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बंदरों के बहाने चीन ने मारी गुलाटी, अमेरिका में कोरोना वैक्सीन पर हो रहा शोध प्रभावित

चीन ने बंदरों का निर्यात रोककर अमेरिका में कोरोना वैक्सीन के निर्माण के रास्ते में अड़ंगा खड़ा कर दिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 09:10 AM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2020 11:56 AM (IST)
बंदरों के बहाने चीन ने मारी गुलाटी, अमेरिका में कोरोना वैक्सीन पर हो रहा शोध प्रभावित
बंदरों के बहाने चीन ने मारी गुलाटी, अमेरिका में कोरोना वैक्सीन पर हो रहा शोध प्रभावित

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारत समेत अन्य पड़ोसियों की भूमि पर नजर गड़ाने वाला भूमाफिया चीन कोरोना संक्रमण की वैश्विक लड़ाई में भी खलनायक के रूप में उभर रहा है। कोरोना वायरस को मात देने के लिए दुनियाभर के देश परस्पर सहयोग व जानकारियों का आदान-प्रदान कर रहे हैं, लेकिन चीन ने बंदरों का निर्यात रोककर अमेरिका में कोरोना वैक्सीन के निर्माण के रास्ते में अड़ंगा खड़ा कर दिया है।

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चीन से गत वर्ष मंगाए 60 फीसद बंदर: अमेरिका में बंदरों की कमी के तीन प्रमुख कारण हैं। एक, कोरोना संक्रमण के कारण बंदरों की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। दूसरा, चीन ने आपूर्ति बंद कर दी है, क्योंकि वह खुद भी वैक्सीन का विकास कर रहा है। अमेरिका ने पिछले साल चीन से 60 फीसद यानी करीब 35,000 बंदर आयात किए थे। तीसरा, कोरोना संक्रमण से पहले परीक्षण के लिए बंदरों की कमी पर ध्यान नहीं दिया गया और चीन की तरफ से आपूर्ति बंद किए जाने के बाद स्थिति बदतर हो गई।

अनुसंधान संगठन बायोक्वल के सीईओ मार्क लेविस ने बताया, ‘हमें बंदर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। वे पूरी तरह गायब हो चुके हैं।’ बायोक्वल जानवरों पर परीक्षण करने वाला विशेषज्ञ संगठन है। मिल्केन वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार, 207 वैक्सीन का अध्ययन किया जा रहा है। इनमें से कई प्री-क्लीनिकल स्टेज में हैं। बंदरों की कमी को देखते हुए अमेरिका में अब ‘मंकी रिजर्व’ की मांग भी उठने लगी है।

इसलिए अनुसंधान के लिए बंदर जरूरी: किसी भी वैक्सीन का मानव से ठीक पहले बंदरों पर परीक्षण किया जाता है। टुलेन नेशनल प्राइमेट रिसर्च सेंटर के एसोसिएट डायरेक्टर स्किप बोहम का कहना है कि बंदरों और मनुष्यों का इम्यून सिस्टम बहुत हद तक समान होता है। ऐसे में वैज्ञानिक मनुष्यों व बंदरों में एंटीबॉडी का निर्धारण करने के लिए समान प्रक्रिया अपना सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग के वैक्सीन शोधकर्ता जे. फ्लीन कहते हैं कि बंदर परीक्षण के लिए सबसे उपयुक्त मॉडल हैं, जिन पर वैक्सीन के प्रभाव का सही आकलन किया जा सकता है। कोरोना संक्रमण का बंदरों पर बहुत मामूली असर पड़ता है, यह विशिष्टता परीक्षण के लिए उन्हें उपयुक्त बनाती है। हालांकि, अमेरिका में बायोमेडिकल रिसर्च में इस्तेमाल किए जाने वाले कुल जानवरों में बंदरों की उपयोगिता महज 0.5 फीसद है।

चैलेंज ट्रायल्स के लिए सबसे उपयुक्त: वैज्ञानिकों का एक धड़ा वैक्सीन के लिए चैलेंज ट्रायल्स (चुनौती परीक्षण) पर बल देता है। यानी, परीक्षण वाले जीव को पहले संक्रमित किया जाता है और इसके बाद वैक्सीन के सही प्रभाव का आकलन किया जाता है। कोरोना संक्रमण का अभी जबकि इलाज उपलब्ध नहीं है तो मनुष्य पर ऐसा करना खतरनाक होगा। ऐसे में बंदर बेहतर विकल्प के रूप में सामने आते हैं।

दुनिया में 260 से भी ज्यादा प्रजाति: वेबसाइट लाइवसाइंस के अनुसार, दुनियाभर में 260 से भी ज्यादा प्रजाति के बंदर पाए जाते हैं। इन्हें दो वर्गों में बांटा गया है-न्यू वर्ल्ड व ओल्ड वर्ल्ड। न्यू वर्ल्ड वाले बंदर अमेरिका में पाए जाते हैं, जबकि ओल्ड वर्ल्ड वाले बंदर एशिया और अफ्रीका में। दोनों की शारीरिक बनावट में कई अंतर हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कांसिन के अनुसार, दुनिया का सबसे छोटा बंदर पिग्गी मार्मोसेट है, जिसका वजन करीब 113 ग्राम व लंबाई लगभग पांच इंच है। सबसे बड़ा बंदर मैंड्रिल है, जिसका वजन लगभग 35 किलोग्राम व लंबाई लगभग एक मीटर तक होती है।

हैम्स्टर को बनाया जा रहा विकल्प: अमेरिका में बंदरों की कमी के बीच वैज्ञानिकों ने गंभीर बीमारियों के अध्ययन के लिए हैम्स्टर को विकल्प बनाना शुरू कर दिया है। हैम्स्टर चूहे की एक प्रजाति है। कोरोना संक्रमित हैम्स्टर सुस्त पड़ जाते हैं, तेज सांस लेने लगते हैं और उनका वजन 11 फीसद तक कम हो जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के मेडिकल ब्रांच के वायरोलॉजिस्ट वी. मेनाचेरी कहते हैं, ‘मॉडल के तौर पर हैम्स्टर अच्छी नस्ल है। वे काफी छोटे हैं और उन्हें संभालना आसान है।’


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