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वैक्सीन लगवाने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके कहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी टीकाकरण गाइडलाइंस के मुताबिक किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 01:57 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 02:08 AM (IST)
वैक्सीन लगवाने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा
सरकार का कहना है कि किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

नई दिल्ली, पीटीआइ। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी टीकाकरण गाइडलाइंस के मुताबिक किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। दिव्यांग व्यक्तियों को टीकाकरण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने से छूट के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि उसने ऐसी कोई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी नहीं की है जिसमें किसी भी उद्देश्य के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र साथ रखना अनिवार्य हो।

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केंद्र ने यह बातें गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) इवारा फाउंडेशन की याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में कहीं। याचिका में एनजीओ ने दिव्यांगों का घर-घर जाकर टीकाकरण करने की मांग की गई है। हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि जारी महामारी के मद्देनजर व्यापक जनहित में कोरोना टीकाकरण किया जा रहा है। विभिन्न प्रिंट और इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मो के जरिये यह सलाह दी गई है और विज्ञापन दिए गए हैं कि सभी नागरिकों को कोरोना का टीकाकरण कराना चाहिए और इसके लिए व्यवस्था व प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि एक अप्रैल, 2020 से 11 जनवरी, 2022 तक 1,47,492 बच्चों ने कोरोना या अन्य कारणों से अपने माता या पिता या दोनों को खो दिया है। कोरोना महामारी के दौरान माता-पिता को खोने के कारण बच्चों को देखभाल और संरक्षण की जरूरत संबंधी स्वत: संज्ञान मामले में एनसीपीसीआर ने अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी के जरिये दाखिल हलफनामे में बताया कि ये आंकड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा उनके 'बाल स्वराज पोर्टल-कोविड केयर' पर अपलोड सूचना पर आधारित हैं।

आयोग के मुताबिक, इनमें 10,094 बच्चे पूरी तरह अनाथ हो गए हैं, 1,36,492 बच्चों ने माता या पिता को खो दिया है और 488 बच्चों को लावारिस छोड़ दिया गया है।लैंगिक आधार पर आयोग ने बताया कि इनमें 76,508 लड़के, 70,980 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर हैं। इनमें 59,010 बच्चे 08-13 साल आयुवर्ग, 22,763 बच्चे 14-15 साल आयुवर्ग, 22,626 बच्चे 16-18 साल आयुवर्ग और 26,080 बच्चे चार-सात साल आयुवर्ग के हैं।

आयोग ने बताया कि 1,25,205 बच्चे अपने माता या पिता के साथ, 11,272 बच्चे अपने परिवार के सदस्यों के साथ, 8,450 बच्चे अभिभावकों के साथ, 1,529 बच्चे बाल गृहों, 19 खुले आश्रय गृहों, दो निगरानी गृहों, 188 अनाथालयों, 66 विशेष दत्तक एजेंसियों और 39 छात्रावासों में रह रहे हैं।

इन बच्चों का राज्यवार विवरण देते हुए आयोग ने कहा कि इनमें सबसे अधिक 24,405 बच्चे ओडिशा, 19,623 बच्चे महाराष्ट्र, 14,770 बच्चे गुजरात, 11,014 बच्चे तमिलनाडु, 9,247 बच्चे उत्तर प्रदेश, 8,760 बच्चे आंध्र प्रदेश, 7,340 बच्चे मध्य प्रदेश, 6,835 बच्चे बंगाल, 6,629 बच्चे दिल्ली और 6,827 बच्चे राजस्थान के हैं। एनसीपीसीआर ने यह भी कहा है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रहा है कि महामारी के दौरान बच्चे बिल्कुल भी प्रभावित न हों या कम से कम प्रभावित हों। 


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