श्रीलंका में राजपक्षे की सत्ता से चीन गदगद, भारत की चिंताएं बढ़ी, होगी पैनी नजर
दक्षिण एशिया में भारत की मुश्किलें बढ़ी हैं। भारत के दो पड़ोसी मुल्कों में ऐसे सरकार अस्तित्व में आई जिनका रुख भारत विरोधी रहा है।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल । श्रीलंका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। इस चुनाव में विपक्षी नेता गोताबाया राजपक्षे विजयी रहे हैं। गोताबाया की भारत विरोधी रुख के कारण श्रीलंका का यह चुनाव उसके लिए बेहद उपयोगी है। इसलिए भारत की नजर श्रीलंका पर टिकी है। हालांकि, भारत ने साफ कर दिया है श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय सहयोगात्मक रिश्ता बनाने की कोशिश करेगा। इस सकारात्मक नजरिए के बावजूद भारत राजपक्षे की भावी नीतियों पर करीबी नजर रखेगा।
जायज है भारत की चिंता
श्रीलंका में हुए चुनाव के नतीजों पर भारत की चिंता नाजायज नहीं है। दरअसल, दक्षिण एशिया मुल्कों में भारत और श्रीलंका के रिश्ते काफी अहम है। श्रीलंका की आंतरिक तथा वाह्य नीतियों का असर भारत पर सीधे पड़ेगा। यह भारत की आंतरिक राजनीति के साथ सुरक्षा एवं सामरिक हितों को भी प्रभावित करती हैं। खासकर तब जब श्रीलंकाई नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति के पास हो जिसका रुख भारत विरोधी रहा हो। ऐसे में यह चिंता और बढ़ जाती है।
ड्रैगन फैक्टर भी आ रहा है संबंधों में बाधा
- भारत की यह चिंता तब और बढ़ जाती है, जब दक्षिण एशिया के किसी मुल्क में चीन का दखल बढ़ जाता है या चीन की दिलचस्पी ज्यादा बढ़ जाती है।
- गत वर्षों में श्रीलंका में चीन की दिलचस्पी बढ़ी है। वर्ष 2005-2015 तक राष्ट्रपति रहे महिंद्रा राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका और चीन नजदीक आए हैं।
- महिंद्रा के समय ही हमबनतोता बंदरगाह और एयरपोर्ट का ठेका चीन को दिया गया। उक्त परियोजना के पीछे चीन का मकसद भारत को हिंद महासागर में घेरने की है।
- कुछ महीने पहले ही हिंद महासागर के एक अन्य देश मालदीव से चीन के हितों का खुल कर समर्थन करने वाली सरकार के बाहर होने से भारत ने राहत की सांस ली थी।
दक्षिण एशिया में भारत की मुश्किलें बढ़ी
- दक्षिण एशिया में भारत की मुश्किलें बढ़ी हैं। भारत के दो पड़ोसी मुल्कों में ऐसे सरकार अस्तित्व में आई जिनका रुख भारत विरोधी रहा है।
- नेपाल में हुए चुनाव में भारत विरोधी सरकार अस्तित्व में आई। श्रीलंका में ऐसेे व्यक्ति या पार्टी की जीत हुई है, जिसकी छवि भारत समर्थक की नहीं है।
- दक्षिण एशिया में नेपाल के बाद श्रीलंका ऐसे दूसरा मुल्क है, जिसका नेतृतव भारत विरोधी छवि के रूप में जाना जाता है।
- नेपाल में भारत विरोधी छवि वाले के पी शर्मा ओली के नेतृत्व में सरकार बनी लेकिन दोनो देशों के रिश्ते सामान्य गति से ही आगे बढ़ रहे हैं।
- विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक भारत पहले ही यह निर्णय कर चुका है कि वह पड़ोसी देशों में होने वाले चुनाव में पूरी तरह से निष्पक्ष रहेगा और जो भी वहां की सरकार आएगी उसके साथ काम करेगा।
सामरिक ही नहीं, बल्कि घरेलू राजनीति भी होंगे प्रभावित
- भारत की चिंता सिर्फ बाहरी सामरिक हितों से जुड़ी हुई नहीं है, बल्कि घरेलू राजनीति से भी जुड़ी हुई है। राजपक्षे की छवि तमिल विरोधी की है।
- तमिल बहुल इलाके में उन्हें सिर्फ 15 फीसद वोट मिलने से साफ है कि इस अल्पसंख्यक समुदाय के मन में उनके लिए काफी संदेह है।
- राजपक्षे के चुनाव प्रचार में खुल कर बहुसंख्यक सिंहली आबादी के हितों की बात कही गई। पूर्व में भी जब महिंदा राजपक्षे की सरकार थी तो वहां तमिलों से जुड़े मुद्दे भारतीय राजनीति में भी असर दिखाते हैं। तमिलनाडु की राजनीति में श्रीलंका में तमिलों की स्थिति एक प्रमुख मुद्दा होता है।
शीत युद्ध के बाद बदल गए संबंधों के मायन
शीत युद्ध के बाद विकसित और विकासशील देशों के हितों में बड़ा बदलाव आया है। इस नए युग में दो देशों के बीच संबंधों के मायने और कारकों में बड़ा परिवर्तन आया है। इसकी बड़ी वजह इन देशों के हितों में बड़े फेरबदल का होना है। इसका ताजा उदाहरण भारत और अन्य मुल्कों के साथ उसके संबंधों में देखा जा सकता है। इसका ताजा उदाहरण भारत का रूस और अमेरिका के साथ नजदीकियों के रूप में देखा जा सकता है। आखिरकार अब भारत अपने रूस के साथ संबंधों का निर्वाह करते हुए अमेरिका के नजदीक जा सकता है। इसी तरह से भारत भी एक साथ रूस और अमेरिका, सउदी अरब और ईरान, इजरायल व फिलीस्तीन के साथ सामंजस्य बनाये हुए है।