DATA STORY: बीते 15 में से 12 साल रहे सबसे गर्म, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट
पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ते रहने के कारण वर्षा अतिविषमताओं ग्लेशियर पिघलने एवं समुद्र स्तर वृद्धि की दर एवं पैटर्न में लगातार परिवर्तन होते रहे हैं। वर्ष 1993-2017 के दौरान उत्तरी हिन्द महासागर के समुद्र स्तर में प्रति वर्ष 3.3 मिमी की दर से बढ़ोतरी हुई है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट में सामने आया है कि भारत में 2006 और 2020 के समय में 15 में से 12 सबसे गर्म साल दर्ज किए है। यह रिकॉर्ड अपने आप में सबसे गर्म दशक का था। दुनिया में 76 फीसदी आंतरिक विस्थापन जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदा हुए थे। साल 2007 और 2020 के बीच बाढ़, भूकंप, चक्रवात और सूखे की वजह से लगभग 3.73 मिलियन लोग विस्थापित हुए थे।
ग्रामीण भारत अधिक आया कोरोना की चपेट में
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट में सामने आया है कि ग्रामीण भारत शहरी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा बहुत बुरी तरह कोरोना की चपेट में आया। कोरोना की दूसरी लहर में शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र कोरोना की जद में अधिक आया। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि ग्रामीण भारत में कम्युनिटी हेल्थ सेंटर को मजबूत करने की आवश्यकता है। यहां पर 76 फीसदी अधिक डॉक्टर, 56 प्रतिशत अधिक रेडियोग्राफर और 35 प्रतिशत अधिक लैब टेक्नीशियन की जरूरत है।
तापमान बढ़ने से क्या हो रहे नुकसान
पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ते रहने के कारण वर्षा, अतिविषमताओं, ग्लेशियर पिघलने एवं समुद्र स्तर वृद्धि की दर एवं पैटर्न में लगातार परिवर्तन होते रहे हैं। वर्ष 1993-2017 के दौरान उत्तरी हिन्द महासागर के समुद्र स्तर में प्रति वर्ष 3.3 मिमी की दर से बढ़ोतरी हुई है, जो वैश्विक माध्य के सदृश है। वैसे तो उत्तरी हिन्द महासागर में वृद्धि में उष्मीय विस्तार ने प्रमुख भूमिका निभाई है, वहीं समुद्री स्तर में वृद्धि का प्रमुख कारण ग्लेशियर का पिघलना रहा है।
तापमान में कथित वृद्धि के कारण प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम काफी बढ़ गया है। वैसे तो जलवायु परिवर्तन वैश्विक है, लेकिन जलवायु में होने वाले परिवर्तन पूरी पृथ्वी पर एक समान नहीं होते हैं, इसलिए प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी पूरी दुनिया में अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, वैश्विक औसत की तुलना में आर्कटिक तापमान में काफी तेजी से वृद्धि हो रही है। पूरी दुनिया में समुद्री स्तर की दर में बहुत महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। वैश्विक महासागर के गर्म होने तथा हिम एवं ग्लेशियर पिघलने का एक परिणाम यह हुआ है कि समुद्र स्तर के औसत में बढ़ोतरी हो रही है। समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण अधिक जनसंख्या वाली तटीय आबादियों तथा विश्व की निचली सतह वाले द्वीपसमूहों पर स्थित देशों पर काफी अधिक दबाव पड़ सकता है।
हिन्द महासागर वाले क्षेत्र में काफी अधिक जनसंख्या है, इसमें बहुत से निचली सतह वाले द्वीपसमूह तथा तटीय क्षेत्र है तथा भरपूर मात्रा में समुद्री पारितंत्र है। हिन्द महासागर के आसपास के क्षेत्रों में लगभग 2.6 अरब लोग रहते हैं, जो विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या के बराबर है। एक तिहाई भारतीय जनसंख्या तथा अधिकांश एशियाई जनसंख्या तटीय क्षेत्रों में स्थित है। इसलिए समुद्री स्तर में वृद्धि के कारण जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, तटीय इंफ्रास्ट्रक्चर एवं समुद्री पारितंत्र के लिए लगातार चुनौतियां बढ़ सकती है।
तापमान बढ़ने पर हुए हैं ये शोध
अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में सामने आया कि वर्षा पट्टी में यह बड़ा बदलाव जलवायु परिवर्तन के वैश्विक असर संबंधी पहले के अध्ययनों में सामने नहीं आया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया और उत्तरी अटलांटिक महासागर में तापमान बढ़ा है। इस ताजा अध्ययन के तहत पूर्वी और पश्चिमी गोलार्ध क्षेत्र में प्रतिक्रिया को अलग-अलग करके भारत में आगामी दशकों में आने वाले बड़े बदलावों को रेखांकित किया गया है। अध्ययन के सह लेखक एवं यूसी इरविन के वैज्ञानिक जेम्स रैंडरसन ने कहा कि एरोसोल उत्सर्जन में अनुमानित कमी, हिमालयी क्षेत्र में हिमनदी के पिघलने और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी क्षेत्रों में बर्फ का आवरण हटने से एशिया में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक तेजी से तापमान बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि इस गर्मी के कारण वर्षा पट्टी का स्थानांतरण और पूर्वी गोलार्ध में उत्तर की ओर इसकी गतिविधि जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों के अनुरूप है।
चीन, यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आया है कि आने वाले 50 सालों में भारत में मौसम का मिजाज और गड़बड़ाएगा। स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की यही स्थिति जारी रही या वायुमंडल में मौजूद गैसों का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो भारत का तापमान सहारा रेगिस्तान जितना गर्म हो जाएगा।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में छपे अध्ययन में कहा गया है कि आने वाले सालों में भारत में 1.2 बिलियन लोग गर्मी के इस ताप का सामना करेंगे। जबकि पाकिस्तान में 100 मिलियन, नाइजीरिया में 485 मिलियन गर्मी के इस प्रकोप का सामना करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में दुनिया भर में मानव आबादी औसत सालाना तापमान छह डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 28 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में रहती है जो कि लोगों की सेहत और खाद्य उत्पादन के लिहाज से बेहतर है। पर यदि यह तापमान बढ़ता रहा तो इसका आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक असर होगा। इसकी वजह से मानव आबादी के लिए आजीविका, रहन-सहने से लेकर खाद्यान्न संकट की समस्या उत्पन्न होगी।