देश को कचरा मुक्त करने के लिए पहले अपनी आदत को बदलना होगा, तब मिलेगी इससे आजादी
पहले किसान घर से निकले कचरे की खाद तैयार कर उसको अपने खेतों में डालते थे। लेकिन अब यही कचरा पॉलीथिन में जाने लगा जिससे ये उनके लिए अनुपयोगी हो गया।
अलमित्रा पटेल। हम तो इंसान हैं, दीमक भी जहां रहते हैं, उस स्थान को बहुत करीने से साफ रखते हैं। उनकी कॉलोनी के लाखों दीमकों की निजी जिम्मेदारी होती है कि वे अपने कचरे को विकेंद्रीकृत कवक बगीचे में जमा करें जिससे वहां खाने योग्य कवक पैदा हो सके। इस तरीके से दीमक अपने कचरे को पोषक खाद्य पदार्थ में बदल लेते हैं। उनके यहां कोई कचरा खुले में नहीं होता जिससे उनकी सेहत को खतरा पैदा हो। इंसान भी (अगर चाहे तो) ऐसा कर सकता है। वास्तव में वे करते रहे हैं। वैदिक काल से लेकर शहरी बसावट के शुरुआती दौर तक कचरा प्रबंधन उनकी आदत में शुमार था। 1970 से पहले शहरों और कस्बों से सटे गांवों के किसान उनके किचन से पैदा हुए कचरों को ले जाते थे और अपने खेतों में कंपोस्ट तैयार करते थे। यह स्वस्थ आदत दो चीजों के चलते खत्म हो गई।
एक तो प्लास्टिक युग की शुरुआत से लोग अपने किचन के कचरे में उसे फेंकना शुरू कर दिए। इससे ये कचरा किसानों के लिए अनुपयोगी हो गया। दूसरी वजह इस परंपरा के खात्मे की बनी, सरकार द्वारा उर्वरक पर भारी सब्सिडी देना। फार्म कंपोस्टिंग और गोबर से पौधे के जिस पोषक तत्व नाइट्रोजन की पूर्ति किसान करते रहे, अब वह उन्हें बिना तमाम जतन किए सहज उपलब्ध है। हालांकि किसानों को तब किसी ने इस बात के लिए आगाह नहीं किया कि उन्हें उसके साथ कंपोस्ट का कार्बन डालना भी उतना ही जरूरी है। रासायनिक उर्वरकों के अति उपयोग से जमीन की उत्पादकता गड़बड़ाई तो अब हमें अपने किए पर अफसोस जताना पड़ रहा है। अब हमें फिर कचरे से बनने वाले मृदा पोषक तत्वों की ओर निहारना पड़ रहा है।
इतना आगे बढ़ जाने के बाद क्या वापसी की जा सकती है? बिल्कुल, अगर हम अपने खाद्य कचरे में किसी चीज की मिलावट न करें तो सदियों से चली आ रही कंपोस्टिंग प्रणाली से फिर कचरे से सोना निकाल सकते हैं। कचरे में मिलावट से बचना बहुत आसान है। अगर एक बार ऐसा करना शुरू कर दिया जाए तो आज सभी खाद्य पदार्थों गमलों, बगीचे का कचरा लाभदायक और कीमती बन जाए। बहुत से ऐसे परिवार हैं जो अपने घर की छोटी सी जगह में रसायनमुक्त और स्वास्थ्यप्रद हरित सब्जियां उगा रहे हैं।
बहुत से लोग शिकायत करते हैं कि यदि वे अपने कचरे को मिलावट मुक्त रखते हैं तो शहर के कचरा निपटान से जुड़े अधिकारी-कर्मी जबरन अलग किए कचरे को मिला देते हैं। मेरा सुझाव है कि उन्हें ऐसा बिलकुल न करने दें। यदि घरेलू कंपोस्टिंग के लिए आप अपने कचरे का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आप बिना मिला सूखा कचरा कूड़ा उठाने वाले को दे दें। यदि ऐसा नहीं है तो आप कचरा उठाने वाले को बिना मिला गीला कचरा (खाद्य, फूल और फल ) और अलग किया हुआ सेनिटरी नैपकिंस और डिस्पोजेबल डायपर्स आदि दे दें। सूखे कचरे (प्लास्टिक और रिसाइकिल किए जा सकने वाले पदार्थों) को अपने पास रख लें। एक या दो सप्ताह बाद इसे असंगठित क्षेत्र के कचरा उठाने वाले को कचरा दान कर दें। इससे उन गरीबों का भला होगा, कचरा उनकी जीविका का माध्यम बनेगा और उनके बच्चे शिक्षित हो सकेंगे। अगर ऐसा भी न हो सके तो मुहल्ले के कबाड़ीवाला को देकर नकदी कमाएं।
लोग अक्सर पूछते हैं कि हमारा देश कचरा मुक्त कैसे और कब तक होगा। सबको बताना चाहूंगी कि ये तभी संभव है जब देश का प्रत्येक नागरिक इस बात की चिंता करने लगेगा कि उनके सार्वजनिक स्थल गंदे क्यों हैं? देश तभी कचरे से मुक्त होगा जब लोग अपने घर की तरह, अपने ड्राइंग रूम की तरह सार्वजनिक स्थलों को भी साफ रखना शुरू करेंगे। जब हर व्यक्ति गैर जरूरी चीज सरेराह चलते सड़क, खाली प्लॉट में या नाले में नहीं फेंकेगा। हमारा देश तभी कचरा मुक्त होगा जब लोग इस मानसिकता से उबर जाएंगे कि फलाने ऐसा कर रहे हैं तो हम क्यों नहीं। ये बदलाव ही हमारे देश को स्वच्छ और देशवासियों को स्वस्थ बनाएगा।
(जानी-मानी विशेषज्ञ, ठोस कचरा प्रबंधन)
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