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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीतने की नहीं हराने की राजनीति

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, तीतरो (सहारनपुर)। जाति, उपजाति और खापों में बंटकर चुनावों में एक-दूसरे को पटखनी देने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए राजनीतिक बदलाव होने लगे हैं। दंगे के बाद सांप्रदायिक खांचों में बंट गए पश्चिम में जीतने की नहीं हराने की राजनीति तेज हो गई है। चुनाव में इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयारी हो रही है।

By Edited By: Published: Thu, 03 Apr 2014 07:15 PM (IST)Updated: Thu, 03 Apr 2014 07:18 PM (IST)
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीतने की नहीं हराने की राजनीति

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, तीतरो (सहारनपुर)। जाति, उपजाति और खापों में बंटकर चुनावों में एक-दूसरे को पटखनी देने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए राजनीतिक बदलाव होने लगे हैं। दंगे के बाद सांप्रदायिक खांचों में बंट गए पश्चिम में जीतने की नहीं हराने की राजनीति तेज हो गई है। चुनाव में इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयारी हो रही है। जाति, खाप और गोत्र का दायरा टूटने लगा है। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग जिताऊ उम्मीदवार को ही समर्थन देने का मन बना रहे हैं।

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सदियों पुरानी इस जातीय व्यवस्था को हाल में हुए दंगे ने झकझोर दिया है। लोकसभा चुनाव में यह स्पष्ट रुप से दिखने लगा है। दंगे की कड़वाहटों के बीच हो रहे इस चुनाव में हिंदू समुदाय भी रणनीतिक वोटिंग करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। यानी जीत रहे उम्मीदवार को ही एकमुश्त वोट डाले जाएं। इसके लिए बैठकों का दौर शुरू हो गया है।

दंगे की सबसे ज्यादा चपेट में रहे कैराना, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर संसदीय क्षेत्र में चुनाव सांप्रदायिक खांचे में बंटे समुदायों के बीच तब्दील होने लगा है। मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ सांप्रदायिक गोलबंदी के और गहराने के आसार हैं। नकुड विधानसभा क्षेत्र के नहठौरी गांव की गलियों में खड़े रमेशपाल से चुनाव के बाबत पूछने पर वह आक्रोश से फट पड़े, 'बड़े बूढे़ बहक रहे हैं, वो ठीक ना है।' बुजुर्ग तो चौधरी चरण सिंह के जमाने के हैं, लेकिन युवा बदलाव चाहते हैं। उसी गांव की बगड़ (चौपाल) में युवा बुजुगरें को अपने तकरें से यथास्थितिवाद से बाहर निकलने के लाभ गिनाते दिखे। खाप बत्तीसा के मुखिया 86 वर्षीय चौधरी उदयवीर सिंह बदले-बदले से नजर आने लगे हैं। चौधरी चरण सिंह की प्रशंसा करते हुए नहीं थकने वाले चौधरी ने कहा 'अब तो उन्हें (मुस्लिम प्रत्याशी) हराने से ही असल जीत मिल सकती है। बात बदल गई है। कोई दलित व जाट नहीं अबकी चुनाव में सब हिंदू हो गए हैं। क्षेत्र का नेतृत्व हाथ में लेना है।'

पश्चिमी क्षेत्र के कैराना संसदीय क्षेत्र का फैलाव यमुना के खादर में तकरीबन एक सौ किमी तक है। जातीय गणित के हिसाब से यहां तकरीबन 40 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं जो सर्वाधिक हैं। जबकि मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 से 35 फीसद के आसपास हैं। दंगे के बाद बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को धक्का लगा है। जबकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से भाजपा की राजनीतिक जमीन स्वत: मजबूत हुई है।

दंगा शिविरों के मार्फत भाजपा को छोड़ बाकी पार्टियां मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। इससे सांप्रदायिक कटुता घटने की बजाय और बढ़ रही है। दंगा प्रभावित पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका पता तो चुनाव के बाद चलेगा, लेकिन राजनीतिक हालात सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही घूम रहे हैं।

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