चीफ जस्टिस एसए बोबडे बोले, पर्यावरण संरक्षण के लिए कानूनों की एकल प्रणाली होने की बड़ी आवश्यकता
चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि एक मामले में हमने फैसला दिया कि वर्तमान पीढ़ी को अगली पीढ़ियों के हितों के खतरे में डालने का कोई अधिकार नहीं है।
नई दिल्ली, एजेंसी। अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कांफ्रेंस-2020 में चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि एक मामले में हमने फैसला दिया कि वर्तमान पीढ़ी को अगली पीढ़ियों के हितों के खतरे में डालने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया भर में कानूनों की एकल प्रणाली होने की तत्काल और बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इंसान बीज हैं, साथ ही परजीवी भी। जहां तक पर्यावरण का संबंध है क्योंकि वे पर्यावरण को जितना देते हैं, उससे कहीं अधिक वे लेते हैं। उन्होंने कहा कि जैसा कि हम भविष्य में देखते हैं, प्राथमिक उद्देश्यों में से एक पर्यावरण का संरक्षण है। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण का संबंध में एक निर्णायक फैसला सुनाया था कि वर्तमान पीढ़ी के पास भविष्य की पीढ़ियों के अधिकारों का अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है।
संविधान ने स्वतंत्र एवं मजबूत न्यायपालिका का निर्माण किया
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने शनिवार को कहा था कि संविधान ने मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका का निर्माण किया है जिसे कार्यपालिका और विधायिका से अलग रखा गया था। इसके साथ ही उन्होंने नागरिकों द्वारा अपने विधिक कर्तव्यों का पालन करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कांफ्रेंस-2020 में 'न्यायपालिका और बदलती दुनिया' विषय पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि न्यायिक संस्थान के तौर पर ही नहीं, बल्कि नागरिक के तौर पर भी हम हर मोड़ पर इसके मूल स्वरूप को बचाए रखने में सफल रहे। उन्होंने कहा, 'सबसे आधुनिक संविधानों की सबसे बुनियादी विशेषता संभवत: कानून के शासन का विचार है। निश्चित रूप से, हमारे देशों में कानून के शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि न्यायपालिका ऐसी चुनौतियों को लेकर किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं और वे किस तरह से उभरती हैं।' जस्टिस बोबडे ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह अक्सर कानून में अंतर्निहित होता है कि कानूनी अधिकारों के कानूनी कर्तव्यों के साथ सहसंबंध हैं। जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है वह है मौलिक कर्तव्य संबंधी अध्याय जो प्रत्येक नागरिक के लिए संविधान का पालन जरूरी बनाता है।' प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 50 से अधिक देशों के संविधानों में मौलिक कर्तव्यों संबंधी विशिष्ट प्रावधान हैं। बोबडे ने महात्मा गांधी का हवाला देते हुए कहा कि अधिकारों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति की कर्तव्य भावना पर निर्भर करता है और वास्तविक अधिकार कर्तव्य के प्रदर्शन का परिणाम होते हैं।
उन्होंने अद्भुत प्रौद्योगिकीय प्रगति का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनियाभर की न्यायपालिकाएं इस तरह के बदलाव का सामना कर रही हैं जिसे अधिकार क्रांति, प्रौद्योगिकी क्रांति और जनसांख्यिकीय क्रांति कहा जा सकता है। हमारे फैसले अब केवल उन लोगों को प्रभावित नहीं करते जो हमारे अधिकार क्षेत्र में रहते हैं।