जरिए पनडुब्बी में दो टर्बाइनों को ऊर्जा मिलती है। ओहियो में 154 टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें तैनात होती हैं। प्रत्येक टॉमहॉक मिसाइल अपने साथ एक हजार किग्रा तक के वॉरहेड ले जाने में सक्षम हैं। अमेरिकी सेना ने इसका इस्तेमाल सीरिया लीबिया, ईराक और अफगानिस्तान में सफलतापूर्णक किया है।
- चीन की तुलना में अमेरिकी नौसेना के के पास अधिक क्षमता वाले कई घातक गाइडेड मिसाइल ड्रिस्ट्रॉयर और क्रूजर हैं, जो पल भर में भीषण तबाही मचा सकते हैं। ये युद्धपोत अमेरिका के क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता को कई गुना बढ़ाते हैं। उसके पास अपने युद्धपोतों से लॉन्च किए जाने वाले 9000 से अधिक वर्टिकल लॉन्च मिसाइल सेल्स मौजूद हैं, जबकि चीन के पास यह क्षमता केवल 1000 के आसपास है। ऐसे में मिसाइलों के मामले में चीन कहीं भी अमेरिका को टक्कर नहीं दे सकता है।
चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना
चीन ने अमेरिका को टक्कर देने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का निर्माण कर लिया है। मौजूदा समय में चीनी नौसेना के पास अमेरिका से अधिक पनडुब्बियां और युद्धपोत हैं। चीन की 62 में से सात पनडुब्बियां परमाणु शक्ति से संचालित होती हैं। चीन को पारंपरिक ईंधन के रूप में भी उसे अब ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ रहा है। यह तकनीक अमेरिका के पास भी है। चीनी राष्ट्रपति ने शी चिनफिंग वर्ष 2015 में शिपयार्ड और प्रौद्योगिकी में निवेश का आदेश जारी किया था। उन्होंने कहा था कि हमें एक शक्तिशाली नौसेना के निर्माण की जरूरत महसूस हो रही है। चीन ने वर्ष 2015 में चीनी नौसेना ने अपनी ताकत को अमेरिकी नौसेना के बराबर करने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया था। पीएलए को विश्व-स्तरीय फाइटिंग फोर्स में बदलने के काम आज भी उसी तेजी से जारी है। सुप्रीम कमांडर का आदेश पाने के बाद से ही चीनी नौसेना ने पिछले 5-6 साल में अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा लिया है। यह अमेरिका के लिए बेहद चिंता का विषय है।
रूस के पास भी थी सक्षम पनडुब्बी
पनडुब्बियों के मामले में रूस की नौसेना भी पीछे नहीं है। दुनिया की सबसे विशालकाय पनडुब्बी रूसी नौसेना के पास है। रूस की टाइफून क्लास दुनिया की विशाल पनडुब्बियों में से एक है। यह पनडुब्बी बैलिस्टिक मिसाइल से लैस है। यह किसी भी देश की नौसेना को मात देने में पूरी तरह से सक्षम है। हालांकि, मौजूदा समय में रूस के पास कितनी बैलिस्टिक मिसाइलें ऑपरेशनल हैं, इसका अंदाजा नहीं है। शीत युद्ध के समय अमेरिका भी इन पनडब्बियों से घबराता था। अब हालत बदल चुके हैं। शीत युद्ध के बाद टाइफून की मिसाइलें एक्सपायर हो गई हैं। शीत युद्ध के खात्मे के साथ रूस ने यह फैसला लिया था कि इस पर वह अपना पैसा नहीं बर्बाद करेगा। टाइफून का काम खत्म हो गया। टाइफून और मिसाइलों का बेहतर वर्जन लाने का प्लान रूस ने छोड़ दिया।