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निरंकुश इंटरनेट मीडिया को भारी पड़ेगी मनमानी, केंद्र सरकार कर रही कार्रवाई की तैयारी

सरकार ने 25 फरवरी 2021 को तीन महीने के अंदर इसका पालन करने का निर्देश दिया था लेकिन कंपनियां अपने पुराने रुख पर ही अड़ी हुई हैं। ऐसे में संभव है कि सरकार भी सख्त तेवर दिखाते हुए इंटरमीडियरी (मध्यस्थ) के रूप में उन्हें मिल रही सुविधाएं खत्म कर दे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 24 May 2021 09:45 PM (IST)Updated: Tue, 25 May 2021 07:00 AM (IST)
निरंकुश इंटरनेट मीडिया को भारी पड़ेगी मनमानी, केंद्र सरकार कर रही कार्रवाई की तैयारी
आपत्तिजनक पोस्ट पर आपराधिक कार्रवाई से मिली छूट वापस लेने पर हो सकता विचार

नई दिल्ली, आशुतोष झा। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी विदेशी इंटरनेट मीडिया कंपनियों का मनमाना रुख सीधे तौर पर देश के कानून और सरकार के निर्देशों के लिए चुनौती बनने लगा है। ये प्लेटफार्म खुद को एक तरह से संप्रभु मानने लगे हैं। यह एक बार फिर से साबित होने लगा है। भारत से मोटी कमाई कर रही इन विदेशी कंपनियों ने भारत में ग्रीवांस आफिसर, कंप्लायंस आफिसर, नोडल आफिसर की तैनाती, 15 दिन के अंदर शिकायत का निपटारा करने की व्यवस्था, आपत्तिजनक पोस्ट की निगरानी जैसी सामान्य व्यवस्था करने से भी इन्कार कर दिया है। सरकार ने 25 फरवरी 2021 को तीन महीने के अंदर इसका पालन करने का निर्देश दिया था, लेकिन कंपनियां अपने पुराने रुख पर ही अड़ी हुई हैं।

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आपत्तिजनक पोस्ट पर आपराधिक कार्रवाई से मिली छूट वापस लेने पर हो सकता विचार

ऐसे में संभव है कि सरकार भी सख्त तेवर दिखाते हुए इंटरमीडियरी (मध्यस्थ) के रूप में उन्हें मिल रही सुविधाएं खत्म कर दे। ऐसा होने पर प्लेटफार्म पर किसी भी पोस्ट के लिए कंपनी जिम्मेदार मानी जाएगी। सरकार के अंदर एक धड़ा का मानना है कि इनकी निरंकुशता पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है। विदेशी इंटरनेट मीडिया की कार्यप्रणाली को लेकर समाज के हर क्षेत्र से सवाल उठते रहे हैं। भारत में विपक्ष भी इस पर कई बार इस पर पक्षपाती होने का आरोप लगा चुका है। सरकार की ओर से भी कई बार आगाह किया जा चुका है कि मध्यस्थ की बजाय अपनी सुविधा और मंशा के अनुसार ये प्लेटफार्म जज की तरह काम करने लगते हैं।

शिकायत निपटारे को भारत में अधिकारी नियुक्त करने तक को तैयार नहीं विदेशी कंपनियां

इनका अपना फैक्ट चेकिंग तंत्र है, जिसके बारे में पारदर्शिता नहीं है कि उन्हें किस आधार पर नियुक्त किया जाता है या वे किस आधार पर एक जैसे होने पर भी किसी पोस्ट को ब्लाक करते हैं और किसी को छोड़ देते हैं। भारत में तो अक्सर ऐसे फैक्ट चेकर की मंशा और राजनीतिक पृष्ठभूमि को लेकर सवाल खड़ा हुआ है, जिसका कंपनियों की ओर से कभी संतोषजनक जवाब नहीं आया। ये प्लेटफार्म जब चाहें ग्राहक को बताए बगैर किसी को प्रतिबंधित कर देते हैं, तो किसी की पोस्ट को ब्लाक। किसान आंदोलन के दौरान सरकार की ओर से आगाह किए जाने के बावजूद कई भड़काउ पोस्ट कई दिनों तक चलते रहे थे।

सरकार ने भारत में पूरी व्यवस्था खड़ी करने को कहा था

ऐसे में केंद्रीय सूचना तकनीक व इलेक्ट्रानिक्स मंत्रालय ने फरवरी ने दिशानिर्देश जारी किया था और भारत के अंदर पूरी व्यवस्था खड़ी करने को कहा था। फिलहाल इन कंपनियों ने भारत में कोई नोडल अफसर तक नहीं नियुक्त किया है। इनका कोई ऐसा काल सेंटर नहीं है जहां शिकायत की जा सके। आश्चर्य की बात है कि 26 मई को तीन महीने पूरे हो जाएंगे, लेकिन भारतीय सोशल मीडिया कंपनी कू को छोड़कर किसी ने भी नोडल आफिसर, ग्रीवांस आफिसर की नियुक्ति नहीं भी की है। बजाय इसके उनमें से अधिकतर का कहना है अमेरिका स्थित हेडक्वार्टर से उन्हें अभी कोई निर्देश नहीं मिला है।

प्लेटफार्म को मिली छूट वापस ले सकती है सरकार

सूत्रों के अनुसार इन कंपनियों के रुख से नाराज सरकार सख्त कदम उठा सकती है। आइटी कानून की धारा 79 के तहत इन्हें एक मध्यस्थ प्लेटफार्म के रूप में थर्ड पार्टी पोस्ट से छूट मिली हुई है। यानी अगर कोई ग्राहक आपत्तिजनक पोस्ट डालता है, कार्रवाई उस ग्राहक पर होती है प्लेटफार्म पर नहीं। बताया जाता है कि सरकार देश के कानून और सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करने वाले प्लेटफार्म से यह छूट वापस ले सकती है। ऐसे में ये प्लेटफार्म भी किसी पोस्ट से जुड़े आपराधिक मामलों के घेरे में आ जाएंगे। बहरहाल इसे लेकर अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।


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