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देश के 38 फीसद चाइल्‍ड होम्‍स में बच्चे खतरे में, 2764 बाल गृहों में दु‌र्व्यवहार से मासूमों को बचाने के उपाय नहीं

राष्ट्रीय बाल आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 7163 चाइल्ड होम्स हैं जिनमें 256000 बच्चे रहते हैं। इनमें से 2764 होम्स में बच्चों को शारीरिक और मानसिक दु‌र्व्यवहार से बचाने के पर्याप्त उपाय नहीं हैं। पढ़ें मासूमों की दुर्दशा बयां करती यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 06:02 AM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2020 06:02 AM (IST)
देश के 38 फीसद चाइल्‍ड होम्‍स में बच्चे खतरे में, 2764 बाल गृहों में दु‌र्व्यवहार से मासूमों को बचाने के उपाय नहीं
देश के 2764 बाल गृहों में बच्चों को दु‌र्व्यवहार से बचाने के पर्याप्त उपाय नहीं हैं।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। देश में कुल 7163 चाइल्ड होम्स हैं जिनमें 256000 बच्चे रहते हैं। लेकिन राष्ट्रीय बाल आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट कहती है कि 2764 होम्स में बच्चों को शारीरिक और मानसिक दु‌र्व्यवहार से बचाने के पर्याप्त उपाय नहीं हैं। 21 फीसद में मानकों के मुताबिक शौचालय और 14.8 फीसद में मानकों के मुताबिक स्नानघर नहीं हैं। जबकि छह फीसद चाइल्ड होम्स में शौचालय और स्नानघर में प्राइवेसी नहीं है।

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सोशल आडिट की रिपोर्ट आई सामने

अभी हाल में नेशनल कमीशन फार चाइल्ड प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट (एनसीपीसीआर) की पूरे देश में जुविनाइल जस्टिस इंस्टीट्यूशन्स और चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन्स (किशोर गृह और बाल गृह) के सोशल आडिट की रिपोर्ट आयी है जिसमें देश में स्थिति किशोर और बाल गृहों की स्थिति का पता चलता है। सैकड़ों है जहां किसी मानक का पालन नहीं किया जा रहा है।रुल 67(12) कहता है कि चाइल्ड होम्स में प्रत्येक की प्वाइंट पर सीसी टीवी कैमरा लगाए जाएंगे।

434 होम्स में स्नानघर एरिया में प्राइवेसी नहीं

एनसीपीसीआर की सोशल आडिट रिपोर्ट के मुताबिक, 7163 चाइल्ड होम्स में से 434 होम्स में शौचालय और स्नानघर एरिया में प्राइवेसी नहीं है। सिर्फ 6729 में ही प्राइवेसी का ध्यान रखा गया है। रूल 31(1)(8) कहता है कि प्रत्येक होम में पर्याप्त संख्या में स्नानघर होने चाहिए जिसमें रोशनी और हवा आने की व्यवस्था हो। रिपोर्ट के मुताबिक 1504 यानी 21 फीसद होम्स में बच्चों की संख्या के मुताबिक शौचालय नहीं हैं। इतना ही नहीं 728 होम्स में बेसिक इमरजेंसी मेडिकल केयर उपकरण नहीं हैं।

होम का रजिस्ट्रेशन न होने पर सजा का प्रावधान

बताते हैं कि इलाहाबाद में पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्वराज भवन में स्थापित किये गये चिल्ड्रन नेशनल इंस्टीट्यूट में जब गत जनवरी में निरीक्षण के लिए गए तो उस होम में 29 लड़कियां रहती थीं। वहां बाथरूम में दरवाजे नहीं थे। नियम के मुताबिक, प्रत्येक होम का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है और रजिस्ट्रेशन न होने पर कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। रिपोर्ट के मुताबिक कुल चाइल्ड होम्स में से 2039 यानी 28.5 फीसद होम्स सरकार के पास रजिस्टर्ड नहीं हैं।

आधे से ज्यादा होम्स दक्षिण भारत में, आती है मोटी फंडिंग

चिल्ड्रन होम्स के बारे में एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि देश भर में कुल 7163 चिल्ड्रन होम हैं जिनमें से 4743 चिल्ड्रन होम दक्षिण के पांच राज्यों और महाराष्ट्र में हैं। तमिलनाडु में 1248, कर्नाटक में 1004, केरल में 729, आंध्र प्रदेश में 730, तेलंगाना में 429 और महाराष्ट्र में 603 चाइल्ड होम्स हैं।

विदेश से होती है भारी फंडिंग

1472 सेंटर अंतरराष्ट्रीय मदद यानी एफसीआरए के जरिये विदेश से आर्थिक सहायता लेते हैं। 834 कारपोरेट डोनर और 3051 अपने संसाधन से चलते हैं। 2018-2019 में प्रत्येक बच्चे पर कुल खर्च करीब 60,000 रुपये सालाना आता है जबकि चाइल्ड होम चलाने वाली गैर सरकारी संस्थाओं को प्रति बच्चा मिलने वाला दान लाखों में था।

हर बच्चे पर 60,000 रुपये साल भर में होते हैं खर्च

विश्लेषण में पता चला कि 2018-2019 में प्रत्येक बच्चे पर कुल खर्च करीब 60,000 रुपये सालाना आता है जबकि चाइल्ड होम चलाने वाली गैर सरकारी संस्थाओं को प्रति बच्चा मिलने वाला दान लाखों में था। विश्लेषण के आंकड़ों के मुताबिक आंध्र प्रदेश में 145 होम्स को कुल 409.52 करोड़ की फारेन फंडिग मिली। इन होम्स में कुल 6202 बच्चे रहते है और इस हिसाब से प्रत्येक बच्चे के हिस्से 6.60 लाख रुपये आते हैं।

राज्‍यवार फारेन फंडिग 

तेलंगाना मे 67 होम्स को 144.98 करोड़ रुपये की फारेन फंडिंग मिली। इन होम्स में कुल 3735 बच्चे रहते हैं और प्रत्येक बच्चे के हिसाब से 3.88 लाख रुपये हैं। केरल में 107 होम्स को 85.39 करोड़ फारेन फंडिग मिली। इन होम्स में कुल 4242 बच्चे रहते हैं। प्रत्येक बच्चे पर 2.01 लाख रुपये आता है। कर्नाटक में 45 होम्स के एनजीओ को 66.62 करोड़ की फारेन फंडिंग मिली। इन होम्स में कुल 3111 बच्चे रहते हैं। प्रत्येक बच्चे पर 2.14 लाख रुपये आता है।

रजिस्ट्रेशन न होने पर सजा

नियम के मुताबिक प्रत्येक होम का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है और रजिस्ट्रेशन न होने पर कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। कुल चाइल्ड होम्स में से 2039 यानी 28.5 फीसद होम्स सरकार के पास रजिस्टर्ड ही नहीं हैं।

आधे से ज्यादा होम्स दक्षिण भारत में

चिल्ड्रन होम्स के बारे में एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि देश भर में कुल 7163 चिल्ड्रन होम हैं जिनमें से 4743 चिल्ड्रन होम दक्षिण के पांच राज्यों और महाराष्ट्र में हैं। तमिलनाडु में 1248, कर्नाटक में 1004, केरल में 729, आंध्र प्रदेश में 730, तेलंगाना में 429 और महाराष्ट्र में 603 चाइल्ड होम्स हैं।

बच्‍चों की हालत दयनीय

तमिलनाडु में 274 होम्स चलाने वाले एनजीओ को 248.09 करोड़ रुपये की फारेन फंडिंग मिली। इन होम्स में कुल 11702 बच्चे रहते हैं और इस हिसाब से एक बच्चे पर 2.12 लाख रुपये आता है। एनसीपीसीआर के चेयरमैन प्रियंक कानूनगो का कहना है कि अभी फारेन फंडिंग की और जांच चल रही है। वैसे वह ये भी कहते हैं कि उन्होंने फारेन फंडिंग पाने वाले एनजीओ के चाइल्ड होम में बच्चे पोटा केबिन में रहते भी देखे हैं। 


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