देशभर में छाया छत्तीसगढ़ का बेसलाइन टेस्ट मॉडल, अब मोबाइल से होगी बच्चों के अंकों की एंट्री
छत्तीसगढ़ ने पहली बार बेसलाइन टेस्ट मॉडल के तहत स्टेट लेवल असेसमेंट (एसएलए) किया। इसी के साथ पहली बार प्राइमरी स्कूल के करीब 30 लाख बच्चों का एक जैसे प्रश्न पत्र के साथ टेस्ट हुआ।
रायपुर,जेएनएन। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत जहां देश भर में प्राइमरी-मिडिल के बच्चों का सतत मूल्यांकन किया जा रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ ने पहली बार बेसलाइन टेस्ट मॉडल के तहत स्टेट लेवल असेसमेंट (एसएलए) किया। शिक्षकों ने बच्चों के अंकों की एंट्री तक ऑनलाइन मोबाइल के जरिए की।
सभी बच्चों का डेटाबेस तैयार किया गया। इस मॉडल और असेसमेंट को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने बेस्ट प्रैक्टिसेस माना है। एमएचआरडी ने प्रोजेक्ट एप्रूवल बोर्ड की दिल्ली में आयोजित बैठक में छत्तीसगढ़ को बेसलाइन टेस्ट यानी एसएलए को आगे बेहतर चलाने के लिए आंकलन प्रकोष्ठ अलग से गठित करने की हरी झंडी दे दी। इसके लिए छत्तीसगढ़ को 41 करोड़ रुपये मिले हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव गौरव द्विवेदी ने बताया कि छत्तीसगढ़ पहला राज्य होगा,जहां प्राइमरी-मिडिल के बच्चों का मूल्यांकन अब आकलन प्रकोष्ठ करेगा। वहीं बच्चों की लर्निंग यानी सीखने की क्षमता का अनुसंधान करेगा और निदान के लिए भी प्लान करेगा।
दिल्ली की टीम आएगी छत्तीसगढ़
जानकारी के मुताबिक बेसलाइन टेस्ट मॉडल को देखने और समझने के लिए एमएचआरडी की टीम जल्द ही प्रदेश में दौरा करेगी। इसके बाद इस मॉडल को देश के दूसरे राज्यों में भी लागू कराया जाएगा। बता दें कि छत्तीसगढ़ में अभी बच्चों की वार्षिक परीक्षा अथवा समेटिव आकलन जिला स्तर पर तैयार प्रश्नपत्र के आधार पर होता रहा है। यह पहली दफा है जब राज्य स्तर से लर्निंग आउटकम आधारित प्रश्नपत्र तैयार किए गए । अभी तक बच्चों की परीक्षा लेने के बाद उनका रिपोर्ट कार्ड ऑनलाइन नहीं होता था, इस बार हर बच्चे का अलग-अलग रिपोर्ट कार्ड ऑनलाइन होगा। इसमें कितना सुधार हो रहा, लगातार मॉनिटरिंग की जाएगी।
यह है बेसलाइन टेस्ट मॉडल
प्रदेश में पहली बार प्राइमरी-मिडिल स्कूल के करीब 30 लाख बच्चों का एक जैसे प्रश्न पत्र के साथ टेस्ट लिया गया। प्रश्न पत्र राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) की ओर से बनवाया गया। हर बच्चे के टेस्ट के बाद मूल्यांकन के लिए कॉपियों को एक संकुल से दूसरे संकुल को भेजा गया। इसी तरह मूल्यांकनकर्ता भी दूसरे स्कूलों से भेजे गये। हर कॉपी पर एक मूल्यांकन प्रपत्र लगाया गया था। हर बच्चे को रोल नंबर की जगह अलग-अलग आइडी देकर डेटाबेस बनाकर प्राप्त अंकों की ऑनलाइन एंट्री की गई।
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