हर रोज इस्तेमाल में आने वाला साबुन और टूथपेस्ट हो सकता है महिलाओं के लिए घातक, जानें कैसे
एक अध्ययन के मुताबिक इन उत्पादों में पाए जाने वाले रसायन ट्राइक्लोजन के संपर्क में आने से महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। साबुन, टूथपेस्ट और पर्सनल केयर के अन्य उत्पादों को लेकर चौंकाने वाला शोध सामने आया है। एक अध्ययन के मुताबिक, इन उत्पादों में पाए जाने वाले रसायन ट्राइक्लोजन के संपर्क में आने से महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। ट्राइक्लोजन ऐसा रसायन है जो हार्मोन का स्राव करने वाली ग्रंथियों को प्रभावित करता है। विभिन्न उत्पादों में एंटी-बैक्टीरिया के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। ट्राइक्लोजन से हड्डियों पर पड़ने वाले असर को लेकर यह अपनी तरह का पहला शोध है। अध्ययन के लिए 1,848 महिलाओं से जुड़े डाटा का विश्लेषण किया गया। जिन महिलाओं में ट्राइक्लोजन का स्तर ज्यादा था, उनमें हड्डियों से जुड़ी समस्याएं पाई गईं। कुछ जीवों पर ट्राइक्लोजन के असर शोध में सामने आ चुके हैं।
पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या ज्यादा है। अधिकतर भारतीय लोग विटमिन डी की कमी से ग्रस्त होते हैं। यही कारण है कि उनकी हड्डियां कमजोर हो रही हैं। ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फ्रैक्चर्स की आशंका बढने लगती है। लेकिन हड्डी रातों-रात कमजोर नहीं होती, यह प्रक्रिया सालों-साल चलती है। उम्र के साथ-साथ शरीर में कई बदलाव होते हैं। स्त्री-पुरुष दोनों में यह दिखाई देता है, लेकिन स्त्रियों को ऑस्टियोपोरोसिस ज्यादा परेशान करता है। इसका कारण यह है कि मेनोपॉज के बाद उनकी हड्डियों में कैल्शियम, विटमिन डी और मिनरल्स की कमी होने लगती है और इससे हड्डियों की डेंसिटी कम होने लगती हैं।
एंटीबैक्टीरियल साबुन
एंटीबैक्टीरियल साबुन का प्रयोग वैसे तो कीटाणुओं का सफाया करने के लिए किया जाता है। एक शोध के मुताबिक इसका ज्यादा प्रयोग आपके स्वास्थ्य और सेक्स लाइफ को प्रभावित कर सकता है। एंटीबैक्टीरियल साबुन में इस्तेमाल होने वाला ट्राइक्लोजन नामक रसायन शरीर के लिए नुकसानदायक है।इसके संपर्क से त्वचा रसायनों को अधिक सोखती है जिस कारण शरीर को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। सरफेक्टेन्ट एक प्रकार का रसायन है, जोकि पानी और साबुन का मिश्रण होता है। यह गंदगी को तो दूर करता है लेकिन इससे त्वचा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
क्या हैं रोग के लक्षण
- धूम्रपान या शराब की लत
- कैल्शियम और विटमिन डी की कमी
- क्रैश डाइटिंग, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं
- हाइपरथायरॉयड और अत्यधिक पसीना आने की समस्या
- लिवर संबंधी परेशानियां, अथ्र्राराइटिस, डायबिटीज की समस्या
- ओरल स्टेरॉयड्स या एंटी-सीजर दवाओं का लंबे समय तक सेवन
मेनोपॉज के बाद होता है अधिक खतरा
भारतीय स्त्रियों में ऑस्टियोपोरोसिस के मामले काफी देखे जा रहे हैं। यूं तो यह समस्या किसी भी उम्र में घेर सकती है, लेकिन वृद्धावस्था में इसकी आशंका अधिक रहती है। 35 की उम्र के बाद बोन डेंसिटी 0.3 से 0.5 प्रतिशत तक कम होती है। स्त्रियों में मेनोपॉज के बाद बोन डेंसिटी को मेंटेन करने के लिए जरूरी हॉर्मोन एस्ट्रोजन के स्तर में कमी आती है। ऑस्टियोपोरोसिस के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कैल्शियम व विटमिन डी की कमी इसका महत्वपूर्ण कारण है।
ऐसे करें बचाव
- विटमिन डी का सबसे बडा स्रोत सूरज है। इसके लिए रोज सुबह कम से कम 15 मिनट तक धूप में जरूर बैठें
- सुबह की ब्रिस्क वॉक, जॉगिंग, डांस, वेट ट्रेनिंग और स्विमिंग से हड्डियों को मजबूती प्रदान की जा सकती है
- आहार में कैल्शियम की मात्रा का ध्यान रखें। प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम कैल्शियम स्त्री-पुरुष दोनों के लिए जरूरी है
- नशे, धूम्रपान से दूर रहें और कैफीन का सेवन कम करें। दिन भर में तीन कप से अधिक कॉफी या चाय का सेवन न करें
- खानपान पौष्टिक होना चाहिए। विटमिन सी, डी, ई, एंटी-ऑक्सीडेंट्स और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स में ऑस्टियोपोरोसिस से लडने के गुण छिपे हैं
- यदि कैल्शियम की कमी है तो डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम सप्लीमेंट्स ले सकते हैं, लेकिन इसे विटमिन डी के साथ लेना ही फायदेमंद होगा
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