बच्चों की सेहत होगी बड़ी चुनौती, छह माह तक रहना होगा सचेत; डबल टीकाकरण से रुकेगा संक्रमण
डॉ. लोकेश तिवारी ने बताया कि कोविड-19 के कारण भारी संख्या में हुई घर वापसी से न तो बच्चों का समय पर टीकाकरण हो पाया और न ही उन्हें मिला सही पोषण।
नई दिल्ली, पवन कुमार मिश्र। कोविड-19 के संक्रमण में बच्चों की सेहत को लेकर बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। बच्चों की इम्युनिटी कमजोर होती है, ऐसे में उनके संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। भले ही डॉक्टर्स यह मान रहे हैं कि कोरोना संक्रमण बच्चों पर उतना प्रभावी नहीं है लेकिन मौसम के साथ आने वाले संक्रमण का खतरा बरकरार है। उस पर बीते दिनों लॉकडाउन के चलते समय से टीकाकरण भी नहीं हो पाया है। जानें क्या कहते है पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. लोकेश तिवारी।
खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में लौटे प्रवासियों के बच्चे शरीर को कैसे पोषित व सुरक्षित रखें, यह बड़ा सवाल है। बरसात का मौसम कई बीमारियां लेकर आता है। ऐसे में बच्चों की सेहत को लेकर खास सावधानी बरतनी होगी। बच्चों का भोजन पौष्टिक व स्वच्छ होना चाहिए क्योंकि कुपोषित शरीर बीमारियों का घर होता है। ऐसे बच्चों में अन्य बीमारियां भी गंभीर रूप धारण कर लेती हैं। डायरिया व निमोनिया जैसे रोगों से होने वाली मौतों में सर्वाधिक संख्या कुपोषित बच्चों की ही होती है। इसके अलावा मलेरिया, डेंगू, एक्यूट इंसेफेलाइटिस और मस्तिष्क ज्वर का प्रकोप भी बरसात के मौसम में ही होता है।
बढ़ जाते हैं कई खतरे: स्वस्थ शरीर के लिए विटामिन ए, बी, सी और डी के अलावा कैल्शियम आयोडीन, जिंक व सेलेनियम जैसे खनिज भी आवश्यक होते हैं। इनकी कमी से शारीरिक और मानसिक विकास कम होने के साथ एनीमिया, थायरॉयड, रिकेट्स, रतौंधी और सूखा रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। विटामिन-ए की कमी से खसरा और डायरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
ऐसे बनेगी बच्चों की पोषक थाली: बच्चों के पूर्ण विकास के लिए यह जरूरी नहीं कि महंगी खाद्य सामग्री का ही इस्तेमाल हो। इसकी जगह भोजन में विविधता हो ताकि सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें। इसमें कार्बोहाइड्रेट के लिए चावल, चपाती, प्रोटीन के लिए दाल, सोयाबीन, चना, सत्तू, विटामिन और खनिज के लिए कोई भी एक मौसमी हरी सब्जी व एक फल, थोड़ी मात्रा में तेल-घी, नमक और चीनी पर्याप्त है। पनीर, दूध व अन्य डेयरी उत्पाद अतिरिक्त पोषक तत्व के रूप में बच्चों के भोजन में शामिल कर सकते हैं।
छह माह तक रहना होगा सचेत: केंद्र व राज्य सरकारों ने हाल ही में सर्वे कराया है जिसके अनुसार नियमित टीकाकरण में दो से तीन हफ्ते की देरी का कोई खास प्रभाव नहीं होता लेकिन तीन माह से अधिक समय बीतने पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है, फिलहाल इसका कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है लेकिन आगामी छह माह में इसके परिणाम सामने आ सकते हैं। इसको देखते हुए सरकार ने तीन चरणों में कैचअप इम्युनाइजेशन प्रोग्राम तैयार किया है। अगले छह माह तक स्वास्थ्य विभाग को सचेत रहना होगा। इसके अलावा छूटे हुए बच्चों के टीकाकरण के लिए अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती की जानी चाहिए। टीकाकरण को जाएं अस्पताल: कोरोना संक्रमण के कारण फिलहाल गांव-मोहल्लों में लोगों को नियत तिथि व समय पर एकत्र कर एक साथ टीकाकरण करने की प्रक्रिया बंद चल रही है। ऐसे में बच्चों को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए अभिभावक नजदीकी अस्पताल जाएं।
सिर्फ दूध नहीं है पर्याप्त: चिकित्सकों के अनुसार, सिर्फ छह माह तक ही बच्चों को स्तनपान करवाना चाहिए। इसके बाद उन्हें दाल का पानी, दलिया, केला या अन्य तरल पदार्थ के रूप में भोजन भी देना शरू करना चाहिए। सिर्फ दूध देने से बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और उनका समुचित विकास नहीं हो पाता है। दूध संपूर्ण आहार है लेकिन छह माह से अधिक उम्र के बच्चों के लिए केवल दूध से शारीरिक विकास संभव नहीं है।
डबल टीकाकरण से रुकेगा संक्रमण: लॉकडाउन के कारण दो माह से अधिक समय तक नियमित टीकाकरण बाधित होने से बच्चों पर डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, जापानी इंसेफेलाइटिस, मीजल्स जैसे संक्रामक रोगों का खतरा मंडराने लगा है। केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके खतरे को कम करने के लिए इम्युनाइजेशन शुरू करने का आदेश दिया था। हालांकि, लॉकडाउन के कारण बहुत से अभिभावक उसके बाद भी संक्रमण से बचने के लिए अस्पताल नहीं गए। अलग-अलग टीके की समयावधि तय है। केंद्र सरकार ने कैचअप इम्युनाइजेशन यानी जिन बच्चों के नियमित टीकाकरण में कई माह की देर हो गई है उनका डबल टीकाकरण कराना शुरू कर दिया है ताकि संक्रामक रोगों को प्रभावी ढंग से रोका जा सके।