Move to Jagran APP

केंद्र सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआइए को सौंपी, महाराष्‍ट्र सरकार ने जताई नाराजगी

भीमा कोरेगांव मामले और यलगार परिषद के मामले की जांच को केंद्र सरकार ने एनआइए (राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी) को सौंप दिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 11:32 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 07:20 AM (IST)
केंद्र सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआइए को सौंपी, महाराष्‍ट्र सरकार ने जताई नाराजगी
केंद्र सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआइए को सौंपी, महाराष्‍ट्र सरकार ने जताई नाराजगी

मुंबई, प्रेट्र। भीमा कोरेगांव मामले और यलगार परिषद के मामले की जांच को केंद्र सरकार ने एनआइए (राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी) को सौंप दिया है। वहीं दूसरी ओर महाराष्‍ट्र सरकार भीमा कोरेगांव मामले और यलगार परिषद का मुकदमा खत्‍म करने की तैयारी कर रही थी। इस बीच केंद्र सरकार ने मामले को एनआइए को सौंप दिया। इससे महाराष्‍ट्र सरकार का गुस्‍सा भड़क उठा। इस बारे में राज्‍य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा, भीमा कोरेगांव मामले की जांच महाराष्‍ट्र सरकार की सहमति के बिना एनआइए को सौंपी गई। भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआईए को सौंपना संविधान के खिलाफ है। मैं इसकी निंदा करता हूं।

loksabha election banner

क्‍या है यलगार परिषद?

यलगार परिषद 1 जनवरी, 2018 को आयोजित एक रैली थी। यलगार परिषद के पहले यह समझना जरूरी है कि भीमा कोरेगांव का इससे क्‍या कनेक्‍शन है। दरअसल, भीमा कोरेगांव का लिंक ब्रिटिश हुकूमत से है। यह पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए जाना जाता है। इस रण में मराठा सेना बुरी तरह से पराजित हुई थी।

इस युद्ध में मराठा सेना का सामना ईस्‍ट इंडिया कंपनी के महार (दलित) रेजीमेंट से था। इसलिए इस जीत का श्रेय महार रेजीमेंट के सैनिकों को जाता है, तब से भीमा कोरेगांव को पेशवाओं पर महारों यानी दलितों की जीत का रण माना जाने लगा। इसे एक स्मारक के तौर पर स्थापित किया गया और हर वर्ष इस जीत का उत्‍सव मनाया जाने लगा। भीमराव आंबेडकर इस जीत के जश्‍न में यहां हर साल आते रहे।

31 दिसंबर 2017 को इस युद्ध की 200वीं सालगिरह थी। 'भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान' के बैनर तले कई संगठनों ने मिलकर एक रैली का अयोजन किया था। इसका नाम 'यलगार परिषद' रखा गया। वाड़ा के मैदान पर हुई इस रैली में 'लोकतंत्र, संविधान और देश बचाने' की बात कही गई। दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला ने इस रैली का उद्घाटन किया था। इस रैली में प्रकाश आंबेडकर, पूर्व चीफ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू छात्र उमर खालिद, आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी आदि मौजूद रहे।

रैली को 300 से ज्‍यादा संगठनों का समर्थन

दावा किया जाता है कि यलगार परिषद की रैली को 300 से ज्‍यादा संगठनों ने समर्थन दिया था। ऐसा कहा जाता है कि ये रैली दो पूर्व जजों ने बुलाई थी। यलगार परिषद में बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज बीजी कोलसे पाटिल और जस्टिस पीबी सावंत का नाम सामने आया। इस रैली के बाद पाटिल ने बताया था कि यलगार परिषद को 300 से ज़्यादा संगठनों का समर्थन प्राप्‍त था। जस्टिस पाटिल का कहना है कि इस यलगार परिषद में हमने यहां आए लोगों को यह शपथ दिलाई कि वो किसी सांप्रदायिक पार्टी को कभी वोट नहीं देंगे। हम संघ के इशारों पर चलने वाली भाजपा को वोट नहीं देंगे।

भीमा-कोरेगांव में भड़की थी हिंसा

एक जनवरी 2018 को पुणे के पास स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। इससे एक दिन पहले वहां यलगार परिषद नाम से एक रैली हुई थी और इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका बनाई गई। इसके बाद संसावाड़ी में हिंसा भड़क उठी थी। कुछ क्षेत्रों में पत्थरबाज़ी की घटना हुई। उपद्रव के दौरान एक नौजवान की जान भी गई। पुलिस का दावा है कि यलगार परिषद सिर्फ़ एक मुखौटा था और माओवादी इसे अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।

28 अगस्त को इस सिलसिले में पुणे पुलिस ने गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, अरुण फरेरा और वरनॉन गोन्ज़ाल्विस को गिरफ्तार कर लिया। पुणे पुलिस ने अदालत में कहा कि गिरफ्तार किए गए पांचों लोग प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य हैं और यलगार परिषद देश को अस्थिर करने की उनकी कोशिशों का एक हिस्सा था। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.