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1969 में युद्ध लड़ चुके हैं रूस और चीन, अब साथ आकर बढ़ा रहे भारत की चिंता

1969 में रूस के साथ जंग लड़ चुका चीन अब उसका सहयोगी बन रहा है। आलम ये है कि चीन अब रूस से सैन्‍य उपकरण खरीद रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 04:47 PM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 06:55 PM (IST)
1969 में युद्ध लड़ चुके हैं रूस और चीन, अब साथ आकर बढ़ा रहे भारत की चिंता
1969 में युद्ध लड़ चुके हैं रूस और चीन, अब साथ आकर बढ़ा रहे भारत की चिंता

नई दिल्‍ली (जागरण स्‍पेशल)। विश्‍व में बदलते राजनीतिक समीकरण काफी कुछ बयां कर रहे हैं। इन बदलते राजनीतिक समीकरणों का ही परिणाम है कि 1969 में रूस के साथ जंग लड़ चुका चीन अब उसका सहयोगी बन रहा है। आलम ये है कि चीन अब रूस से सैन्‍य उपकरण खरीद रहा है। इसके चलते अमेरिका ने चीन की सेना पर प्रतिबंध भी लगा दिए हैं। लेकिन इन दोनों देशों की बढ़ती मित्रता ने भारत को चिंता में डाल दिया है। आपको बता दें कि चीन रूस से एसयू 30 और एस-400 मिसाइल सिस्‍टम खरीद रहा है। यहां पर ये भी ध्‍यान में रखनी जरूरी है कि हाल ही में रूस-चीन ने मिलकर अब का सबसे बड़ा सैन्‍य अभ्‍यास वोस्‍तोक 2018 किया है। इसमें करीब तीन लाख सैनिकों ने हिस्‍सा लिया था जिसमें 30 विमानों के साथ चीन के 3,200 सैनिकों ने हिस्‍सा लिया था। इसको लेकर अमेरिका ने काफी समय आंख तरेर रखी हैं।

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रूस-चीन दोस्‍ती
ऑब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि कुछ क्षेत्रों में मतभेद होने के बावजूद चीन रूस का एक महत्वपूर्ण साझीदार बनकर उभरा है। उनके मुताबिक रूस के पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में तलखी आ रखी है। ऐसे में व्यापार और सैन्य सहयोग में वह चीन के काफी करीब आ गया है। कुछ साल पहले तक यह सोचा भी नहीं जा सकता था। इतना ही नहीं, रूस में चीन का निवेश लगातार बढ़ रहा है। चीन रूस से सबसे अधिक तेल की खरीद कर रहा है। इसके अलावा वह आने वाले समय में चीन के प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा स्रोत भी बन जाएगा। ऐसे वक्त में, जब ज्यादातर देशों के साथ रूस के कारोबारी रिश्ते लुढ़क रहे हैं, चीन उसके लिए एक बहुमूल्य ठिकाना साबित हो रहा है।

अमेरिका को चुनौती
उनके मुताबिक अमेरिकी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देने के लिए अब ये दोनों देश पहले से कहीं अधिक एक हुए हैं। देखा जाए, तो भारत के लिए यही असली चुनौती है। नई दिल्ली लंबे समय से मास्को के साथ करीबी रिश्ते का आग्रही रहा है। भारत के ऐतराज के बावजूद पाकिस्तान के साथ रूस के रिश्ते परवान चढ़ रहे हैं और मॉस्को अफगानिस्तान के मसले पर अपने सुर बदल रहा है। वह अब तालिबान के साथ बातचीत का मजबूत पक्षधर बन गया है। इतना ही नहीं, रूस ने भारत को यह सलाह भी दी है कि वह चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव को चुनौती न दे। जिस तरह से विभिन्न मोर्चों पर चीन ने भारत के लिए चुनौतियां खड़ी की हैं, उन्हें देखते हुए अगले महीने जब रूसी राष्ट्रपति भारत में होंगे, तब चीन और रूस की बढ़ती नजदीकियों का मसला उनके साथ बातचीत के एजेंडे में सबसे ऊपर होना चाहिए।

वोस्‍तोक 2018
वोस्‍तोक 2018 में चीन को अपने साथ युद्धाभ्यास में शामिल करके रूस ने यह संकेत दिया है कि वह उसे आने वाले कुछ वर्षों में खतरे के रूप में नहीं देख रहा है। अब दोनों मिलकर अमेरिका से मोर्चा लेने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। रूस और चीन, दोनों अपने तईं ट्रंप प्रशासन को जवाब देने में जुटे हुए हैं। चीन की प्राथमिकता जहां अमेरिका के साथ अपने आर्थिक संबंधों को स्थिर बनाने में है, वहीं रूस भी अपनी ताकत की हद समझता है। इस चीन-रूस मैत्री का वह जूनियर पार्टनर है और दक्षिण चीन सागर विवाद में उसकी ज्यादा रुचि भी नहीं है।

पाक के करीब रूस
जहां तक भारत के परेशान होने का प्रश्‍न है तो भारत का अमेरिका के करीब जाना कहीं न कहीं इसका ही नतीजा है कि रूस चीन के करीब होता जा रहा है। आपको बता दें कि रूस लंबे समय से भारत की सुरक्षा की मजबूत रीढ़ की हड्डी बना रहा है। भारत की रक्षा प्रणालियों और सुरक्षा तंत्र में रूस का अहम योगदान रहा है। लेकिन हाल के कुछ समय में भारत और रूस के रिश्‍तों में गिरावट आई है। इस गिरावट की एक वजह ये भी है कि रूस का झुकाव न सिर्फ चीन बल्कि पाकिस्‍तान की तरफ भी हो रहा है। ऐसे में भारत की चिंता बढ़नी जरूरी है।

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