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लद्दाख में सैन्य अड्डों पर चीन के बाद भारत ने भी तैनात की तोपें और बड़े युद्धक वाहन

चीनी सैन्य जमावड़े का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना ने भी वहां ताकत और तैनाती बढ़ा दी है। वह भी पूर्वी लद्दाख में तोपों और सैन्य उपकरणों को भेज रही है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 05:02 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 02:19 AM (IST)
लद्दाख में सैन्य अड्डों पर चीन के बाद भारत ने भी तैनात की तोपें और बड़े युद्धक वाहन
लद्दाख में सैन्य अड्डों पर चीन के बाद भारत ने भी तैनात की तोपें और बड़े युद्धक वाहन

नई दिल्ली, एजेंसियां।  भारत और चीन की सेनाएं तोपों और टैंकों समेत भारी हथियारों और युद्धक उपकरणों का पूर्वी लद्दाख के विवादित क्षेत्र के नजदीक स्थित सैन्य अड्डों पर जमावड़ा कर रही हैं। दोनों देशों में पिछले 25 दिनों से जारी तनातनी के बीच जमा किए जा रहे हथियारों से लद्दाख के युद्ध का मैदान बनने की आशंका बढ़ती जा रही है।

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चीनी सेना ने वहां पर बड़ी तादाद में पैदल सेना को ले जाने वाले युद्धक वाहनों को भी तैनात कर दिया है, जिसे कुछ ही घंटों में भारतीय क्षेत्र के पास तैनात किए जा सकता है। उधर, चीनी सैन्य जमावड़े का मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना ने भी वहां अपनी ताकत और तैनाती यकायक बढ़ा दी है। वह भी पूर्वी लद्दाख में तोपों और सैन्य उपकरणों को भेज रही है। 

दोनों पक्षों की कई दौर में बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला 

भारतीय और चीनी पक्ष पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सभी स्थानों पर बटालियन और ब्रिगेड स्तर पर एक-दूसरे से बात कर रहे हैं, जिसका अभी तक कोई परिणाम नहीं निकाला है। उसका भी नतीजा हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि चीनी जिन स्‍थानों पर थे, किसी भी पोजिशन से पीछे नहीं हटे हैं। विभिन्न स्थानों पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच लगातार आमना- सामना हो रहा है।

वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में बड़ी संख्या में क्लास ए वाहनों को चीनी सेना के पीछे की पोजिशन पर देखा जा सकता है। इन वाहनों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के भारतीय तरफ से 25-30 किलोमीटर की दूरी पर तैनात किया गया है और कुछ ही घंटों में इसे बॉर्डर पर आगे लाया जा सकता है। 

भारत को बातचीत में उलझाना चाहता है चीन  

ऐसा लगता है कि चीनी पक्ष बातचीत के माध्यम से भारत को उलझाना चाहता है और इसका उपयोग वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए कर रहा है। दूसरी ओर कमांडिंग ऑफिसर और ब्रिगेड कमांडर के स्तर पर बातचीत लगभग दैनिक आधार पर हो रही है, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं दिख रहा है। अब दोनों पक्षों के प्रमुख जनरल रैंक के अधिकारी जल्द ही बैठक करेंगे, ताकि क्षेत्र में तनाव को खत्म करने के तरीकों पर चर्चा की जा सके। चीनी पक्ष नियंत्रण रेखा में भारत द्वारा बुनियादी ढांचे के विकास पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। चीनी सेना के बेस पर क्लॉस ए स्तर के वाहन बड़े पैमाने पर सैटेलाइट इमेज में देखे जा सकते हैं।  

उल्लेखनीय है कि मई की शुरुआत में चीनी सैन्य अधिकारियों ने सीमावर्ती भारतीय क्षेत्रों में उसे अपना बताते हुए गश्त लगानी शुरू कर दी थी। और तभी से पैंगोंग झील और गलवान घाटी में अस्थाई शिविर बना लिए। इस पार भारतीय सेना ने अपना कड़ा विरोध जताते हुए उन्हें तत्काल इस क्षेत्र में शांति बहाल करने की हिदायत दी। जबकि चीनी सेना ने डेमचोक और दौलत बेग (पुराने) पर भी कब्जा करके उस पर अपना दावा ठोंकने की हिमाकत की है।

चीनी सेना ने पैंगोंग त्सू झील और गलवान घाटी में 2500 सैनिक तैनात किए हैं। सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर लाख समझाने के बावजूद चीनी सेना वापस अपनी जगह पर लौटी नहीं है। साथ ही वह अपना सैन्य जमावड़ा बढ़ाती जा रही है। हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

भारतीय सेना ने भी वहां अपनी ताकत और तैनाती यकायक बढ़़ा दी है। भारत ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के पास नियमित डिवीजन से अतिरिक्त सैनिकों को वहां भेजा है और उन्हें ऊंचाई वाले स्‍थलों पर युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया गया है। सेना की सामान्य तैनाती, जो क्षेत्र में कोरोना महामारी से कुछ हद तक प्रभावित थी, अब लद्दाख में भी होने लगी है, जहां बड़ी संख्या में सैनिकों को विमान और सड़क मार्ग से भेजा गया है। 

भारत ने भी अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह तब तक शांत नहीं बैठेगा, जब तक कि पैंगोंग झील, गलवां घाटी और लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में पहले वाली स्थिति बहाल नहीं हो जाती है। इस विवादित क्षेत्र में भारतीय वायुसेना बड़ी गहन हवाई गश्त कर रही है।

सूत्रों ने कहा कि भारत की सीमाओं की रक्षा के संबंध में कोई समझौता नहीं किया जाएगा, जबकि भारत शांति में विश्वास करता है, यह अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए दृढ़ और संकल्‍पबद्ध है। यह भारत और चीन के बीच चार या इससे अधिक बार समझौतों की भावना से परिलक्षित हुआ है, जिसमें ऐतिहासिक रूप से सीमा प्रबंधन के लिए तंत्र (मैकेनिज्‍म) का गठन किया है।

तंत्र अभी भी कायम है और द्विपक्षीय स्तर पर काम कर रहा हैं। उनमें से दो वर्ष 1993 और 1996 के हैं। इसके अलावा 2005 में आत्मविश्वास निर्माण के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर) और 2013 में एक सीमा समझौता शामिल है।

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