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फसल पैटर्न में बदलाव खतरे से खाली नहीं, रासायनिक फर्टिलाइजर पर फैलाई जा रहीं हैं भ्रांतियां

एग्रोकेमिकल कांग्रेस में आधा दर्जन से अधिक कृषि वैज्ञानिकों ने अपने प्रजेंटेशन दिये। इनमें खाद्यान्न की लगातार बढ़ती मांग और कृषि की विकास दर में गिरावट पर चिंता जताई गई।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 09:18 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 09:21 PM (IST)
फसल पैटर्न में बदलाव खतरे से खाली नहीं, रासायनिक फर्टिलाइजर पर फैलाई जा रहीं हैं भ्रांतियां
फसल पैटर्न में बदलाव खतरे से खाली नहीं, रासायनिक फर्टिलाइजर पर फैलाई जा रहीं हैं भ्रांतियां

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आगामी सालों में बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न की होने वाली मांग को पूरा करना एक गंभीर चुनौती है। सरकार की नीतियों में मामूली हेर फेर भी खाद्य सुरक्षा पर भारी पड़ सकता है। बिना सोचे समझे फसल चक्र के पैटर्न में बदलाव लाना खतरे से खाली नहीं होगा। केमिकल फर्टिलाइजर को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियां खेती को पीछे ढकेल सकती हैं। इन्हीं चुनौतियों को लेकर कृषि वैज्ञानिकों में गंभीर चिंता है। इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में आयोजित एग्रोकेमिकल कांग्रेस में इन्हीं मुद्दों पर उद्योग जगत के साथ देशभर के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक मंथन कर रहे हैं।

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एग्रोकेमिकल कांग्रेस में पिछले दो दिनों के दौरान आधा दर्जन से अधिक कृषि वैज्ञानिकों ने अपने प्रजेंटेशन दिये। इनमें खाद्यान्न की लगातार बढ़ती मांग और कृषि की विकास दर में गिरावट पर चिंता जताई गई। प्रजेंटेशन में इसके जिम्मेदार कारकों को चिन्हित करने का प्रयास किया गया। बढ़ती आबादी को देखते हुए वर्ष 2050 में लगभग 35 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी, जबकि मौजूदा उत्पादन 27 करोड़ टन के आसपास है। इसके मुकाबले सीमित होते प्राकृतिक संसाधनों से इस लक्ष्य को पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

कीटनाशकों के छिड़काव की है जरूरत 

खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने के लिए जिन रासायनिक फर्टिलाइजर का उचित उपयोग और फसलों को रोगों व कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशकों के छिड़काव की जरूरत है, उसे लेकर उठाये जा रहे सवालों पर फसल संरक्षा (प्लांट प्रोटेक्शन) के वैज्ञानिक हैरत में हैं।

उपयोग को लेकर भ्रांतियां हैं ज्यादा

हालांकि उसके उपयोग के गलत तौर तरीके पर चिंता जताई गई, जिसे किसानों में जागरुकता सख्त अभाव माना गया। डिप्टी डायरेक्टर जनरल डा. अशोक कुमार सिंह का कहना है 'भारत में फिलहाल नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का उपयोग 180 किलो प्रति हेक्टेयर हो रहा है, जबकि यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका में इसका प्रयोग 500 किलो तक हो रहा है।' इसलिए भारत में अत्यधिक उपयोग को लेकर भ्रांतियां ज्यादा हैं। पड़ोसी चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश तक में भारत के मुकाबले रासायनिक फर्टिलाइजर का प्रयोग हो रहा है। डाक्टर सिंह का कहना है कि गोबर की खाद हो या रासायनिक खाद हो, दोनों से फसलों को एक ही तरह का पोषण मिलता है। इसे लेकर फैलाया भ्रम ठीक नहीं है।

गलतफहमियों पर जताई चिंता

एग्रोकेमिकल कांग्रेस में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर ने रासायनिक फर्टिलाइजर और कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर फैलायी जा रही गलतफहमियों पर चिंता जताई। लेकिन तंज कसते हुए उन्होंने यह भी कहा 'इस क्षेत्र में अनुसंधान करने वालों का उत्पादन से लेना देना नहीं और उत्पादन करने वालों का बिक्री से ताल्लुक नहीं और बिक्री करने वालों का खेती किसानी से कोई लेना देना नहीं है।' उन्होंने कहा कि इनके बीच समन्वय बनाने व जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है।

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सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई चुनौतियों के बीच फसल चक्र को परिवर्तित करने की उठ रही मांग पर भी चिंता जताई गई। आने वाले दिनों में खाद्यान्न की जिस रफ्तार से जरूरत बढ़ेगी, उसके लिए हर संभव उपाय पर विचार की जरूरत पर जोर दिया गया। दूसरी ओर एक सप्ताह पहले स्वायल व जल संरक्षण पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मिट्टी में जीवाश्म की घटती मात्रा पर चिंता जताई गई थी।

जागरुकता का अभाव सबसे कमजोर कड़ी

एग्रोकेमिकल कांग्रेस में कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर सवाल भी उठाये गये। माना गया कि इस क्षेत्र में अनुसंधान, उत्पादन, बिक्री और उपयोग करने वालों के बीच तालमेल का सख्त अभाव है, जो फसलों की संरक्षा के साथ उपज की क्वालिटी को प्रभावित करता है। इसके उपयोग को लेकर किसानों के बीच जानकारी का अभाव सबसे कमजोर कड़ी है। कीटनाशक मूलरूप से कीड़े मकोड़े और बीमारी को दूर करने वाला एक तरह का जहर है। उससे खेती को फायदा पहुंचाने वाले सूक्ष्म जीव भी मर जाते हैं। देश में इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट को लागू करने की सख्त जरूरत है। लेकिन ध्वस्त प्रसार प्रणाली इसकी राह की रोड़ा है। घरेलू बाजारों में मिल रहे ज्यादातर कीटनाशकों की क्वालिटी पर लगातार सवाल उठ रहे हैं, जिसकी तत्काल समीक्षा करने की भी जरूरत पर बल दिया गया।


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